
चैटबॉक्स में नीलिमा ने मुझसे कहा कि राजकिशोर ने अपनी बेटी अस्मिता का बायोडाटा मेरे पास भेजा तो मुझे आपका ध्यान आ गया। मैंने पूछा- क्यों? नीलिमा ने कहा-योग्य वर के लिए। मैंने फिर कहा-आप मजाक क्यों करती हैं? उसने कहा- सच्ची। फिर एक मिनट बाद ही उसने वायोडाटा फार्वर्ड कर दिया। मैंने बहुत ही जल्दी में अस्मिता राज का बायोडाटा देखा.फिर जब अपने शहर टाटानगर पहुंचा तो देखा कि मोहल्लालाइव पर ये वायोडाटा सार्वजनिक कर दी गयी है। इस पर रवीश कुमार से लेकर बाकी लोगों के भी कमेंट हैं। अस्मिता ने अपने बायोडाटा में कई ऐसी बातें लिखी है जिससे साफ हो जाता है कि विवाह संस्था के भीतर रहकर भी नए जमाने की लड़कियां किस तरह इसके ढांचे को ध्वस्त करने में जुटी है। लकीर का फकीर और कठमुल्लेपन की धज्जियां उड़ाने में जुटी हैं। मैंने भी कमेंट किया और अस्मिता को इस काम के लिए शुभकामनाएं दी। फिर घर में अवसाद के क्षणों में भी अपने भैय्या की शादी में कुछ रंगत पैदा करने में जुट गया। बात आयी गयी हो गयी।
लेकिन जिस टिपिकल तरीके से हिन्दू रीति-रिवाज के तहत शादी की तैयारियां और नेम धर्म शुरु हुआ,मुझे अस्मिता का बायोडाटा बार-बार ध्यान आने आने लगा। मैंने कुछ लोगों को इसे पढ़वाया,इस बारे में चर्चा की। मेरे दिमाग में बस एक ही चीज बार-बार घूमने लगी। इस देश में हजारों लड़कियां ऐश्वर्या राय बनने की होड़ में है,हजार के करीब रानी मुखर्जी भी बनना चाहती है,सानिया मिर्जा और सुनिधि चौहान भी इसके आस-पास ही बनना चाहती है। लेकिन इस बीच अस्मिता राज कहां से आ गयी? ये उन लड़कियों के खांचे में नहीं है जो बचपन के राजकुमार को अब घोड़ी पर चढ़ना देखना चाहती है। ये उन लड़कियों से अलग है जो कि अफेयर को संबंध का नाम देने के लिए जी-जान लगाती है। हर औसत दर्जे के समाज के बीच खत्तम लड़की होने की बदनामी झेलती है। ये इतनी माइक्रो समझ है कि न तो वो विवाह संस्था का खुल्लम-खुल्ला चैलेंज करती है और न ही उसके बाहर जाकर कोई क्रांति की बात करती है। अगर कुछ नया और अलग है तो वो ये कि इसके भीतर ही रहकर उसके ढांचे को ध्वस्त करती है। मुझे लगता है कि अगर इस देश की तमाम लड़कियों ने गाय पर लेख लिखने के लिए अपने सीनियर की कॉपी देखी हैं,शादी के पहले मोहल्ले की लड़कियों से स्वेटर,टेबुल क्लाथ,कुशन के पैटर्न उधार लिए हैं तो अब उसे बायोडाटा बनाते समय एक बार अस्मिता के बायोडाटा से जरुर गुजरना चाहिए।
कहने को बायोडाटा के जरिए शादी एक प्रोग्रेसिव नजरिया का हिस्सा लगता है लेकिन अगर आप इनके एक-एक शब्दों पर गौर करें तो आपको इसके कई हिस्से मानव-विरोधी लगेंगे। ये सबकुछ स्त्री के विरोध में जाता है। रंगों का वर्णन,जाति का बारीकी से वर्णन,खानदाननामा और ऐसी ही कई सूचनाएं जो एक ही झटके में एहसास कराती है कि शादी के नाम पर हम कितना बड़ा गैरमानवीय समाज रचते हैं? बंद दिमाग को संभव है कि अस्मिता का बायोडाटा परेशान करे,जबरदस्ती की चोचलेबाजी लगे लेकिन इसे चालू पैटर्न के लड़कियों के बायोडाटा से मिलान करके देखें तो एक घड़ी को इससे असहमत होते हुए भी अपनी बेटियों,अपनी बहनों,भतिजियों के लिए बनाए गए बायोडाटा पर नफरत होगी।..होनी भी चाहिए।
http://test749348.blogspot.com/2009/12/blog-post_15.html?showComment=1260947235151#c6288499495535055697'> 15 December 2009 at 23:07
yogy war to har ladkii ka janmsiddh adhikar hai
wisheshtah hmare desh men hi swyambar ki paramparaarhi hai
http://test749348.blogspot.com/2009/12/blog-post_15.html?showComment=1260971954778#c530062254809134740'> 16 December 2009 at 05:59
विनीत जी, बायोडाटा की एनालिसिस कर बात को टालिए नहीं। अपना मन टटोलिए और सच्ची-सच्ची बताइए कि क्या आपने एप्लाई किया है, यदि नहीं तो क्यों...
- आनंद
http://test749348.blogspot.com/2009/12/blog-post_15.html?showComment=1260978617652#c7856405159485982959'> 16 December 2009 at 07:50
अस्मिता को योग्य वर मिले इसी शुभकामना के साथ। वैसे 'योग्य' एक सापेक्षिक शब्द है सो यह कहना ज्यादा ठीक रहेगा कि उन्हें मनपसंद जीवनसाथी मिले।
http://test749348.blogspot.com/2009/12/blog-post_15.html?showComment=1261117995619#c7575941854338475135'> 17 December 2009 at 22:33
अच्छी पहल।
http://test749348.blogspot.com/2009/12/blog-post_15.html?showComment=1261294284942#c550764757093972174'> 19 December 2009 at 23:31
हमने तो ख़ुद तलाशा था
बायोडाटा से बस सेटिंग हो सकती है--- जीवनसाथी तो ख़ुद ही तलाशना होगा।