
अचानक पाबंदियों के टूटने से भी दम घुटने लगता है,अनंत आजादी कई बार अराजक स्थिति पैदा करते हैं। इसलिए चिट्ठाकारी पर जब भी हम बात करते हैं तो स्वतंत्रता और स्वच्छंदता के बीच के फर्क को समझना होगा। चिट्ठाकारी में जो कुछ भी कर रहे हैं उसके साथ हर हाल में जिम्मेदारी का एहसास भी होना चाहिए। आदमी जब बोलता है तो कुछ भी बक देता है लेकिन लिखते वक्त हम ऐसा नहीं कर सकते। बोलने से जीभ नहीं कटती लेकिन लिखने से हाथ कट जाता है। हमें ये बात नहीं भूलनी चाहिए कि आजाद अभिव्यक्ति के नाम पर जो कुछ भी चिट्ठाकारी की दुनिया में लिखा जा रहा है,इसके बीच एक स्टेट मशीनरी भी है। आनेवाले समय में ये राज्य लिखने के मामले में दखल करे इससे पहले ही चिठ्ठाकारों को चाहिए की वो अपनी जिम्मेदारी को समझते हुए स्वयं अनुशासित हों। इलाहाबाद में चिठ्ठाकारी की दुनिया विषय पर आयोजित दो दिनों की राष्ट्रीय संगोष्ठी का उद्घाटन करते हुए नामवर सिंह ने ब्लॉगिंग को आजादी की अनंत दुनिया मानकर सिलेब्रेट करनेवाले ब्लॉगर समाज को इस पक्ष से भी सोचना जरुरी बताया। नामवर ने इस मौके पर इस शहर को ऐतिहासिक करार दिया कि कभी इसी शहर से हिन्दी के आंदोलन की शुरुआत हुई थी और आज फिर इसी शहर ने हिन्दी के नए रुप चिठ्ठाकारिता पर पहली बार राष्ट्रीय स्तर की संगोष्ठी आयोजित की है। नामवर सिंह की ही बात को आगे बढ़ाते हुए महात्मा गांधी अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय के कुलपति विभूति नारायण राय ने कहा कि-हमें पता है कि जब स्टेट इस तरह के किसी भी मामले में दखल करती है तो उसका रवैया किस तरह का होता है? ऐसे मसले में ब्यूरोक्रेसी नियंत्रण के नाम पर किस तरह का व्यवहार करती है,ये सब हमें समझना होगा। उन्होंने इन्टरनेट के जरिए अपार सूचना प्रसारित किए जाने के सवाल पर कहा कि जो भी इन्फार्मेशन आ रहे हैं उनमें नॉलेज एलीमेंट कितना है,इस सिरे से भी सोचने की जरुरत है? शुरुआत में जिस तरह टेलीविजन के आने से लगा कि अखबार और पत्रिकाएं अपना महत्व खो देंगी वैसी ही चर्चा ब्लॉग के बारे में की जा रही है लेकिन ऐसा नहीं है। मंच पर आसीन लोग जब बारी-बारी से ब्लॉग के जरिए अराजक स्थिति पैदा करने की बात कर रहे थे,ऐसे में संतोष भदौरिया ने स्पष्ट किया कि इसके लिए ब्लॉगर या मॉडरेटर कम दोषी है। इसके लिए दोषी वो कुंठासुर बेनामी टिप्पणीकार जिम्मेदार हैं जो कि बेतुकी बातें करके निकल लेते हैं। अभिव्यक्ति के नाम पर अराजकता और छिछोरेपन के सवाल को पूरे दिन तक ब्लॉगर और गैर-ब्लॉगर मौके-बेमौके प्रमुखता से उठाते रहे।

प्रथम सत्र में आकादमिक मिजाज की औपचारिकता पूरे होने के बाद हिन्दी ब्लॉगिंग के गुरु कहे जानेवाले रवि रतलामी ने पॉवर प्वाइंट प्रजेंटेशन के जरिए ब्लॉग से जुड़े विविध मसलों पर अपनी बात रखी। उन्होंने ग्राफिक्स के जरिए स्पष्ट किया कि आनेवाला समय इंटरनेट का है और ब्लॉगिंग में अनंत संभावनाएं हैं। लेकिन उन्होंने ये भी स्पष्ट किया कि ब्लॉगिंग के कई तरह के नुकसान भी है और हमें इससे सतर्क रहने की जरुरत है। रवि रतलामी कल ब्लॉगिंग के तकनीकी पक्षों पर विस्तार से चर्चा करेंगे। प्रथम सत्र का एक महत्वपूर्ण पहलू रहा कि इसमें हिन्दुस्तानी एकेडमी की ओर से प्रकाशित,सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी की किताब ब्लॉग जगत का एक झरोखा सत्यार्थमित्र का लोकार्पण भी किया गया। इस किताब में उनके ब्लॉग की चुनी हुई पोस्टें शामिल हैं। इस किताब पर मशहूर ब्लॉगर ज्ञानदत्त पाण्डेय ने ब्राउसर के जरिए प्रेषित किया कि-अगर आपके पास पहले से उपलब्ध अनुभव,भाषा पर पकड़ और नैसर्गिक रुप में'कम से अधिक'अभिव्य्त करने की क्षमता नहीं है तो आप सफल ब्लॉगर नहीं हो सकते। सिद्धार्थ को हिन्दी ब्लॉगिंग में सफलता में सफलता,शंका की कोई गुंजाइश नहीं छोड़ती। कुल मिलाकर ब्लॉगरों के बीच ये सत्र गैर-ब्लॉगरों की ओर से नैतिक निर्देश का एहसास कराने और सांकेतिक रुप से संस्कारित किए जाने की कोशिशों के तौर पर याद किया जाएगा।
दूसरे सत्र में विचार अभिव्यक्ति का नया आयाम पर विमर्श करने के लिए हम हिन्दुस्तानी अकादमी की बिल्डिंग से दूरस्त महात्मा गांधी अन्तर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय के इलाहाबाद सेंटर पर जमा हुए।। इस सत्र में देश के अलग-अलग हिस्सों से आए करीब 35 ब्लॉगरों ने शिरकत की और इलाहाबाद के करीब 12 ब्लॉगर मौजूद थे। ब्लॉगरों के औपचारिक परिचय के दौर ने काफी समय ले लिया। शोर-शराबे के बीच इस परिचय का शायद ही बहुत लोगों को लाभ मिला होगा। खराब ऑडियो क्वालिटी, लोगों की आपसी कानाफूसी और लगातार आवाजाही के बीच विमर्श के लिए जो माहौल बनने चाहिए वो नहीं बन पाया। इसी माहौल में बारी-बारी से आज के ब्लॉगर-वक्ताओं ने अपनी बातें रखीं। इस दूसरे सत्र का संचालन फुरसतिया नाम से मशहूर ब्लॉगर अनूप शुक्ल ने किया।
