टीआरपी को मीडिया इन्डस्ट्री का अंतिम सत्य माननेवाले कमर वहीद नकवी साहब सहित आजतक टीम की हालत इन दिनों इसी टीआरपी ने पस्त कर रखी है। वो लगातार इसी टीआरपी से पिछले चार सप्ताह से भी ज्यादा से लहुलूहान होते आए हैं। इस बीच चैनल नें अपने को नंबर वन पर लाने के लिए तमाम तरह के हथकंड़े अपनाए और दुनियाभर के हाथ-पैर मारे। इसी छटपटाहट में उसने  एक तरफ अपने को इंडिया टीवी के संस्कार में ढालने की कोशिश की तो दूसरी तरफ ऑपरेशन हे राम के जरिए अपने पुराने तेवर में भी लौटने का प्रयास किया। आजतक की ये कोशिश उसकी बेचैनी को साफ बयान कर देती है कि वो अपनी इस हालात को लेकर कितना कनफ्यूज है? वो इस बात को तय ही नहीं कर पा रहा है कि ऑडिएंस उसके इंडिया टीवी बन जाने से ज्यादा जुट पाएंगे या फिर पुराने आजतक की शक्ल में लौटने पर? हमारी जैसी ऑडिएंस भी इसके इंडिया टीवी की शक्ल में आने पर घबराने लग गयी कि बस एक ही उल्लू काफी है,बर्बाद ए गुलिस्ता करने को,हर साख पे उल्लू बैठा है,अंजाम ए गुलिस्ता क्या होगा वाला मामला होता जा रहा है तो फिर न्यूज कल्चर का आगे क्या हाल होगा?
 लेकिन इसी ऑडिएंस ने ऑपरेशन हे राम देखकर मन ही मन शुभकामना भी जाहिर किया और आगे चलकर फेसबुक पर लिखा कि- आजतक की ऑपरेशन हे राम के जरिए देश के अय्याश और दलाल बाबाओं पर की गयी स्टोरी जबरदस्त है। इस स्टोरी के जरिए उसे इस सप्ताह अच्छी टीआरपी मिलेगी। इस स्टोरी को पहले हमने टेलीविजन पर देखा और जो हिस्से छूट गए उसे उसकी ऑफिशियल साइट पर अपलोड किए गए वीडियो के जरिए देखा। ये और बाद है कि चैनल ने इसे बाद में स्टिंग से ज्यादा रायता में तब्दील कर दिया और अगले दिन भी फैलाता रहा। स्टोरी देखने के बाद हम उम्मीद कर रहे थे कि अगले दिन तक हंगामा मच जाएगा। देशभर में आग लग जाएगी,दंगे की शक्ल में देश जल उठेगा। इस देश में जहां हर पीपल का पेड़ अपनी पैदाइश के साथ एक मंदिर का भविष्य लेकर आता है और एक बेरोजगार के बाबा हो जाने की गारंटी देता है वहां आसाराम बापू,सुधांशु महाराज,महाकाल और दाती महाराज जैसे महंत को बेनकाब कर देने से स्थिति सामान्य नहीं रह जाएगी। वैसे भी हमने आज तक के कम से कम आधे दर्जन स्टिंग ऑपरेशन के असर को तो देखा ही है जिससे पूरा देश हिल गया है। हम अगले पांच घंटे और अगले दिन तक चैनल के 6-8 विंडो में कटकर देशभर की प्रतिक्रिया का इंतजार करने लगे। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ और ये स्टिंग हवा में उड़ गया। बासी स्टिंग ऑपरेशन ने कुछ असर नहीं किया।

