जनसंख्या वृद्धि के लिए स्त्रियां ही जिम्मेवार है, इस विषय के विरोध में बोलते हुए जैसे ही मेरे मुंह से निकला कि - मैं मानती हूं कि, तभी सेमिनार हॉल में बैठे लोग ठहाके मारने लग गए। कुछ की तो हंसी रुकने ही नहीं पा रही थी कि लड़का होकर भी मानती हूं कैसे बोल गया। पीछे से एक भाई जो कि शायद मेरे विरोध में बोलने वाला था, जोर से चिल्लाया- अजी जब आपको स्त्रीलिंग-पुल्लिंग का ज्ञान नहीं है तो फिर आप बोलने कैसे चले आए. पहले जाकर आप पता कीजिए कि आप मानता हूं वाले बिरादरी से हैं या फिर मानती हूं वाले बिरादरी से। उसकी इस बात पर लोग फिर ठहाके मारने लग गए। अधिकांश लोगों के चेहरे पर भाव इस तरह से थे कि- नहीं ऐसा इसने महज भावावेश में बोल दिया है। ऐसा कैसे हो सकता है कि उसे इतना भी ज्ञान न हो। मंच से उतरने के बाद लोगों ने यही कहा कि- बोलते तो बहुत जोरदार हो, लेकिन अपना लिंग कैसे भूल गए।
खैर, उस समय तो मैंने संभाल लिया। मैंने सीधे कहा- अध्यक्ष महोदय, जो समाज एक क्रिया में पुरुष की जगह स्त्री के प्रयोग हो जाने पर इतने ठहाके लगा रहा है, विरोध कर रहा है, आप उस पुरुष प्रधान समाज से इस बात की उम्मीद कैसे कर सकते हैं कि वह स्त्रियों के पक्ष में काम करेगा, स्त्रियों की जगह अपने को रखकर देखेगा। सच्चाई तो यह है कि पितृसत्तात्क समाज स्त्रियों के पक्ष में किसी भी तरह के बदलाव का विरोधी है, वह इसे पचा ही नहीं पाता कि कोई हम जैसा युवा, स्त्री-भावना को ध्यान में रखकर सोचे, समझे। अपना काम भी बन गया था। जजेज मेरी इस वाक् पटुता पर बहुत खुश थे। अंत में उन्होंने कहा भी था कि- हालांकि इसने मानती हूं का प्रयोग गलत किया है लेकिन जिस तरह बात को संभाला है, उसकी मैं कायल हूं। और वैसे भी हर पुरुष के भीतर एक स्त्री तो होती ही है और कभी-कभी पुरुष न बोलकर भीतर की स्त्री बोलने लग जाए तो इसमें बेजा क्या है। मुझे कुछ साहित्य सहित ४०० रुपये मिले थे।
उस दिन मैं रांची यूनिवर्सिटी के सेमिनार हॉल में वाद-विवाद प्रतियोगिता में बोल रहा था, जिसका विषय था- जनसंख्या वृद्धि के लिए देश की स्त्रियां जिम्मेवार है। मेरी ही तरह कॉलेज के करीब ३५ लोग बोल रहे थे। तब झारखंड बोलकर कोई अलग राज्य नहीं था, सब बिहार ही था। शुरु मे जब चार-पांच लोगों ने बताया कि - हां स्त्रियां ही जनसंख्या वृद्धि के लिए जिम्मेवार है, तो मैं एकदम से भड़क गया. मैं वहां बोलने भी नहीं गया था। मैं बस रांची वीमेंस कॉलेज की एक रीडर के साथ गया था जो कि स्त्री-विमर्श पर एक पत्रिका निकालती थी- नारी संवाद। पत्रिका के नए अंक का लोकार्पण था और उन्होंने मेरे एचओडी को कहा था कि जेवियर्स से भी कुछ बच्चों को आने बोलिए। कॉलेज आइडी लेकर गया था, इसलिए मैम की थोड़ी सी पैरवी के बाद मुझे बोलने का मौका मिल गया।
मैं खुश था और मैम भी खुश थी। वहां से ले जाकर मुझे गाड़ी में बिठाया और सीदे चुरुवाले के यहां ले गयी। जमकर खाया और लिफाफे से निकालकर आधे पैसे मैने दिए। उसने मजाक में कहा- स्त्रियों की तरफदारी करने पर चार सौ मिले है, एक स्त्री पर कुछ खर्च करना तो बनता ही है। बाद में उसने सारा किस्सा हमारे हिन्दी के बांग्लाभाषी एचओडी को सुनाया, जिनका मानना था कि वहां तो लोगों ने स्त्रीलिंग के प्रयोग पर ठहाके लगा दिए लेकिन सच्चाई यही है कि एक आम बिहारी का लिंग ज्ञान बहुत ही कमजोर होता है।