पहले वक्ता के तौर पर चर्चित पोर्टल भड़ास4मीडिया के मॉडरेटर यशवंत सिंह ने ब्लॉगिंग में अभिव्यक्ति के खतरे पर बातचीत करते हुए कहा कि शुरुआत में जब भड़ास को लेकर शिकायतें आनी शुरु हुई तब हमने व्यवस्थित तरीके से भड़ास4मीडिया शुरु किया और उसके बाद गाय समझी जानेवाली मीडिया के भीतर के सफेद-स्याह को सामने लाने की कोशिशें की। बड़ी मीडिया जिस तरह से बड़ी खबरों को दबाने का काम करती है,हमारी कोशिश होती है कि हम उन पक्षों को सामने लाएं। हमें कई तरह से लोग सलाह देने का काम करते हैं किसी की इच्छाएं भली होती है तो किसी का बहुत ही खतरनाक लेकिन मेरा मानना है कि हम अगर अपना काम ईमानदारी से कर रहे हैं तो किसी भी तरह का फर्क नहीं पड़ता। यशवंत ने ब्लॉग के मॉनिटरी पहलूओं को बहस के बीच शामिल किया जाना अनिवार्य बताया। उन्होंने कहा कि पैसे पर बात करने के मामले में हिन्दी समाज पिछड़ा रहा है औऱ इस पर गंभीरता से बीत होनी चाहिए।
अभिव्यक्ति के नए माध्यम पर बात करने आयी मीनू खरे ने अपना पूरा समय ब्लॉग के इतिहास,अभिव्यक्ति के संवैधानिक प्रावधानों के वर्णन में खपा दिया। उनकी प्रस्तुति से ब्लॉग-इतिहास की एक अच्छी समझ बनने की संभावना हो सकती थी लेकिन एक तो विषय से भटक जाने औऱ दूसरा कि रवि रतलामी की ओर से पहले ही सत्र में इन सब बातों पर चर्चा कर दिए जाने की वजह से ऑडिएंस ने कोई दिलचस्पी नहीं दिखायी और कुछ भी निकलकर सामने नहीं आने सका। जबकि मीनू ने आते ही घोषणा की थी कि बात निकली है तो बहुत दूर तलक जाएगी।
बोधिसत्व ने ब्लॉग के मुद्दे पर अपनी बात रखते हुई ये स्वीकार जरुर किया कि इसके जरिए हमारे परिचय का दायरा बढ़ा है लेकिन ब्लॉग में बहस की गुंजाइश है,इस बात से वो साफ इन्कार करते हैं। उनका मानना है कि ब्लॉग बहस का प्लेटफार्म नहीं है। आप कुछ भी लिख लो,बात करना चाहो लेकिन वो कमेंट के जरिए पर्सनल छींटाकशी में उलझकर रह जाता है। इसलिए मैं संस्मरण लिखता हूं,ब्लॉग बहुत ही अघाए हुए लोगों के हाथ में फंसा हुआ नजर आता रहा है जिनके हाथ में ब्लॉग के लिए हाथ में कम से कम 1000 रुपये हैं। खिले हुए चेहरे ही अधिक शामिल होता जा रहा है। इसे मैं अच्छे दिनों को याद करने का माध्यम मानता हूं और इसे अपनी निजी डायरी के तौर पर देखता हूं।
मोहल्ला के मॉडरेटर अविनाश के ये कहने पर कि मैं अनामी टिप्पणीकारों का समर्थन करता हूं,एक तरह से पूरे सदन में हंगामा मच गया। आगे बैठे कुछ लोगों ने व्यक्तिगत तौर पर बातें करनी शुरु कर दी। उन्होंने कहा कि महौल इतनी अनौपचारिक हो जाएगी इसी उम्मीद नहीं थी। इतने वेपरवाह हो जाएंगे इसकी उम्मीद नहीं थी। यहां उद्घाटन सत्र से लेकर विषय से फोकस्ड सत्र में भी कक्षा की तरह से बात कर रहे हैं. मुझे लगता है कि बोधिसत्व ने कहा कि खाए-पीए-अघाए लोगों के बीच फंसा हुआ है,वो फंसा हुआ है भले ही लेकिन पीपुल्स का मीडियम है। ये पूंजी का माध्यम नहीं है।
हिन्दी में ब्लॉगिंग की कवायद पारिवारिक की तरह रही है। ये पीपुल्स मीडियम है,इसी हिसाब से उसे बात करनी चाहिए। सही नाम से बात करने से कई तरह की परेशानी हो सकती है। स्टेट से सुरक्षित रहते हुए अपनी बात करनी होती है। मैं बेनामी का समर्थक हूं। ट्रेडिशनल मीडिया के पास पूरे वाक्य है,उसके पास पूरा व्याकरण है। ये कानाफुसियों को दर्ज करने का माध्यम है। मैं इसमें डिक्टेट करने के पक्ष में नहीं हूं। मुद्दे की बात हो ही नहीं रही है। अविनाश ने पूरे सत्र को लेकर निराशा जाहिर करते हुए कहा कि मेरे सामने जनतंत्र डॉट कॉम के मॉडरेटर समरेन्द्र मौजूद हैं,मैं चाहता हूं वो ब्लॉगजगत के कुंठासुर पर मेरी तरफ से शुरु की गयी बातचीत को आगे बढाएं।
समरेन्द्र ने अपनी बातचीत की शुरुआत प्रथम सत्र में विद्वानों की ओर से दिए गए वक्तव्यों को शामिल करते हुए की। उन्होंने कहा कि- विभूति नारायण राय ने कहा कि जिम्मेदारी बहुत जरुरी है,राज्य जब दखल देगी तो आपलोग बहुत परेशान हो जाएंगे। सिस्टम हमेशा डराने-धमकाने का काम करते हैं। नामवर ने कहा कि आप जिम्मेदार बनिए। क्या कोई चैनल जिम्मेदार है,आम आदमी की बात करता है। दूरदर्शन के पचास साल हो गए वो भी जिम्मेदार भी नहीं बन पाया।..क्यों नहीं कहेंगे हम? क्या उंगलियां नहीं उठेगी? आम आदमी नाम के साथ नहीं आएगा। हमें जिम्मेदार बनने की हिदायतें दी जा रही है। ऐसे कई उदाहरण हैं जिससे ये साफ होता है कि बेनामी ने अगर अपनी पहचान जारी कर दी तो स्टेट और मशीनरी शिकंजे कसना शुरु कर देती है। आम ब्लॉगर के लिए ये संभव ही नहीं है कि वो ये सबकुछ झेल पाए।
समरेन्द्र की बात से असहमति जताते हुए हर्षवर्धन ने कहा कि- मैं ब्लॉगिंग को वैकल्पिक मीडिया के तरह से देख रहा हूं। अनामी दस कदम आकर जाकर लड़खड़ा जाएगा। अगर ब्लॉग व्यक्तिगत होने लग जा रहा है तो माफ कीजिए इसका मुझे कोई बहुत बड़ा भविष्य नहीं दिखता है। हम मीडिया के बीच से एक रास्ता निकालने का काम कर रहे हैं। अगर हम इस ब्लॉग को सरोकार की मीडिया बनाना चाहते हैं तो हम उसके मददगार बने। एक बड़ा माध्यम बनने वाला है और मैं इस मुहिम के साथ हूं।
कॉफी हाउस नाम से ब्लॉग चलानेवाले भूपेन ने अब तक की हुई बातचीत पर अपनी प्रतिक्रिया जाहिर करते हुए ब्लॉगिंग को थ्योराइज करने की जरुरत पर बल दिया। उन्होंने कहा कि-किस दिशा में ब्लॉग जाए इस पर बात करनी चाहिए।