ये वो नाजुक मौका है जिस पर आजतक को सीरियसली सोचना चाहिए कि आखिर क्यों उसके इस स्टिंग ऑपरेशन को लोगों ने पाद धरकर उड़ा दिया,उस पर गौर नहीं किया, हंगामा क्यों नहीं बचा। ये सबसे बड़ा चिन्ह है जो ये बताता है कि आजतक की ब्रांडिंग और उसकी विश्वसनीयता झरझराकर गिर गयी है। इस पर सिर्फ एडीटोरियल की टीम को ही नहीं,बल्कि मार्केटिंग के लोगों को भी लगना होगा। पैकेज पर काम करने के साथ ही ब्रांड वैल्यू और रीस्टैब्लिशमेंट पर भी ध्यान देना होगा।
बहरहाल आजतक खबरों और कंटेंट के स्तर पर जहां रद्दोबदल कर रहा है जिसे हम उसका कन्फ्यूज्ड हो जाना कह रहे हैं,वही लोगों की जिम्मेदारी तय करने में भी भारी फेरबदल कर रहा है। चैनल की भाषा में कहें तो वो वास्तुशास्त्र के हिसाब अपने चैनल को दुरुस्त करने में जुटा है। संभव है उसे साढ़े साती की चपेट में आने का भान हो रहा है। वास्तुशास्त्र के हिसाब से दो स्तर के बदलाव होते हैं। एक तो ये कि जो भीतरी स्ट्रक्चर है,उसमें ही फेरबदल कर दिया जाय- जैसे जो बेडरुम है,उसे बाथरुम बना दिया जाए और जो बेडरुम है उसमें एक चापानल या लोहे की कोई चीज जड़ दी जाए। मतलब जहां लिखा है प्यार,वहां लिख दो सड़क टाइप से बदलाव जिसका खूबसूरती और यूटिलिटी से तो कोई मतलब न हो बल्कि कबाड़ा ही हो लेकिन वास्तुशास्त्र के लिहाज से ये जरुरी है। चैनल ने फिलहाल ये बदलाव भीतरी स्ट्रक्चर के हिसाब से ही किया है।

सबसे बड़ा बदलाव कि अजय कुमार जो कि अबतक आजतक के आउटपुट हेड हुआ करते थे,उन्हें अब रिपोर्टिंग के हिस्से से जुड़े होंगे बोलकर झूलता छोड़ दिया गया है,आगे का पद क्या होगा,अभी तय नहीं है जबकि कमान अभी अशोक सिंघल के ही हाथ रहेगी। ये अजय कुमार के कद को कतरकर छोटा करने का काम हुआ। इसका साफ मतलब है कि अजय कुमार पर से आजतक का भरोसा उठ गया। इनके बारे में चंद जरुरी लाइनें आगे।..फिलहाल,शैलेन्द्र झा जो कि तेज के हेड हुआ करते थे अब उन्हें अजय कुमार की जगह आजतक का आउटपुट हेड बना दिया गया है जबकि स्पोर्टस कवर करती आयी पूनम शर्मा को तेज का हेड बना दिया गया है। लोगों को ये बदलाव संभव हो कि बहुत ही अटपटा लग रहा हो लेकिन अगर वास्तुशास्त्र का यही उचित विधान है तो इस अटपटेपन का क्या कीजिएगा? संभव हो कि अजय कुमार इस अल्टरेशन को आनेवाले समय में चलते-चलते मेरे ये गीत,याद रखना के सीन के तौर पर ले रहे हों तो वहीं शैलेन्द्र झा और पूनम शर्मा को इस प्रोमोशन से अपने भीतर छिपी प्रतिभा, आंचल में बंधे तो भी चंदन,आग में जले तो भी चंदन जैसी लग रही हो। लेकिन
 एन्टीएन्क्रीमेंट के माहौल में उनका ये प्रोमोशन बाकी लोगों को कितनी रास आएगी,चैनल के भीतर के माहौल के लिहाज से ये भी एक बड़ा सवाल है। अभी चैनल के भीतर भारी अफरा-तफरी मची हुई है। लोगों पर गहरी नजर रखी जा रही है और तय किया जा रहा है कि ये बंदा/बंदी शक्ल से ही लग रहा/रही है कि टीआरपी मजबूत करने के काम आएगा,इसे प्रोमोट करो।..न न ये तो अजय कुमार की ही कार्बन कॉपी है,इसे थोड़ा ऑल्टर करो। ऐसे माहौल में एक तो एंटीइन्क्रीमेंट और दूसरा कि कद छोटा किए जाने,हालत यही रही तो शैक कर दिए जाने के डर के बीच टीआरपी कितनी बढ़ेगी,ये चैनल के भीतर आतंकवाद से भी बड़ी समस्या है। लेकिन अगर ये सारे बदलाव टोटके के तौर पर आजमाए जा रहे हैं तो समझिए कि चैनल नें मीडिया इन्डस्ट्री के भीतर एक नए खेल को जन्म दिया है- आओ खेलें कोना-कोनी बदलने का खेल।