पांच लेडिस आ रहा है, उसको पुलिस पकड़कर धुन दिया, बस चला तब हमको ध्यान आया कि अरे, बेग तो लिए ही नहीं। बिहार में लेडिस, पुलिस, बस के लिए पुल्लिंग का प्रयोग आम बात है। इस प्रयोग के लोग इतने अभ्यस्त हैं कि कोई व्याकरणिक रुप से सही होते हुए भी इसके लिए स्त्रीलिंग का प्रयोग करता है तो वहां के लोगों को सुनने में अटपटा लगता है। दिल्ली से जाने पर मेरी कोशिश होती है कि ऐसा ही करुं तो कुछ लोग व्यंग्य भी कर देते हैं- बुझ गए कि तुम दिल्ली में रहते हो। अब बेसी मत छांटो और फिर मैं उसी रंग में रंग जाता हूं।
इसके ठीक उलट दूसरी स्थिति यह भी है कि कोई भी आम बिहारी जब दिल्ली में नया-नया आता है तब वो लिंग, श और स को लेकर ओवर कॉन्शस होता है। मेरा एक जूनियर साथी अभी तक इस फेर में सुमन को शुमन बोलता है। मेरे टोकने पर तर्क देता है-जाने दीजिए, शलजम को सलजम तो नहीं बोलते। इसके अलावे कई ऐसे शब्दों का प्रयोग करता है जो कि पुल्लिंग होते हैं। आप कह सकते हैं कि दिल्ली आने से वह भाषा के स्तर पर वो स्त्री प्रधान समाज रचने लग जाते हैं। दिल्ली आने पर अधिकांश चीजें स्त्री रुप में दिखने लग जाती है
लिंग की बात मुझे इसलिए सूझी कि मेरी एक दोस्त ने फोन पर कहा कि- यार, तुम बड़े डिवेटर रहे हो, स्कूल में बच्चों को एक डिवेट तैयार करानी है, कुछ माल-मटेरियल मेल कर दो और साथ में जोड़ दिया कि- चिंता मत करना लड़कों के लिए मैं मानती हूं कि जगह मानता हूं खुद कर लूंगी। बुरा मान गए. मैंने हंसते हुए कहा- अरे नहीं, सच्चाई यही है कि मैं जब भी कोई लेख किसी को छपने देता हूं तो एक बार जरुर कह देता हूं, लिंग का मामला आप अपने स्तर से देख लेंगे। मेरे एक- दो दोस्त जो कि पत्रिका निकालने का काम करते हैं, सबकुछ हो जाने पर हंसते हुए कहते हैं- यार, सारा काम हो गया, अब एकबार किसी गैरबिहारी से प्रूफरीडिंग करानी है।
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7 Response to 'मैं मानती हूं, उर्फ बिहारियों का लिंग ज्ञान'
  1. PD
    http://test749348.blogspot.com/2008/09/blog-post_20.html?showComment=1221976080000#c5122471792688218157'> 20 September 2008 at 22:48

    आपका लेख पढ़ कर मजा आया..
    मगर मैं ऐसा नहीं मानता हूँ..
    कम से कम अपने घर में ऐसा मैंने नहीं पाया है..

     

  2. pravin kumar
    http://test749348.blogspot.com/2008/09/blog-post_20.html?showComment=1222008720000#c7250760974052048198'> 21 September 2008 at 07:52

    sadhoo....sadhoo

     

  3. ज्ञान
    http://test749348.blogspot.com/2008/09/blog-post_20.html?showComment=1222018740000#c2158246563136518319'> 21 September 2008 at 10:39

    'हर पुरुष के भीतर एक स्त्री तो होती ही है'

    लगता कुछ ऐसा ही है

     

  4. Udan Tashtari
    http://test749348.blogspot.com/2008/09/blog-post_20.html?showComment=1222031340000#c7337527100470482623'> 21 September 2008 at 14:09

    अच्छा लगा पढ़कर.

     

  5. miHir pandya
    http://test749348.blogspot.com/2008/09/blog-post_20.html?showComment=1222166640000#c3229741737586236340'> 23 September 2008 at 03:44

    गाहे-बगाहे को जन्मदिन की घनघोर गरजती-बरसती बधाइयाँ! उम्मीद है की अगले जन्मदिन पर हमें और बड़ी पार्टी मिले!

     

  6. lovemaster
    http://test749348.blogspot.com/2008/09/blog-post_20.html?showComment=1242725880000#c1192655433870709363'> 19 May 2009 at 02:38

    आपका बिहारियों के लिंग संबंध्री जानकारी अच्छी है परंतु पूर्णतया सही नहीं है। कम पढे बिहारी को छोड दें तो पढे लिखे बिहारियों का हिन्दी और लिंग ज्ञान बाकी लोगों से अच्छा है।
    www.brandbihar.com

     

  7. lovemaster
    http://test749348.blogspot.com/2008/09/blog-post_20.html?showComment=1242726240000#c4126075574189987476'> 19 May 2009 at 02:44

    आपका बिहारियों के लिंग संबंध्री जानकारी अच्छी है परंतु पूर्णतया सही नहीं है। कम पढे बिहारी को छोड दें तो पढे लिखे बिहारियों का हिन्दी और लिंग ज्ञान बाकी लोगों से अच्छा है।
    www.brandbihar.com

     

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