अविनाश ने मॉडरेटर की जरुरत को नकारा। ब्लॉग न्यू मीडिया का हिस्सा है। मेनस्ट्रीम मीडिया का क्या हाल है ये हमसे छिपा नहीं है। इसका मालिक कौन है इस पर भी हमें सोचना होगा। इसके रिच पर हमें बाक सोचनी होगी। अगर आप आजादी की बात कर रहे हैं तो आप गलतफहमी के शिकार हैं। किसने आपको स्पेस दिया,उसके पीछे की इकॉनमी को समझना पड़ेगा। किस क्लास की ऑडिएंस है इसे भी हमें समझना है। झारखंड के लोगों के लिए डेमोक्रेसी का मतलब अलग है और दिल्ली के लोगों के लिए डेमोक्रसी का अलग मतलब है। पीपुल्स मीडिया अभी नहीं हुआ है। समरेन्द्र ने कहा कि चाइल्डहुड में है लेकिन ये तर्क सही नहीं है। ये झूठ ठूंसा हुआ है। क्या वो वाकई चाइल्डहुड में है। उन्होंने इस संदर्भ में नोम चॉमस्की का भी रेफरेंस दिया और बताया कि किस तरह से पूंजीवाद माध्यम अपने पक्ष में माहौल बनाने का काम करते हैं,हमें इस बात को हमें समझना होगा। नए मीडिया को लेकर हमेशा शक रहा है। क्या ये राष्ट्रीय ब्लॉगिंग है,इन्टरनेशनल है,इस पर समझने की जरुरत है,ट्रांसनेशनल हैं,ये समझना है। हमे इसकी ऑनरशिप पर भी बात करनी होगी। ये मीडिया के कैरेक्टर को डिफाइन करता है। हमारे राष्ट्रीय मीडिया का चरित्र क्या होगा,इस पर बात करनी चाहिए। अंत में...मॉडरेटर पूरी आजादी नहीं देनी होगी,मॉडरेटर को अपनी जिम्मेदारी लेनी होगी।
अपना घर की आभा मिश्रा ने पहले तो हताशा मगर बाद में उम्मीद जताते हुए कहा कि-लोग बहस नहीं करते,फैसले सुनाते हैं। मैं सही और तू गलत। बहस एकतरफा हो रही है.. लोग अपनी खुन्नस निकाल रहे हैं। सामनेवाले ब्लॉग की हत्या की कोशिश में लगे हैं लेकिन हमें उम्मीद है कि आनेवाला समय ऐसा नहीं होगा।
बेदखल की डायरी नाम से मशहूर ब्लॉग की संचालक मनीषा पाण्डेय ने कहा कि-खास बात कहने को बची नहीं है।
भूपेन की ही बात से कई गुत्थियां सुलझ गयी। एक हिन्दी समाज का प्रॉब्लम है। ब्लॉग में वही हो रहा है जो कि समाज में हो रहा है। जैसे घरों में बात हो रही है वैसी ही बात हो रही है। हमारी लड़ाई रचनात्मक होनी चाहिए। अच्छे इरादे होनी चाहिए. अभिव्कयक्ति के स्तर पर कई तरह की गहराई होनी चाहिए। सही इरादों से विरोध होने चाहिए जिससे कि कुछ लोगों की जुबान चुप हो सकें।..
अनामी को लेकर मसीजीवी नाम से मशहूर ब्लॉगर विजेन्द्र सिंह चौहान ने अपना खुला समर्थन दिया। उन्होंने कहा कि-भूपेन ने जो सैद्धांतिक पृष्ठभूमि की बात की है उस पर बात करना जरुरी है। सैद्धांतिक आधार का होना अनिवार्य है। इससे पहले कि हमारे लिए कोई और सिद्धांत गढ़ने लगे इससे पहले जरुरी है कि हम खुद ही सिद्धांत गढ़ लें। बेनामी से बाहर जाकर सिद्धांत नहीं गढ़े जा सकते। मैंने भी इन गालियों को झेला है लेकिन फिर भी ब्लॉगिंग की परिभाषा में ये निहित है कि हम उसे शामिल है। बेनामी को जब हम बहिष्कृत कर देगें तो शिकंजा हमारा गले में हैं। कौन होता है बेनामी- सबसे बड़ा कारण स्वयं से डर। हम लगातार पॉलिटिकली करेक्ट होने का दावा झूठा करते हैं। एक भी मर्द नहीं है जो स्वीकार करे कि हम अपनी पत्नी को पीटते हैं। दूसरी बात,हम मानें या न माने लेकिन ये अर्थतंत्र हैं,हम इससे कमाएं या नहीं लेकिन हम कंटेट को कॉमोडिटी बनाते हैं। वो खरीदा जा रहा है बेचा जा रहा है। इंटरनेट पर जाकर हमारी पोस्ट प्रोडक्ट बन जाती है। तीसरा,हमने अब तक की सारी लड़ाइयां इकठ्ठे होकर लड़ी हैं। इस नयी व्यवस्था में इन्डीविजुअलिटी को सिलेब्रेट किया जा रहा है। जैसे ही हम ब्लॉगिंग को ब्लॉगिंग के नहीं रहने देने के पक्ष में जाकर खड़े हो जाते हैं,तभी तक हम राज्य की कठपुतलियों के शिकार हो जाते हैं।
मशहूर ब्लॉगर इरफान का मानना रहा कि- ब्लॉग समाज का आइना है। कोई एक स्टिकयार्ड नहीं हो सकता है,हर को अपनी बात कहने की आजादी है।. आखिरकार एक रचना एक प्रयास की मांग करता है। सिर्फ वर्णमाला औऱ वाक्य रचना को जानकर आप लेखक नहीं बन सकते। बहुत दिलचस्प माध्यम है जिसमें मल्टीमीडिया का इस्तेमाल होता । ये अद्भुत माध्यम है। सवाल बहुत है लेकिन हम बद्ध होकर,व्यवस्थित तरीके से बात नहीं कर रहे हैं। सहारा चैनल के मालिक को सारा जगत सहारा लगने लगा है। छूकर मेरे दिल को किया तूने क्या इशारा, बदला ये मौसम लगे सहारा जग सारा,ये गीत गाते हैं।
क्यों बंद किया गाने को अपलोड़ करने का काम टूटी हुई बिखरी हुई पर?मैं दूसरे के मजे के लिए अपने अर्काइव नहीं उपलब्ध करा सकता। लोग टीप करके अपनी बात कर देते। मेरे एक लोड़ किए गए गाने को 16 हजार लोगों ने डाउनलोड किया। सस्ता शेर की शायरी को उठा-उठाकर मोबाईल कंपनियां एसएमएस जोक बनाकर बाजार में बेच रही है। हम इस तरह अपने ह्यूमन पॉवर को क्यों जाया होने दें? मेरे पास एक रफ आइडिया है चेक करने के,आत्म नियंत्रण के समय मिला तो कल इसकी विस्तार से चर्चा करुंगा।
अफलातून ने खुले अंदाज में अपनी बात रखते हुए कहा कि- खुले विश्व के बंद होत दरवाजे- हिन्दुस्तान में मैंने एक लेख लिखा। कल हमसे सवाल-जबाब किए जाएंगे कि कहां से पैसा आ रहा है। विदेशों में ये काम शुरु हो गयी है। एक अंश में हम आत्म-मुग्धता के शिकार हैं। मसिजीवी ने जो पर्सनल होने की बात कही है,ये बहुत खतरनाक बात है। इमरजेंस एक ग्रंथ है इंटरनेट और चीतों को लेकर अध्ययन पक्षियों को लेकर जो व्यवहार है,वही व्यवहार है इंटरनेट की दुनिया में।। चींटे का व्यवहार और झुण्ड का व्यवहार वैसे ही इन्टरनेट पर एक प्रयोक्ता का व्यवहार है। हमें सही दिशा में बातों को ले जाएं ये बहुत जरुरी है। इ-स्वामी, इ-पंडित की चर्चा इन्होंने भी अनामी थे...हमें इनके योगदान को भी नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। बेनामी टिप्पणियां अगर सकारात्मक तौर पर हो तो फिर उसमें क्या आपत्ति हो सकती है। अभी ब्लॉगिंग हम कोई क्रांतिकारी नजरिया नहीं आ रहा है। टेक्नीकली सीख लिए और निपट दिए। जरुरी है कि एक सामूहिक घोषणा जारी हो..इलाहाबाद से एक घोषणा जारी हो। वीकीपीडिया में योगदान करने की जरुरत है। इसे हिन्दू वीकीपिडिया या मुस्लिम वीकिपीडिया नहीं बनने दें। हमें जिम्मेदारी तो हर हाल में निभानी होगी।
