
धनतेरस की शाम थी। मेरा दोस्त कुमार कुणाल दिल्ली आजतक के लिए लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलेज से लाइव रिपोर्टिंग कर रहा था। बहुत भावुक था वो। नीचे हॉस्टल गेट पर सभी के लिए एक-एक पैकेट मोमबत्ती,मिठाई का डिब्बा,माचिस और बाकी दूसरी चीजें रखी थी। गार्ड साहब हॉस्टल के हर रेसीडेंट को बता रहे थे- सर,लीजिए ये आपके लिए है। मेस सेक्रेटरी ने कहा है-हॉस्टल का कोई भी बंदा हो तो उसे एक-एक पैकेट लेने के लिए बोलना। बहुत कम ही लोगों ने लिया था पैकेट। बम विस्फोट के बाद किसी का मन नहीं हो रहा था की मिठाई खाए। इन सबके बीच मैं मोमबत्ती का पैकेट लेकर कॉमन रुम में कान में एफएम लगाए सुन रहा था और साथ ही कुणाल की रिपोर्टिंग भी देख रहा था।टीवी पर बार-बार बम बिस्फोट में मारे गए परिजनों के फुटेज दिकाए जा रहे थे। उन्हें रोते हुए दिखाया जा रहा था। कुणाल बता रहा था कि फलां पास से मोमबत्ती लाने गया था सो अभी तक नहीं आया। सब लोग बदहवाश एक-दूसरे को खोज रहे थे. चारो ओर अफरातफरी मची थी। दस मिनट तक लगातार देखता रहा था मैं। शुरु-शुरु में तो टीवी देखते हुए भी ध्यान एफएम पर था। आवाज आ रही थी- रेडियो मिर्ची सुन रहे हैं आप और अगला गाना है.....कजरारे-कजरारे। मैं टीवी की फुटेज और एफएम में कोई संतुलन नहीं बना पा रहा था. एक पर लगातार बम बिस्फोट की खबरें,चीखते-चिल्लाते लोग और दूसरे पर रेडियो मिर्ची सुननेवाले ऑलवेज खुश का दावा। मन पूरी तरह भन्नाया हुआ था। एक बार तो मन में आया कि बंद कर दूं इसे, बड़ा ही बेशर्म माध्यम है। यहां लोगों की जान जा रही है और ये लगातार बेमतलब की बातें और गाने सुनाए जा रहा है। लेकिन मैंने दो घंटे तक एफएम बंद नहीं किया।मैं इंतजार कर रहा था कि अब इसके बाद वो दिल्ली बम धमाके के बारे में कुछ बात करेंगे, कुछ अफसोस जताएंगे। जो लोग एफएम सुन रहे हैं उन्हें कुछ जानकारियां देंगे। लेकिन गाने चलते रहे और दिल्ली बम बिस्फोट पर कोई बात नहीं हुई। पहली बार मुझे वाकई बहुत गुस्सा आ रहा था एफएम पर। मैं कुछ और तो नहीं इसकी जिंदादिली माहौल बनाने का कायल रहा हूं। दिल्ली में जब भी मन उदास हुआ है, डिप्रेशन आया है,एफएम ने मु्झे बहुत साथ दिया है। दिल्ली से बाहर जाने पर सबसे ज्यादा यहां के एफएम को मिस करता हूं। लेकिन आज इधर से या उधर से किसी भी तर्क के सहारे एफएम के इस रवैये को मैं जस्टीफाई नहीं कर पा रहा था। जिंदादिली के नाम पर क्या केवल खुश ही हुआ जा सकता है। जीवन की सच्चाई के बीच से खुशी को इस तरह बीन-बीनकर अलग कर लेना और बाकी दर्द को,तकलीफ को ऐसे ही छोड़ देना इतना आसान है। एफएम कुछ ऐसा ही कर रहा था। अंत में भारी मन से मैंने एफएम बंद कर दिया और देर रात तक टीवी से चिपका रहा।