
शोरुम के आगे लगी प्लास्टिक की एक कठपुतली की हिप पर हाथ फिराते हुए उस लड़के ने कहा- क्या सामान है!आगे साथ चल रही दो लड़कियों ने जल्दी से पीछे मुड़कर देखा कि कहीं पीछे से कोई मनचला उस पर कमेंट तो नहीं कर रहा। तब तक उसके साथ के दूसरे लड़के ने हाथ फिराते हुए कहा- सचमुच यार। लड़कियां समझ गयी कि ये उसे नहीं कहा जा रहा है बल्कि कठपुतलियों को देखकर कहा जा रहा है,सच्चाई ये भी है कि हमें देखकर कठपुतलियों को कहा जा रहा है। लेकिन सीधे-सीधे वो उनसे बहस करने के बजाय इतना ही कहा- फ्रस्टू है स्साला। अपने इलाके की लड़कियां होती तो शायद कहती, घर में मां-बहन नहीं है क्या।
कमलानगर में दो दूकानें ऐसी हैं जहां गार्मेंट से ज्यादा उनके यहां कठपुतलियां हैं,ये मुहावरा हो सकता है लेकिन वाकई उनके यहां बहुत सारी कठपुतलियां हैं औऱ सबों को वो फैशन के हिसाब से ड्रेस पहनाकर शोरुम के आगे लगाए रहते हैं। एक शो रुम है बेसमेंट में है, उसके उपर कलर प्लस और किलर का शोरुम है। यहां कम से कम बीस-पच्चीस कठपुतलियां तो जरुर होगी। अक्सर इन्हें बहुत छोटे कपड़े पहनाकर आगे लगाते हैं,स्कर्ट या फिर शार्ट पैंट। बदलते फैशन की झलक इस शोरुम से गुजरते हुए आपको आसानी से मिल जाएंगे। लड़कियों और कठपुतलियों को एक-दूसरे से जोड़कर लड़को को आपस में कोहनी मारते हुए,ठहाके लगाते हुए और कमेंट करते हुए सबसे ज्यादा यही देखता हूं।
एक शोरुम प्रेम स्टुडियो के सामने है। उस शोरुम में भी करीब 15-20 से बीस कठपुतलियां हैं। इन दिनों देखा कि सबों को हल्के पिंक कलर की नाइट शूट पहना रखा है। एक तो नाइटी, दूसरा कि प्रिंटेड कुर्ते और नीचे ढीला पायजामा। सबों का स्टफ बिल्कुल ट्रांसपेरेंट। एक बार साथ घुमते हुए पोल्टू दा ने कहा- सोने की चीज को पहनाकर इन लड़कियों को दुकानदार ने खड़ा क्यों कर रखा है,सही चीजें सही जगह पर ही होनी चाहिए। फिर वही ठहाकें।
मुझे याद है कि जब भी घर जाता हूं और दूकान पर बैठने का मौका मिलता है, आसपास के दूकानदार कठपुतलियों के कपड़े को शटर गिराकर बदलते हैं। अव्वल तो वो रात में ही बदलते हैं। लेकिन दुकानदारों में एक बेचैनी होती है कि जो आइटम नया-नया आया है उसे जल्दी से जल्दी से डिस्प्ले कर दो। उनका मानना होता है कि डिस्प्ले करने के दिन कुछ न कुछ वो आइटम तो बिकता ही है। अगर आइटम दोपहर को आया है तो ऐसी स्थिति में वो शटर नीचे गिरा देते हैं, फिर साइड में ले जाकर इन कठपुतलियों के कपड़े बदलते हैं। ये बहुत कॉमन है। मैंने कभी नहीं देखा कि वो पब्लिकली उनके कपड़े बदलते हों।
एक बार पास के एक दूकान में काम करनेवाले लड़के को कहते सुना- गजब ठरकी है स्साला बुढ़वा, हमसे कह दिया कि इस साड़ी का मैचिंग ब्लाउज लेकर आओ औऱ आए तो देखा कि कठपुतलिए पर हाथ फिरा रहा है। एक मानसिकता ये भी है। हमारे शहर में दिल्ली की तरह हाट लगता है,दिनों के नाम के हिसाब से इनके नाम होते हैं। इसमें से एक हाट का नाम होता है मंगला हाट। शहर में जिन लोगों के स्थानीय दूकान हैं,वो अपने पेंडिग माल के साथ दूकान के किसी एक-दो स्टॉफ को भेज देते हैं। इस हाट में चाहे कुछ भी कितना ही घटिया सामान ले जाओ, बिक जाएंगे। लड़के माल के साथ-साथ कठपुतलियां भी ले जाते हैं लेकिन वो पूरे नहीं होते। बस उपर का हिस्सा। एक तो लाने,ले जाने में परेशानी और फिर मंहगे भी होते हैं, हाट में इतनी धक्का-मुक्की होती है कि अगर गिर जाए तो बिजली-बत्ती गड़बड़ा जाती है। मंगला हाट में आमतौर शहरी लोग सिर्फ सब्जियों औऱ छोटी-मोटी चीजें खरीदने जाते हैं,वहां से कपडे,बर्तन,जूते जैसी चीजें नहीं खरीदते। इसे खरीदनेवाले कस्बों से आए लोग होते हैं। झुंड की झुंड लड़कियां, इन्हीं कस्बों और आसपास के गांव से आयी लड़कियां। लड़के जब ठीक-ठाक कपड़े बेच लेते हैं तब जोश में आ जाते हैं फिर लड़कियों को देखकर चिल्लाते हैं- ये लो,ये लो सामान के लिए बढ़िया सामान,बाजिब दाम में सामान के लिए सामान। हाट-बाजार में लगानेवाली हांक पर गौर करें तो उसका एक बड़ा हिस्सा ग्राहकों पर किया जानेवाला व्यंग्य होता है,दूकानदार चुटकी लेते नजर आते हैं।
कठपुतलियों को लेकर मसखरई औऱ लड़कियों पर फब्तियां कसे जाने के लिहाज से देखें तो 360 का सर्किल पूरा हो जाता है जिसमें किसी न किसी रुप में बाजार में शामिल अलग-अलग लोग आ जाते हैं, सामान बेचनेवाले दूकानदार से लेकर खरीदार तक,ये कहते हुए कि...स्साला अब ऐसी कठपुतली बनने लगा है कि लगता है सच्चोमुच्चो कोई लड़की खड़ी है और परपोज कर रही है