अब ब्लॉग पर कायदें की बहसें नहीं होती। जब तक पहुंचता हूं तब तक धूल उड़ती नजर आती है। मेरे ब्लॉग पर ऐसा कुछ नहीं होता कि बेनामी कमेंट किए जाएं लेकिन करते हैं और भद्दे तरीके से करते हैं। ब्लॉगिंग ने भाषा का कोई नया मुहावरा नहीं रचा है। अजीत वडनेरकर को आज ही गाड़ी से दिल्ली जाना था इसलिए उन्होंने बहुत ही संक्षेप में अपनी बात रखते हुए संभावनाओं की तरह बढ़ने पर जोर दिया।
कलकत्ता से आए प्रियंकर ने कहा कि- मैं बेनामी पर कहना चाहूंगा। किसी से हर समय नाम की उम्मीद करना सही नहीं है। ये अतिरिक्त मांग है। पचास प्रतिशत यानी आधे ब्लॉगर्स को एक जन्म और लेना पड़ेगा अनामदास,सृजनशिल्पी,ई-स्वामी और घुघूती बासुती जैसा लिखने के लिए ये अपनी पहचान नहीं बताना चाहते तो क्या दिक्कत है? इन्होंने बहुत ही बेहतर तरीके से लिखा है। बेनामी कोई बहुत बड़ा मुद्दा नहीं है। असल चीज है कि कंटेंट पर बात होनी चाहिए। अगर वो छद्म नाम से लिखते हों तो क्या दिक्कत है।
ब्लॉगरों के अतिरिक्त इस सत्र में इसी विश्वविद्यालय के पत्रकारिता विभाग से एम.फिल कर रही एक स्टूडेंट उमा साह ने बताया कि उसने ब्लॉग की भाषा पर रिसर्च किया है और वो इस नाते अपनी बात रखना चाहती है। उन्होंने कहा कि ब्लॉग में अभी भी किसी भी तरह की सेंसरशिप नहीं है इसलिए इसमें मुख्यधारा की मीडिया से बहुत आगे जाने की गुंजाइश है और इसे भी हमें चौथे खंभे के तौर पर विकसित किए जाने चाहिए।
अलग-अलग मौके पर उठापटक के बीच ये सत्र यहीं समाप्त होता है। रातभर की यात्रा की वजह से बुरी तरह थका हूं। कल ब्लॉगःभाषा और संप्रेषणीयता के सवाल पर मुझे अपनी बात रखनी है। आपसे माफी मांगते हुए कि मैंने कई जगह बिना बारीकी से पढ़ते हुए सत्र के दौरान टाइप की गई लाइनों को चस्पा दिया है। आप उन्हें सुधारकर पढ़ लेंगे। मैं और मेहनत करने की स्थिति में बिल्कुल नहीं हूं। इन सबके बीच दुखद पहलू है कि जिस डिजिटल रिकार्डर से मैं अब तक आपके लिए संगोष्ठियों के ऑडियो वर्जन उपलब्ध कराता रहा वो सभागार की डेस्क पर से सत्र खत्म होने के साथ ही गायब हो गया। एक भावनात्मक जुड़ाव और आर्थिक क्षति की वजह से परेशान हूं। मूड़ खराब है,खुश होने के लिए इतना है कि इलाहाबाद में खाने की व्यवस्था बड़ी दुरुस्त है,मेरे हॉस्टल मेस से कई गुना बेहतर।..
http://test749348.blogspot.com/2009/10/blog-post_23.html?showComment=1256321301948#c4246948533630665256'> 23 October 2009 at 11:08
@''....तो आप सफल ब्लॉगर नहीं हो सकते। ''
Who wants to be one yar ? ha..ha..ha...O my good lord now a new concept 'a safal bloggar'!
http://test749348.blogspot.com/2009/10/blog-post_23.html?showComment=1256321425159#c1346433615901936963'> 23 October 2009 at 11:10
@''आनेवाले समय में ये राज्य लिखने के मामले में दखल करे इससे पहले ही चिठ्ठाकारों को चाहिए की वो अपनी जिम्मेदारी को समझते हुए स्वयं अनुशासित हों।''
Sickening! isn't it ?
http://test749348.blogspot.com/2009/10/blog-post_23.html?showComment=1256322266381#c3350192026398071780'> 23 October 2009 at 11:24
इतनी सारी बहस के बाद जो खाने की व्यवस्था अच्छी न होती तो?
मुझे लगता है कि सारी थकान के बावजूद बहस बहुत अच्छी रही। ब्लागिरी में जितनी बातें अक्सर उठती हैं वे सभी वहाँ भी उठनी चाहिए थीं। पर लगता यह है कि सब केवल अपनी बात ही कह पाएंगे। विमर्श गायब हो जाएगा। कल का दिन अभी दूर है पर यह भी लगता है कि वहाँ भी ब्लागर अपनी अपनी ब्लागिंग का ही नमूना पेश कर रहे हैं।
http://test749348.blogspot.com/2009/10/blog-post_23.html?showComment=1256322570616#c4103561528327002052'> 23 October 2009 at 11:29
सम्मेलन में जितने भी अच्छे मुद्दों पर विचार किया गया है और जो सामने लाए गए हैं। वे विश्वास दिला रहे हैं कि ब्लॉगिंग सिर्फ विचारों की जॉगिंग नहीं है। बहुत सार्थक हो रहा है और होता रहेगा। तकनीक का पूरा लाभ मानस को मिलेगा और यह किसी के रोके से या व्यवधान पैदा करने से रूकने वाला नहीं है। जहां पर अकारण या सकारण विवाद हों वहां से हटना ही श्रेयस्कर है। जो रास्ता या गली पसंद न आये वहां देखना भी नहीं चाहिए। इस प्रकार के अच्छे उपायों से हम अपना ही नहीं, समाज का भी भला कर सकेंगे और कर रहे हैं। जो ब्लॉग की चमक धमक में अपना नाम सामने लाने की हवस में, बेबात ही विवाद पैदा कर रहे हैं, उनकी उम्र कितनी भी हो। पर उनसे सही बात कहने वालों को कोई नुकसान कभी नहीं पहुंचने वाला।
सम्मेलन अवश्य ही सफल है। जब आप जैसे मेहनती और धुन के धनी वहां पर रमे हुए हैं तो धन का नुकसान भी आपके उत्साह, जोश और जज्बे का बाल भी बांका नहीं कर पाएगा। सभी बाल काले ही रहेंगे। सबको लुभाते ही रहेंगे।
http://test749348.blogspot.com/2009/10/blog-post_23.html?showComment=1256323665134#c8702788306292052176'> 23 October 2009 at 11:47
BAHUT BADHIYA PRASTUTIKARAN HAI...
