खबरों के नाम पर चिरकुटई का काम सिर्फ इंडिया टीवी और वहां के मीडियाकर्मी ही नहीं किया करते बल्कि इसमें ग्लोबल मीडिया तक शामिल है। अगर आप इंडिया टीवी पर पाखंड,अंधविश्वास,अनर्गल खबरों का प्रसार और खबरों के नाम पर रायता फैलाने का आरोप लगाते आए हैं तो एकबारगी आपको ग्लोबल मीडिया की तरफ भी आंख उठाकर देखना होगा। आमतौर पर एक औसत टेलीविजन ऑडिएंस के लिए शायद ये संभव नहीं है कि वो देश के तमाम चैनलों को देखते हुए ग्लोबल चैनलों को भी एक साथ वॉच करे। फिर ग्लोबल स्तर पर जो जरुरी खबरें होती हैं उसे सात संमदर पार,अराउंड दि वर्ल्ड, दि वर्ल्ड जैसे कार्यक्रमों के जरिए इन्हें शामिल कर लिया जाता है। इसलिए अलग से इन चैनलों को देखने की शायद बहुत अधिक जरुरत महसूस नहीं की जाती।
दूसरी स्थिति ये भी है कि बिना देखे-सुने ये मान लिया गया,एक अवधारणा सी बन गयी है कि जिस तरह हिन्दी के चैनल खबरों के नाम पर चिरकुटई करते हैं वो काम अंग्रेजी के चैनल नहीं करते और ग्लोबल मीडिया तो करती ही नहीं। इस देश की ऑडिएंस ने ग्लोबल मीडिया को बिना बहुत बारीकी तौर पर देखें ही पाक-साफ होने का प्रमाण पत्र और ऑथेंटिसिटी लेटर जारी कर दिया है। मामला ये भी है कि औसत दर्जे की ऑडिएंस विदेशी और ग्लोबल मामलों को बहुत बारीकी से गौर नहीं पाती शायद इसलिए भी वो ये समझ नहीं पाती कि इन एजेंसियों और चैनलों ने किस खबर को लेकर किस तरह का स्टैंड लिया। लेकिन
फीफा वर्ल्ड कप में ऑक्टोपस के जरिए जो भविष्यवाणी की बातें लगातार की जाती रही,हिन्दी चैनलों की तो बात ही छोड़िए,आठ पैर का पंडित ब्ला,ब्ला.. जिसे कि नेशनल और रीजनल चैनलों ने देसी मसाला मारकर हमें दिखाया-सुनाया,मुझे लगता है कि इस खबर को लेकर इनका विश्लेषण करने के बजाय ग्लोबल मीडिया का विश्लेषण कहीं ज्यादा होने चाहिए।जिसे ग्लोबल मीडिया ने भी लाइव दिखाया इस ऑक्टोपस एस्ट्रलॉजी की पैकेजिंग और मार्केटिंग ग्लोबल मीडिया ने जितने आक्रामक तरीके से किया उसे देखते हुए लगा कि इंडिया टीवी अभी भी इस मामले में बच्चा है। उसे अभी भी बहुत कुछ सीखने और समझने की जरुरत है। न्यूज बिजनेस पर गौर करें तो ये खबर पिछले तीन महीने में सबसे ज्यादा सेलबुल साबित होगी। ऐसे में जो भी मीडिया विश्लेषण इस आधार पर मीडिया की आलोचना करते आए हैं कि इस देश में शिक्षा का स्तर इतना नीचे है कि लोग पाखंड और अंधविश्वास से जुड़ी खबरें देखना पसंद करते हैं,उनका ये औजार भोथरा ही नहीं बेकार साबित होगा। आपमे अगर हिम्मत है तो कहिए कि दुनियाभर के वो लोग जाहिल हैं जिन्होंने कि ऑक्टोपस की भविष्यवाणी में दिलचस्पी ली। फिर आपके उपर जमाना हंसे इसके लिए तैयार रहिए।
स्थति ये है कि इस तरह की खबरें जिसे कि रेशनलिस्ट बेसिर पैर की बातें मानते हैं या फिर मार्केटिंग के लोग ये मानते हैं कि मामला कुछ भी नहीं है,सारा खेल मार्केटिंग का है-कल को आप जंतर-मंतर के आगे तोते लिए बैठे को पकड़कर ले आएं और उनकी मार्केटिंग कर दें तो वो देश का सबसे बड़ा भविष्यवेत्ता हो जाएगा,उनके लिए एक निष्कर्ष तो साफ है कि ग्लोबल स्तर पर भी इस तरह की खबरों का बड़ा बाजार है जिसका संबंध बौद्धिक स्तर और शिक्षा से न होकर एक खास तरह की टेम्पट सॉयक्लॉजी से है। सॉफ्ट स्टोरीज के नाम पर विदेशी एजेंसियों से जो फीड आती हैं उसमें ऐसी स्टोरियां भरी पड़ी होती है। हिन्दी न्यूज चैनलों पर अजब-गजब कारनामें,अजूबा,आठवां आश्चर्य आदि के नाम पर जो स्टोरीज चलती हैं उनकी सारी फीड एपीटीएन, रायटर जैसी एजेंसियों से आती हैं।