http://test749348.blogspot.com/2009/04/blog-post_02.html?showComment=1238741100000#c7495323430874638030'> 2 April 2009 at 23:45
मैं अपने ब्लॉग की तरह
http://test749348.blogspot.com/2009/04/blog-post_02.html?showComment=1238743080000#c7613669292153153707'> 3 April 2009 at 00:18
बेहद सटीक लहजे में लिखा है आपने। ये चीजें तो हर बाजार की बातें हैं दिल्ली हो या कोई और शहर। हां समय के साथ लडकियों का व्यवहार जरूर बदल गया है इन कमेंटृस पर जैसा कि आपने लिखा है। बढिया।
http://test749348.blogspot.com/2009/04/blog-post_02.html?showComment=1238743320000#c5931971343811015816'> 3 April 2009 at 00:22
नहीं शीर्षक के अनुसार कुछ भी ऐसा नहीं लगा पढ़कर । और इस तरह की बातें आपने बतायी पढ़कर नया अनुभव मिला ।
http://test749348.blogspot.com/2009/04/blog-post_02.html?showComment=1238747220000#c6710887322279903634'> 3 April 2009 at 01:27
बाजारवाद में स्त्री-देह और उसकी छवि का दोहन/दुरूपयोग इस रूप में होता रहा है।
http://test749348.blogspot.com/2009/04/blog-post_02.html?showComment=1238749740000#c4343559917291668419'> 3 April 2009 at 02:09
हर बार की तरह
एक खूबसूरत पोस्ट
कम से कम अश्लील तो बिल्कुल नहीं
http://test749348.blogspot.com/2009/04/blog-post_02.html?showComment=1238749920000#c5347033240531240221'> 3 April 2009 at 02:12
यही सब लड़कियाँ करने लगें तो क्या लोग बर्दाश्त कर लेंगे। नहीं कर पाएंगे। दरअसल स्त्री को लोग संपत्ति मानते हैं। चाहे पास में हो या न हो।
http://test749348.blogspot.com/2009/04/blog-post_02.html?showComment=1238766360000#c5456431123538990316'> 3 April 2009 at 06:46
वही बात है हुजुर लेडिस लोग (आपके शब्द चुराकर कह रहा हूँ)को तो हर जगह ऑब्जेक्ट ही माना जाता है.ये तो महज एक बानगी है तो कठपुतलियों डमी के सहारे सामने आई है.
http://test749348.blogspot.com/2009/04/blog-post_02.html?showComment=1238769180000#c8010706787640844404'> 3 April 2009 at 07:33
स्त्री हो या स्त्री का पुतला, हर हाल में वह केवल सामान ही है। लाख अपनी परम्पराओं की दुहाई दे दीजिए यत्र नारी... वाला ब्रह्म वाक्य बोलकर कहिए कि हमारे समाज में तो पूजी जाती हैं, कैसे यह तो प्रतिदिन घरों, सड़कों व टी वी में देखने को मिलता है। वैसे जैसा चल रहा है वसा ही चलता रहा तो स्त्रियाँ बचेंगी ही कहाँ फिर उनके पुतले ही शेष रह जाएँगे।
घुघूती बासूती
http://test749348.blogspot.com/2009/04/blog-post_02.html?showComment=1238813580000#c4886482629312631457'> 3 April 2009 at 19:53
सुन्दर! बाजार के किस्से अच्छे सुनाये! पोस्ट तो कत्तई अश्लील नहीं है!
http://test749348.blogspot.com/2009/04/blog-post_02.html?showComment=1238818320000#c2111420934576523410'> 3 April 2009 at 21:12
sateek tipnni vineet.
http://test749348.blogspot.com/2009/04/blog-post_02.html?showComment=1238822400000#c5759129044441419535'> 3 April 2009 at 22:20
बाजारीकरण और सोच को अच्छी तरह लिखा है आपने
http://test749348.blogspot.com/2009/04/blog-post_02.html?showComment=1238824440000#c5742630450760763724'> 3 April 2009 at 22:54
nice post...
http://test749348.blogspot.com/2009/04/blog-post_02.html?showComment=1238861940000#c7391699472230671245'> 4 April 2009 at 09:19
बहुत खूब लिखा है ..मैंने सोंचा नही था कभी इस बारे में. ..और हाँ आपका लेख अश्लील तो बिलकुल नही है.
http://test749348.blogspot.com/2009/04/blog-post_02.html?showComment=1239602040000#c2297521063957486724'> 12 April 2009 at 22:54
yahan par mujhe anayas devi ki pratima khaskar durga ki murti banane wale kalakar yaad aa gyae...unke liye kya we pratima mahaz aik utpad hoti hai, ya use banate waqt aik astha bhaw se sanchalit hokar wo pratima kewal jagat janni hi ho sakti hai?
aik behtarin post jo stree ke wastukaran ke sath uski dummy ko bhi sex toy ke rup mein dekhiti hai, ki mansikta ko saamne laati hai.