MAZA AA GAYA
ALLAHABAD SE HO KAR BHEE AAJ AAP LOGON KE SAATH SHAMIL NAHI HO PAYA
BADA WORK LOD THA
SARA KAAM NIPTA LIYA HAI
DOOSRA DIN MISS NAHI KAROONGA AUR AAPSE BHEE MULAKAT HOGI :)
VENUS KESARI
http://test749348.blogspot.com/2009/10/blog-post_23.html?showComment=1256324959512#c529935543173039165'> 23 October 2009 at 12:09
एक बात तो भूल गया
मेरे लिए पुस्तक की एक प्रति
अवश्य खरीद कर ले आइयेगा।
http://test749348.blogspot.com/2009/10/blog-post_23.html?showComment=1256324959513#c7261787481379348821'> 23 October 2009 at 12:09
विस्तृत जानकारी के लिए शुक्रिया
http://test749348.blogspot.com/2009/10/blog-post_23.html?showComment=1256326544576#c7341174672417095551'> 23 October 2009 at 12:35
मस्त रिपोर्टिंग ...
सफ़ल ब्लागर, अराजकता से घबराहट, ब्लॉगिंग को दिशा , बाहरी डंडे से हकने के संभावना, स्वतंत्रता और स्वछंदता, अनामी को निकाला ...
ब्लोगिंग की दिशा उसकी अराजकता से ही आयेगी । हां, ज्यादा आंजने की कोशिश की जायेगी तो अंधी जरूर हो जायेगी ।
जिस दिन ब्लोगर अपनी बात लिखने से डर लगने लगेगा ब्लॉगिंग ब्ल्लॉगिंग नहीं रह जायेगी ।
इतिहास में पहली बार तो बिना किसी बिचौलिये (संपादक) के लिखी हुई बात प्रकाशित हो पा रही है ।
जब अपनी बात कहते समय विद्वानों के डन्डॆ सिर पर रहने लगेंगे तो कुछ और हो सकती है लेकिन ब्लोगिंग नहीं ।
मैं मसिजीवी से काफ़ी हद तक सहमत हूं ।
भारत में तो कभी ऐसी नई चीजों की शुरुआत नहीं हो सकती । हां यदि कहीं से सीख कर शुरू कर दी गई तो उसकी वाट जरूर लगा दी जायेगी ।
http://test749348.blogspot.com/2009/10/blog-post_23.html?showComment=1256327068347#c3178408942274740511'> 23 October 2009 at 12:44
विनीत जी, आज के दिन उद्घाटन सत्र व द्वितीय सत्र में जो कुछ हुआ उसका यह विवरण आपने बहुत परीश्रम से तैयार किया है इसके लिए साधुवाद। बहुत गहमागहमी और शोर शराबे के क्षण भी आए जिसमें कई बातें सुनी नहीं जा सकीं। लेकिन आपने यह रिपोर्ट लिखकर सबके नुकसान की भरपाई कर दी।
कार्यक्रम के आयोजन से जुड़े होने के कारण मैं आपकी इस मेहनत के लिए विशेष आभारी हूँ। यह रिपोर्ट बहुत दिनों तक पढ़ी जाएगी।
आज सभागार का वातावरण पूरी तरह हिन्दी चिट्ठाजगत के आभासी संसार की प्रतिकृति के रूप में हमारे सामने था। वार्ताकारों ने टिप्पणियों और प्रतिटिप्पणियों के बीच अपनी बात मजबूती से रखी। अनेक कुशल चिट्ठाकारों ने तत्क्षण (ऑन लाइन) रिपोर्टिंग/ ब्लॉगिंग का नमूना पेश किया। सबकुछ हमारी उम्मीद से बेहतर मिला। भले ही कुछ लोगों ने असन्तोष में मुँह टेढ़ा कर लिया हो लेकिन निस्सन्देह यह आयोजन हिन्दी चिट्ठाकारिता के विद्यार्थियों और प्रयोगकर्ताओं के लिए सन्दर्भ के रूप में जाना जाएगा। विशद विषयों की परास, अखिल भारतीय स्वरूप और अपनी गम्भीर चर्चा के लिए इस आयोजन को जरूर याद किया जाएगा।
आपसे एक अनुरोध है कि थकान मिट जाने के बाद अपनी इस रिपोर्ट को थोड़ा परिमार्जित और सम्वर्द्धित करते हुए हिन्दुस्तानी एकेदेमी को उपलब्ध करा दें। इसका प्रकाशन एकेडेमी द्वारा प्रकाशनाधीन पुस्तक ‘ब्लॉगपोस्ट’ में किया जाना बहुत उपयोगी होगा। बता दें कि इस पुस्तक में हिन्दी चिट्ठाकारी की दुनिया से चयनित सौ चिट्ठों से चुनिन्दा पोस्टों का प्रतिनिधि संकलन प्रस्तुत करने की योजना है।
पुनः साधुवाद।
http://test749348.blogspot.com/2009/10/blog-post_23.html?showComment=1256327963701#c2253000565686624067'> 23 October 2009 at 12:59
आज सुबह के उद्घाटन सत्र से लेकर दिन के समापन तक आप तस्वीरों सहित कार्यवाही प्रस्तुत करते रहे । इसके लिये सबसे पहले आपकी मेहनत को मै सलाम करता हूँ । आपके वॉइस रिकॉर्डर के गुम हो जाने का दुख है । कल पूछियेगा भूलवश किसीके पास रह गया हो ।दिन भर तस्वीरें देखने के अलावा शाम को बोधि भाई अजित जी गिरिजेश राव से फोन पर बातें भी हुई । बहुत से ब्लॉगर्स ने इस मे रुचि ली इसका अर्थ यही है कि भौतिक रूप से न सही लोगो की उपस्थिति तो दर्ज होती रही। यदि अधिक लोगो को आमंत्रण मिलता तो कार्यक्रम मे भी उपस्थिति अच्छी होती । 33 लोगो की सूची किस आधार पर बनाई गई यह समझ मे नही है आया । खैर यह अच्छी बात कि शुरुआत तो हुई । प्ररम्भिक अवस्था में इन बातों पर चर्चा अवश्यम्भावी है । जैसे जैसे आगे सम्मेलन होते जायेंगे और बातें तय होती जायेंगी । यहाँ लेखन के अलावा तकनीक भी एक महत्वपूर्ण पक्ष है ।अनावश्यक बातचीत से बचा नहीं जा सकता क्योंकि सभी अच्छे वक्ता नहीं होते और सार्थक मुद्दों का चयन सम्भव नहीं हो पाता । भटकाव की गुंजाइश बनी रहती है । यही ब्लॉगिंग मे भी होता है ।जो लोग कम्प्यूटर स्क्रीन पर अपने पारिवारिक व मैत्री सम्बन्ध बना चुके हैं वे भौतिक रूप से मिलकर प्रसन्न ही होते है इसलिये आपस में बातचीत और कुशलक्षेम पूछने की प्रक्रिया पर भी रोक नहीं लगाई जा सकती। ब्लोग की पोस्ट का पुस्तकाकार आना कुछ समझ मे नही आया । इस पर भी बात हो यदि इसका औचित्य सिद्ध हो तो सभी भविष्य मे इस बात को ध्यान मे रख्कर पोस्ट लिखे । प्रकाशन व्यवसाय का भी भला होगा । आयोजकों के विषय में फिलहाल कुछ नही कहा जाना चाहिये । यह समय नहीं है भोजन और निवास की उत्तम व्यवस्था मन का क्लेष कम कर देती है । बाकी बातें कल । -शरद कोकास