अबकी बार दिल्ली में दूसरी बार हुए बम बिस्फोट के वक्त मैं देश-दुनिया से कटा बिल्कुल एकांत में पड़ा था। पिछले पांच दिनों से भारी थकान और कमजोरी की स्थिति में भी लोगों का लगातार आना-जाना बना हुआ था। फोन पर इतनी व्यस्तता बढ़ गयी थी कि मैं झल्ला-सा गया था। दिल्ली में हो,जरा दरियागंज से फलां-फलां चीजें खरीद लेना. गया से मामू आ रहे हैं,दो दिन रहेंगे जरा देख लेना। दिनभर की चिड़चिड़ाहट औऱ रात होने पर दर्द के एहसास के बीच मैं बुरी तरह पिस रहा था। इन सबके बीच कब दे रहे हो विनीत लेख, बेटा लेट हो रहा हूं या फिर यार इस बार क्या हो गया। अंत में मैंने मोबाइल बंद किया, एक बैग में कुछ कपड़े डाले औऱ दूसरे बैग में पढ़ने-लिखने की चीजें और पंकज भैय्या के पास इस विश्वास से चला गया कि डॉक्टर हैं-मुझे राहत मिल जाएगी,वहां जाने से।पिछले चार साल में पहली बार हुआ है कि मैंने चार दिनों तक टीवी नहीं देखा, रेडियो नहीं सुना, बॉलकनी से उठाकर अखबार तक नहीं पढ़ा। भैय्या की नाइट शिफ्ट चल रही थी और वो सुबह आते ही सो जाते। मैं बालकनी तक जाता ही नहीं,अखबार उठाने। कम्प्यूटर पर मेल नहीं खोलता। दिनभर भसर करने का शौकीन मैं किसी से बात नहीं करना चाह रहा था, किसी के बारे में जानना नहीं चाह रहा था। चार दिनों तक बस लेख लिखता रहा।पांचवे दिन वहां से सारा सामान लेकर वापस अपने हॉस्टल आया। दस बजे पहुंचने पर पता चला कि आज दिल्ली में शाम को बम बिस्फोट हुआ है। मैं टीवी देखता इसके पहले सिमकार्ड डालकर मोबाइल फोन ऑन किया और फिर से एफएम सुनने लगा। सभी चैनलों पर ऑडिएंस से कहा जा रहा था- आपको किसी के बारे में कोई भी जानकारी लेनी हो,कुछ भी बताना हो,हमें फोन करें। आपको किसी भी तरह की मदद चाहिए रेडियो मिर्ची आपके साथ है। लगभग सारे चैनलों पर इसके बारे में कुछ न कुछ बातें की जा रही है। कॉलर अगर फोन कर रहे हैं तो पहली ही बात कह रहे हैं-दिल्ली के लोगों का दिल बड़ा है, हम आतंकवादियों के नापाक इरादे को पूरा नहीं होने देंगे। हालांकि सारी बातों में जज्बातों के अलावे कुछ भी नहीं था। फिर भी एफएम सुनते हुए लग रहा था कि अबकी बार धमाके का असर एफएम पर भी हुआ है। सारे जॉकी पीडितों के प्रति संवेदना व्यक्त कर रहे हैं।टीवी देखना अगले ही दिन संभव हो सका. पहले तो स्टार,फिर जी और फिर बाकी के सारे चैनलों पर एक ही बात- तीन-तीन ड्रेस बदले थे शिवराज पाटिल ने उस दिन औऱ फिर एंकर का थोक के भाव में फोन लाइन और फील्ड पर मौजूद रिपोर्टरों से सवाल। सब पाटिल पर आकर अटके थे। हादसे की खबर को राजनीतिक खबर बनाने की प्रक्रिया बड़ी तेजी से चल रही थी। लोगों की कराह फील्ड से आकर डेस्क तक ही रह जाते। स्टूडियो तक आने तक में दम तोड़ जाते। इसके बीच मरनेवाले, उनके परिवारवालों और सरकारी कार्यवाइयों से जुड़ी खबरों का स्पेस कम हो रहा था। अगले दिन अखबार ने फ्रंट पर पाटिल को भी छापा। चैनल तीन बिंडो काटकर पीटिल की तीन ड्रेस दिखाने में लगे रहे।आज इंडियन एक्सप्रेस ने खबर छापी है-
RADIO ACTIVE : FM stations did their bit to help stunned Delhities on terror weekend