भीतरी स्ट्रक्चर में हेर-फेर करने पर अगर चैनल को वास्तुशास्त्र का लाभ न मिला तो संभव है कि गणपति बप्पा विसर्जन और मां दुर्गा की स्थापना के बीच तक आजतक के भीतर किसी बड़े बाबा की प्राण प्रतिष्ठापना हो जाए। इसे लेकर फिजा में स्टार न्यूज से इम्पोर्ट करने की खबर भी है जो कि कभी यहीं से एक्सपोर्ट हुए।.
अब अजय कुमार को लेकर कुछ छूट गयी लाइनें।..आजतक में इन्क्रीमेंट के सवाल को लेकर जब मैंने लिखा कि आजतक में कई नत्था लालबहादुर के भरोसे जी रहे हैं तो हमें एक पुराने मीडियाकर्मी ने अजय कुमार की प्रोफाइल को लेकर विस्तार से जानकारी दी। उसमें उन्होंने बताया कि वो सिविल सर्विसेज बैग्ग्राउंज से आते हैं,उन्होंने सिविल सर्विसेज के लिए आइआएएम लखनउ की अधूरी पढ़ाई छोड़ दी। फिर जर्नलिज्म के लिए सिविल सर्विसेज को बाय कर दिया। उनका ऐसा बताने में संभव है कि ये समझाने का आग्रह रहा हो कि चैनल ने अजय कुमार के महत्व को समझा ही नहीं। लेकिन सवाल तो ये भी है कि अजय कुमार ने आइआइएम और सिविल सर्विसेज के अनुभव से क्या सीखा? मोहल्लालाइव पर नागार्जुअन ने अपनी कालजयी पोस्ट में अजय कुमार की क्षमता का अतिरेक में ही सही लेकिन आकलन कर दिया है। एंकरिंग करने के दौरान भी मैंने कई बार महसूस किया है कि अजय कुमार जिस अंदाज में ज्ञान देने की मुद्रा में आते हैं,वो चैनल की ट्रेनिंग न होकर इन्हीं प्रोफेशन की ट्रेनिंग है जिसे कि डेप्थ के नाम की ब्रांडिंग की जाती है जो आजतक जैसे चैनल के किसी काम की नहीं है। हां, ऑपरेशन हे राम में बेहतर अदकारा साबित हुए। फिर हमें दूसरे सूत्रों से जानकारी  मिली कि वो टीटीएम कला( ताबड़तोड़ तेल मालिश) में भी निपुण रहे हैं जो कि चैनल कल्चर के लिए योग्यता से ज्यादा जरुरी चीज है बल्कि ये भी योग्यता ही है। फिर ये टोटका उन्हीं के साथ क्यों लागू किया गया? हमें फिर वही कहावत याद आती है- झाड-फूंक में सबसे बेशकीमती चीज ही तो चढ़ायी जाती है न बबुआ।..
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1 Response to 'ताश के पत्ते की तरह बिखर रहा है आजतक..'
  1. Rajeev Bharol
    http://test749348.blogspot.com/2010/09/blog-post.html?showComment=1284580553618#c4311361463032673696'> 15 September 2010 at 12:55

    मैं अमेरिका में रहता हूँ और अच्छे खासे डॉलर हर महीने दे कर 'आज तक' चैनेल ले रखा है....(कुछ और चैनल भी लिए हैं)

    देखता हूँ की आजतक पर काफी बकवास प्रोग्राम दिखाए जाते हैं. अधिकतर समय ये लोग, फिल्म जगत से जुडी खबरें दिखाते रहेंगे. दर असल वे ख़बरें भी नहीं होतीं. सिर्फ गॉसिप! या फिर यू ट्यूब से डाउनलोड की कोई विडियो दिखायेंगे या किसी टीवी सीरियल के बारे में बताते रहेंगे. या फिर क्रिकेट!

    इतने बड़े देश में क्या इन्हें कोई समाचार नहीं मिलता?

    और तो और, वही चीज़े बार बार दिखाते रहेंगे.. शाम को जब दफ्तर से आता हूँ तो वही ख़बरें(?) दिखा रहे होते हैं जो सुबह देख कर गया था!

     

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