http://test749348.blogspot.com/2009/10/blog-post_23.html?showComment=1256344159274#c4783212801036952653'> 23 October 2009 at 17:29
इतिहास में पहली बार तो बिना किसी बिचौलिये (संपादक) के लिखी हुई बात प्रकाशित हो पा रही है ।
इस वाक्य में ब्लागबाजी की महत्ता को समझा जा सकता है। जो लोग डायरेक्ट ब्लागिंग में आए हैं वो शायद इस बात को नहीं समझ पाएंगे। ब्लाग उनके लिए मनोरंजन या फिर अपनी व्यक्तिगत अभिव्यक्ति का साधन हो सकता है। लेकिन जो लोग संपादकों के पैर तले कसमसाते रहे हैं निसंदेह ब्लाग ने उनकी उर्जा को एक नया अयाम दिया है। जहां तक अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर सरकार के डंडा उठाने की बात है तो जब सरकार जब डंडा उठाएगी तब देखा जाएगा। अभी से इस शोक में दुबले होने की जरूरत नहीं है। ब्लाग के इतिहास और भूगोल की चर्चा तो ठीक है, लेकिन इसे किसी व्याकरण में बांधने की बात करना न सिर्फ अव्यवहारिक है बल्कि इसकी धारा को कुंद करने वाली बात भी है। ब्लाग में करवट लेते हुये समाज को स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है, इस पर उगले जाने वाले शब्दों में दमकता हुआ आग है, और उसकी तपिश दूर तक जा रही है। असल मामला है ब्लाग को आम जन से जोड़ना, इसी पर लिखी जाने वाली बातें यदि प्रकाशित होकर लोगो तक पहुंचती है तो निसंदेह एक नई सरसराट पैदा होगी।
सत्यार्थमित्र’ का विमोचन को इसकी शुरुआत है, ब्लाग जगत के कंटेंट को संग्रहित करके धड़ाधड़ लोगों के बीच फेंकने की जरूरत है और यह होगा और बहुत बड़े पैमाने पर होगा। सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी जी से इसकी शुरुआत हो चुकी है। ब्लाग संचार का मुख्य धारा बन चुका है, इसे मानने से अब किसी को परहेज नहीं करना चाहिये, इस पर लोग विभिन्न स्तर पर उम्दा लेखन कर रहे हैं....blog....बोले ते बेबाक लेखन आपोजिट गटर.....ब्लाग की भाषा स्वतंत्र होगी, स्वतंत्र विचारों की तरह...नये मारक शब्द तो गढ़े ही जा रहे हैं ब्लागों पर, अपना लय और ताल यह खुद तय करेगा।
एक बार फिर अकर्जेश के शब्दों को दोहराता हूं...इतिहास में पहली बार तो बिना किसी बिचौलिये (संपादक) के लिखी हुई बात प्रकाशित हो पा रही है ।
कितना अच्छा होता इस वाक्य को दूसरे दिन के कार्यक्रम में दीवारों पर चिपका दिया जाता.....अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता जिंदाबाद....
http://test749348.blogspot.com/2009/10/blog-post_23.html?showComment=1256346261503#c4850387521008090618'> 23 October 2009 at 18:04
सही, सटीक व निष्पक्ष रिपोर्टिंग.... और त्वरित भी| इतने समर्पण व निष्ठा से अपनी थकान, ऑडियो रेकार्डर की गुमशुदगी व दिन भर की मारामारी के बाद वैचारिक विमर्श का ठोस व यथातथ्य विवरण देना बड़ा साधना का काम है| साथ साथ नोटिंग करना और उन्हें क्रमवार प्रस्तुत करना भी कौशल की अपेक्षा करता है.| इसके लिए मेरा धन्यवाद लो|
घटना क्रम तो सुबह से अलग अलग ब्लॉग पर पता चला रहा था किन्तु विमर्श की संभावनाओं के बारे में जानने की उत्सुकता का शमन अब हुआ |
ऐसे आयोजन इस मीडिया माध्यम को अधिक सतर्क, सही व बड़े सरोकारों से समन्वित करने की दिशा में एकमत होने की संभावनाओं की दृष्टि से सार्थक ही हैं| परस्पर संवाद की स्थितियाँ बनें तो मुद्दों पर बात होने व निष्कर्ष तक पहुँचने की राह खुलती ही है, खुलेगी ही| यही अभीष्ट भी है|
http://test749348.blogspot.com/2009/10/blog-post_23.html?showComment=1256347163364#c7393588773202680568'> 23 October 2009 at 18:19
टिप्पणीकारी विधा पर भी बातचीत होना चाहिये...यह भी एक संपूर्ण विषय है.विस्तृत जानकारी के लिए शुक्रिया.
http://test749348.blogspot.com/2009/10/blog-post_23.html?showComment=1256349790720#c4207529731194293359'> 23 October 2009 at 19:03
अचानक पाबंदियां ख़त्म होने से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के पुराने ठेकेदार दर गए हैं.
समुचित रपट के लिए धयवाद
http://test749348.blogspot.com/2009/10/blog-post_23.html?showComment=1256349866832#c6480164401064587628'> 23 October 2009 at 19:04
आपकी रिपोर्ट भी हिन्दी ब्लागिंग का एक नमूना है कि किस गम्भीरता से लोग काम कर रहे हैं- बिना किसी आर्थिक लाभ के क्या कोई इतनी त्वरित रिपोर्ट दिखाई देती है ?