रेडियो सिटी की जॉकी सिमरन को एक ऑडिएंस ने फोन करके बताया कि आपलोगों ने बहुत अच्छा काम किया है। आप इस मुश्किल घड़ी में भी लोगों का हौसला बनाए रखा। आपकी हंसी बहुत अच्छी है और आपको पता है आपकी तस्वीर इंडियन एक्सप्रेस में छपी है। सिमरन फिर हंसती है...औऱ थैंक्यू कहती है।आप क्या कहते हैं कि इस तीन साल में एफएम का विरेचन हुआ है औऱ न्यूज चैनलों को हर बात में झौं-झौं करने की आदत पड़ गयी है। भटके हुए देश में क्या चैनल भी खबरों से हमें भटकाने की कोशिश करते हैं।
RADIO ACTIVE : FM stations did their bit to help stunned Delhities on terror weekend
रेडियो सिटी की जॉकी सिमरन को एक ऑडिएंस ने फोन करके बताया कि आपलोगों ने बहुत अच्छा काम किया है। आप इस मुश्किल घड़ी में भी लोगों का हौसला बनाए रखा। आपकी हंसी बहुत अच्छी है और आपको पता है आपकी तस्वीर इंडियन एक्सप्रेस में छपी है। सिमरन फिर हंसती है...औऱ थैंक्यू कहती है।आप क्या कहते हैं कि इस तीन साल में एफएम का विरेचन हुआ है औऱ न्यूज चैनलों को हर बात में झौं-झौं करने की आदत पड़ गयी है। भटके हुए देश में क्या चैनल भी खबरों से हमें भटकाने की कोशिश करते हैं।
http://test749348.blogspot.com/2008/09/blog-post_16.html?showComment=1221634020000#c35218951143306356'> 16 September 2008 at 23:47
चलिए कुछ तो बदलाव की खबर आयी किसी जगह से...वरना टीवी न्यूज चैनलों को तो बहाना मिल गया था अपनी भांड-नचैयों वाली इमेज को बदलकर खुद को कुछ एक्टिव दिखाने का
http://test749348.blogspot.com/2008/09/blog-post_16.html?showComment=1221643320000#c891732108795886691'> 17 September 2008 at 02:22
चिट्ठे का जन्मदिन मुबारक हो
http://test749348.blogspot.com/2008/09/blog-post_16.html?showComment=1221654120000#c3047031903536220807'> 17 September 2008 at 05:22
आपका ब्लॉग हरेक मसलों पर ईमानदारी को बरकरार रखे, जैसा अब तक रखता आया है- एक साल पूरा होने के उपलक्ष्य पर भगवान से यही मेरी दुआ है।
http://test749348.blogspot.com/2008/09/blog-post_16.html?showComment=1221768660000#c330840538441529359'> 18 September 2008 at 13:11
saab,
har ek lekh me wahi jajba barkarar rakhna, accha lagta hai..bas lage rahiye..
http://test749348.blogspot.com/2008/09/blog-post_16.html?showComment=1221811140000#c8707670430581633883'> 19 September 2008 at 00:59
happy birthday to gaahe bagaahe
http://test749348.blogspot.com/2008/09/blog-post_16.html?showComment=1221872340000#c610177789935229596'> 19 September 2008 at 17:59
बहुत अच्छा लिखा है। साल गिरह की बधाई। गाहे-बगाहे हमारा पसंदीदा ब्लाग है। इसकी नियमितता बनायें रखें।
http://test749348.blogspot.com/2008/09/blog-post_16.html?showComment=1222008780000#c4113015921452897746'> 21 September 2008 at 07:53
vishaleshan ki takat dikhi