इंडिया टीवी पर चल रही एक स्टोरी को देखकर मैं पानी पी-पीकर गाली दे रहा था। स्टोरी थी कि एक बकरा ब्रेकफास्ट में डेढ़ किलो तंबाकू खाता है,लंच में तीन किलो और डीनर में तीन किलो तंबाकू। स्टोरी का नाम था-नशाखोर बकरा। स्टोरी देखते हुए गरिआ ही रहा था कि मेरे पास रायटर की फीड आयी जिसमें ये स्टोरी थी और मुजे भी अपने चैनल के लिए यही स्टोरी बनानी थी,फ्लेबर थोड़ी बदल भर देनी थी। कुल मिलाकर कहानी ये थी कि एक बकरा ऐसी जगह फंस गया था कि तंबाकू के अलावे आस-पास खाने की कुछ भी चीजें नहीं थी।
ऐसा लिखकर मैं किसी भी एंगिल से इंडिया टीवी के एप्रोच की तारीफ नहीं कर रहा और न ही उसका डीफेंड कर रहा लेकिन ये बात जरुर समझना होगा कि जिस स्टोरी को देखकर हम दांत पीसते हैं,हिन्दी चैनलों पर पाखंड फैलाने का आरोप लगाते हैं,खबरों के नाम पर रायता फैला देने की बात करते हैं,अंग्रेजी चैनल और ग्लोबल मीडिया उससे बरी नहीं है। ऑक्टोपस एस्ट्रलॉजी के बहाने हमें इसे समझने की जरुरत है।..
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
http://test749348.blogspot.com/2010/07/blog-post_10.html?showComment=1278748336451#c275972304817389053'> 10 July 2010 at 00:52
भारतीय-जर्मन भाई-भाई :-)
http://test749348.blogspot.com/2010/07/blog-post_10.html?showComment=1278748950739#c8648931918439791040'> 10 July 2010 at 01:02
सार्थक अभिव्यक्ति।
http://test749348.blogspot.com/2010/07/blog-post_10.html?showComment=1278748950740#c5003139187303208028'> 10 July 2010 at 01:02
भाई चिरकुटई पर किसी का कॉपीराइट तो है नहीं तो जिसे वो फ़ायदे का सौदा लगती है वो करने लगता है :)
http://test749348.blogspot.com/2010/07/blog-post_10.html?showComment=1278753262764#c8765623947483216885'> 10 July 2010 at 02:14
पाल वाला मामला अंधविश्वास से जुडा प्रतीत नही होता। कम से कम यहाँ जर्मनी मे तो नही। उसे यहाँ केवल एक मनोरंजन के तौर पर लिया गया। अब सुगबुगाहट यह कि जर्मनी से गद्दारी करने के जुर्म मे इसे पका कर खा लिया जाये। भारत की दशा शायद अलग है -- मनोरंजन, विज्ञान और आस्था - मान्यता सब गड्ड-मड्ड है। यहाँ पाल को कोई देव-दूत नही माना गया वरन यहाँ के मीडीया मे केवल उसे एक और मनोंरंजन के तौर पर देखा गया। जर्मन गजब के गंभीर लोग होते है - हर चीज के पीछे विज्ञान को आधार मे रखते हैं। वहीं भारत मे तोते को विज्ञान मान लेते हैं। अमरीकी मीडीया जरूर पाखंडी है। फाक्स तो संकीर्णता वाद का गढ है। अब क्या कहें।
http://test749348.blogspot.com/2010/07/blog-post_10.html?showComment=1278761943767#c8791263348489687521'> 10 July 2010 at 04:39
सही बात है चिरकुटई पर किसी एक का एकाधिकार हो ही कैसे सकता है
http://test749348.blogspot.com/2010/07/blog-post_10.html?showComment=1278782419180#c8932871806719949754'> 10 July 2010 at 10:20
पूरे कुँए में भंग पड़ गई है विनीत जी।
http://test749348.blogspot.com/2010/07/blog-post_10.html?showComment=1278847624211#c2485719186754370303'> 11 July 2010 at 04:27
बहुत अच्छी प्रस्तुति,विनीत जी....
http://test749348.blogspot.com/2010/07/blog-post_10.html?showComment=1279209400312#c5686961542994951408'> 15 July 2010 at 08:56
Agar koi kuen mein kood raha hai to us se hamara kuen mein koodna sahi nahi ho jaata. Desh ki media ka aisa patan hua hai ki samachar ke naam par samachar ke alawa sab kuchh hota hai.