बल्कि हाल तो ये हैं कि छोटे शहरों के पत्रकारों की पूरी जमात तो ऎसे किसी भी कार्यक्रम की रिपोर्ट बनाने के लिए भी आयोजकों को ही कह देते हैं कि लिख कर दे दें बस, अपने पास तो समय नहीं है।
आभार मित्र रिपोर्ट से अवगत कराने का। हिन्दी ब्लागिंग के उस चरित्र पर भी बात होनी चाहिए जिसमें क्मपूटर में दक्ष लोगों की एक पूरी फ़ौज सच में बिना कोई लालच के हर नये ब्लागर को मद्द कर रही होती है। वहां ईर्ष्या का वह भाव भी नहीं होता कि दूसरा कैसे अपने ब्लाग को बिल्कुल निराले ढंग से सजा ले। हां, हिंदी ब्लागिंग भी जब आय का स्रोत बनने लग जाएगी और पूंजी अपना रूप दिखाने लगेगी तो तब भी क्या यही स्थिति बनी रहेगी, इस पर संदेह हो सकता है। पर हिन्दी ब्लागिंग का वर्तमान एक जनतांत्रिक पहल का रूप तो दिखा ही रहा है।
http://test749348.blogspot.com/2009/10/blog-post_23.html?showComment=1256351950394#c1149335408155482170'> 23 October 2009 at 19:39
अच्छी रिपोर्टिंग । बहुत बढिया तरीके से विवरण लिखा गया है।
http://test749348.blogspot.com/2009/10/blog-post_23.html?showComment=1256352295013#c7218308444085513734'> 23 October 2009 at 19:44
रिपोर्ट के लिये धन्यवाद।
http://test749348.blogspot.com/2009/10/blog-post_23.html?showComment=1256353156077#c5563948240926103390'> 23 October 2009 at 19:59
विनीत जी बहुत ही अच्छी रिपोर्टिंग...बधाई...समीरलाल जी बिलकुल ठीक कह रहे हैं...
http://test749348.blogspot.com/2009/10/blog-post_23.html?showComment=1256354352543#c6283062450591822965'> 23 October 2009 at 20:19
विनीत भाई, विस्तृत रिपोर्टिंग के लिेए साधुवाद...
उड़न तश्तरी वाले समीर जी के सुझाव पर गौर किया जाना चाहिए...
जय हिंद...
http://test749348.blogspot.com/2009/10/blog-post_23.html?showComment=1256354799721#c2369036032302527014'> 23 October 2009 at 20:26
वाह बहुत ही दिलचस्प रिपोर्टिंग। और आपके डिजिटल रिकार्डर खोने का दुख हमें भी हो रहा है जिस चीज से आत्मीयता हो जाती है, उसका जाना दुखता ही है।
http://test749348.blogspot.com/2009/10/blog-post_23.html?showComment=1256355063461#c6639392804012600628'> 23 October 2009 at 20:31
बेहतरीन रिपोर्ट। आपके नुकसान की खबर कल की गहमागहमी में हमें भी पता नही चली फिर देर शाम वहां से विदा होने के बाद दिल्ली के लिए रवाना हो गया।
आज दिन के कार्यक्रम पर नजर रहेगी।
http://test749348.blogspot.com/2009/10/blog-post_23.html?showComment=1256372670981#c2544702632376969019'> 24 October 2009 at 01:24
reporting achi rahi, par masla wahi ki star kaise sudhre. gambhirta kaise aaye, jisse mahaul acha bane.
http://test749348.blogspot.com/2009/10/blog-post_23.html?showComment=1256394284563#c3950363553796500806'> 24 October 2009 at 07:24
पहुँच की दृष्टि से टीवी सबसे आगे पहुँच गया है . समाचार पत्र लोग नहीं पढ़ते या देखते लेकिन सीरियल जरूर देखते हैं . भारत में और वह भी हिंदी ब्लोगिंग शैशव अवस्था में है . सरकार की योजना हर ग्राम तक इन्टरनेट पहुचाने की तो है लेकिन कब यह पहुँचेगी और क्या भरोसा सरकार ब्लॉग जैसे शशक्त माध्यम पर अपना नियंत्रण न रखना चाहे . मोबाइल ब्लोगिंग एक महत्वपूर्ण मध्यम जरूर बन सकता है .
आपकी जिजीविषा काबिले तारीफ़ है
http://test749348.blogspot.com/2009/10/blog-post_23.html?showComment=1256397477892#c5073420512393618953'> 24 October 2009 at 08:17
बहुत बढिया रिपोर्ट। सारे मुद्दे एक जगह पाये गए। आशा है अब तक आपका रिकार्डर मिल गया होगा। नहीं भी तो, मूड तो ठीक कर लीजिए, कल की रिपोर्टिंग के लिए:) अच्छी रिपोर्ट के लिए आभार॥
http://test749348.blogspot.com/2009/10/blog-post_23.html?showComment=1256407605080#c7101067314338601523'> 24 October 2009 at 11:06
"अभिव्यक्ति के नए माध्यम पर बात करने आयी मीनू खरे ने अपना पूरा समय ब्लॉग के इतिहास,अभिव्यक्ति के संवैधानिक प्रावधानों के वर्णन में खपा दिया। उनकी प्रस्तुति से ब्लॉग-इतिहास की एक अच्छी समझ बनने की संभावना हो सकती थी लेकिन एक तो विषय से भटक जाने औऱ दूसरा कि रवि रतलामी की ओर से पहले ही सत्र में इन सब बातों पर चर्चा कर दिए जाने की वजह से ऑडिएंस ने कोई दिलचस्पी नहीं दिखायी और कुछ भी निकलकर सामने नहीं आने सका। जबकि मीनू ने आते ही घोषणा की थी कि बात निकली है तो फिर दूर तलक जाएगी।"
विनीत जी आपने मेरे नाम से यह टिप्पणी किसकी प्रस्तुति के बारे में लिखी है?आप द्वारा उल्लेखित विषय "अभिव्यक्ति के नए माध्यम" तो मेरा टॉपिक ही नही था और न ही ब्लॉगिंग इतिहास पर मैने कोई प्रस्तुति की. मेरा टॉपिक था "अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और निहित खतरे" जिसमें मैने कानूनी प्रावधानों की चर्चा ज़रूर की और यह मेरे टॉपिक के अनुरूप था.बात निकलेगी तो फिर दूर तलक जाएगी का यह आशय था कि अभिव्यक्ति की आज़ादी का ग़लत इस्तेमाल करने वाले लोग अंतर्राष्ट्रीय स्तर के अपराधी भी सिद्ध हो सकते है और सज़ा के पात्र बन सकते है. इसके लिए मैने साइबर अपराध के प्रसिद्ध केसेज़ की चर्चा भी की.
इस तथ्यहीन रिपोर्टिंग पर आश्चर्य ही व्यक्त कर सकती हूँ.निवेदन है कि लिखने से पहले, कंटेंट न सही मगर कम से कम टॉपिक तो याद रखा ही करें.
शुभकामनाएँ.
http://test749348.blogspot.com/2009/10/blog-post_23.html?showComment=1256431129809#c8216390582498933588'> 24 October 2009 at 17:38
विनीत जी फिर घूम फिर कर यहाँ आया तो मीनू जी के इस बयान को पाया । अच्छे रिपोर्टर ऐसी गलतियों के लिये तुरंत खेद प्रकट कर देते हैं ।
http://test749348.blogspot.com/2009/10/blog-post_23.html?showComment=1256447826269#c3999793461353383491'> 24 October 2009 at 22:17
शरदजी मैं आपका सम्मान करते हुए मीनूजी और आप सब लोगों से माफी मांगता हूं कि मैंने मीनूजी के विषय-शीर्षक को सही-सही नहीं पेश कर पाया लेकिन मीनूजी आप एक बार फिर क्रॉस चेक कर ले तो बेहतर होगा कि आपको किस विषय पर बोलने के लिए बुलाया गया था और आपने वहां क्या बोला? आप मंच से बोल रहीं थी इसलिए आपको अंदाजा नहीं लग पा रहा होगा कि आप जो बोल रहीं थी उसे ऑडिएंस किस रुप में ले रहीं थी। उनके बीच गहरा असंतोष था। आपने जिन तथ्यों को सामने रखा और जो बातें की,उसका एक-दूसरे से कोई मेल भी नहीं था। आपको मेरी रिपोर्टिंग स्तरहीन लगी कोई बात नहीं लेकिन आपको इस बात का ख्याल तो रखना ही होगा कि सामने की ऑडिएंस की क्या अपेक्षा है। कई बार हम सामने बैठी ऑडिएंस को इस तरह से समझ लेते हैं कि उन्हें बेसिक बातों तक की समझ नहीं लेकिन ऐसा होता है क्या? पीछे बैठे कई लोगों ने असंतोष जाहिर किया था कि हम बीए की क्लास करने नहीं आए थे। मैं रिपोर्टिंग कर रहा थआ इसलिए मेरी ये जिम्मेदारी बनती थी कि मैं आपको इस बात से अवगत कराउं। फिर भी आपको ये सारी चीजें स्तरहीन लगी हों तो एक बार फिर से आपसे माफी मांगता हूं। लेकिन इतना जरुर कह सकता हूं..आप जिस बात निकली है तो दूर तलक जाएगी का कमेंट के तौर पर संदर्भ बता रहे हैं,प्रस्तुति के समय ये नहीं था। मेरे तो रिकार्डर की ही चोरी हो गयी नहीं तो मैं आपकी कही गयी बातों का ऑडियो वर्जन ही लोड कर देता।..
http://test749348.blogspot.com/2009/10/blog-post_23.html?showComment=1256451120878#c2459547089170131989'> 24 October 2009 at 23:12
"मीनूजी आप एक बार फिर क्रॉस चेक कर ले तो बेहतर होगा कि आपको किस विषय पर बोलने के लिए बुलाया गया था और आपने वहां क्या बोला?"
एक बार फिर तुमने वही ग़लती की विनीत ! मैने तो अपनी टिप्पणी में लिख ही दिया कि मेरी प्रस्तुति का शीर्षक आप द्वारा उल्लेखित विषय "अभिव्यक्ति के नए माध्यम" नही था और न ही ब्लॉगिंग इतिहास पर मैने कोई प्रस्तुति की. मेरा टॉपिक था "अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और निहित खतरे" जिसमें मैने कानूनी प्रावधानों की चर्चा ज़रूर की और यह मेरे टॉपिक के अनुरूप था.बात निकलेगी तो फिर दूर तलक जाएगी का यह आशय था कि अभिव्यक्ति की आज़ादी का ग़लत इस्तेमाल करने वाले लोग अंतर्राष्ट्रीय स्तर के अपराधी भी सिद्ध हो सकते है और सज़ा के पात्र बन सकते है. इसके लिए मैने साइबर अपराध के प्रसिद्ध केसेज़ की चर्चा भी की.
आयोजकों ने मुझे जिस् विषय पर बोलने के लिए आमंत्रित किया था मैने वही बोला. अच्छा होता कि तुम आयोजकों के साथ बैठ कर इसे क्रॉस चेक कर लेते तब नेगेटिव रिमार्क लिखते. मेरे पास मेरी प्रस्तुति का पॉवर प्वाइंट मौजूद है विनीत जो एक लिखित डॉक्यूमेंट है. तुम्हारे अनुसार मेरी प्रस्तुति को पसन्द नही किया गया पर विनीत उसी ऑडिएन्स में बैठे " Indian Institute of Mass Communication" के एक प्रतिनिधि की तरफ़ से यह प्रस्ताव मुझे मिला है कि मैं इसी विषय पर एक रिसर्च पेपर इंस्टीट्यूट के लिए प्रस्तुत करूँ.
विनीत मैं तुमसे बहुत सीनियर हूँ इस नाते एक स्नेहिल सलाह है कि रिपोर्टिग एक बहुत ज़िम्मेदारी भरा दायित्व है अत: एक एक शब्द सोच समझ कर लिखने की कोशिश करो.
आपके उज्ज्वल भविष्य की कामना के साथ,
मीनू खरे
http://test749348.blogspot.com/2009/10/blog-post_23.html?showComment=1256451669773#c8472450769233592569'> 24 October 2009 at 23:21
बधाई! आपके कार्य की जितनी प्रशन्सा की जाय कम है.
http://test749348.blogspot.com/2009/10/blog-post_23.html?showComment=1256452657187#c5500677354056506009'> 24 October 2009 at 23:37
not even 30 post have been written by meenu khare and she is a invite how abit ghughuti bhasuti , how about ranjana bhatia and how about r anurahda none of them were found qualified to reperesent hindi blogger
was this really about bloging
or was it a group who wanted to promote themselfs
and there in comments both you and meenu are jsutifying your won view points
http://test749348.blogspot.com/2009/10/blog-post_23.html?showComment=1256457036525#c1888103287241594834'> 25 October 2009 at 00:50
बहुत सही बात कही है एस आर भाई. आयोजकों ने अनुभवहीन ब्लॉगरों को बुलाया. इससे ही आयोजकों का जी नही भरा उन्होने नामवर सिंह जैसे अनुभवहीन व्यक्ति को मुख्य अतिथि भी बना लिया जिन्होने ब्लॉग पर पोस्ट लिखना तो दूर, अभी तक अपना ब्लॉग भी नही बनाया है. नामवर ज़रूर उस ग्रुप में से होंगे जो जबरन अपना प्रोमोशन करने आए थे. वैसे एस आर भाई अँग्रेजी में टिप्पणी लिखना बन्द कर दो. तुम्हारी टिप्पणी में कई स्पेलिंग मिस्टेक्स हैं.जस्टीफाइंग की स्पेलिंग गलत लिखी है और देमसेल्फ नही होता देमसेल्व्स होता है एसआर भाई.
http://test749348.blogspot.com/2009/10/blog-post_23.html?showComment=1256461129179#c7484822711203549660'> 25 October 2009 at 01:58
कृपया सही कर दें :
पचास प्रतिशत यानी आधे ब्लॉगर्स को एक जन्म और लेना पड़ेगा अनामदास,सृजनशिल्पी,ई-स्वामी और घुघूती बासुती जैसा लिखने के लिए ।
http://test749348.blogspot.com/2009/10/blog-post_23.html?showComment=1256464559074#c3487168308251804478'> 25 October 2009 at 02:55
सही कर दिया प्रियंकरजी,शुक्रिया। आपलोग इसी तरह से संशोधन कराते रहें। अच्छा लगेगा। मीनूजी,सीनियर-जूनियर जैसे संबोधनों औऱ संबंधों में यकीन नहीं रखता फिर भी आपसे माफी इस बात से मांग रहा हूं कि मेरी रिपोर्ट से आपकी भावना को ठेस पहुंची हैं। बाकी आपके सुझाव ही हमें बेहतर बनाएंगे..आप आइआइएमसी जब भी आएं,हमें जरुर सूचित करें,अच्छा रहेगा मिलना- 09811853307
http://test749348.blogspot.com/2009/10/blog-post_23.html?showComment=1257095193308#c4595487405664604961'> 1 November 2009 at 09:06
सुधार लें : " इमरजेंस एक ग्रंथ है इंटरनेट और चीतों को लेकर अध्ययन पक्षियों को लेकर जो व्यवहार है,वही व्यवहार है इंटरनेट की दुनिया में।" चीतों की जगह चीटों कर लें। एक चींटे का व्यवहार और झुण्ड का व्यवहार वैसे ही इन्तरनेट पर एक प्रयोक्ता का व्यवहार और झुण्ड का व्यवहार ।