बाजार भी कमाल की चीज है। कल तक जिस बीड़ी जलइएले.. गाती हुई,नंगी कमर को मटकाती हुई लड़की को देखकर देश के ठुल्ले तक अपने को रोक नहीं पाए,उस गाने का ऐसा असर कि अच्छों-अच्छों पर ठरक चढ़ जाए,आज उसी गाने के दम पर भक्ति पैदा करने के दावे किए जा रहे हैं। हिन्दी सिनेमा के पॉपुलर और सुपरहिट गानों की पैरोड़ी बनाकर मंदिरों,माता जागरण से लेकर पान की दूकान और चूडी-बिन्दी बेची जानेवाली दूकानों में बजाने का काम सालों से होता आया है। ऐसी पैरोड़ी बनाने में टी-सीरिज को महारथ हासिल है। गोरी हो कलइयां को बाबा के दुअरिया,पहुंचा दे हमें भइया,कांटा लगा,हाय लगा को भोले बाबा मिला,हाय मिला-हाय मिला और आंख है भरी-भरी को भक्त है दुखी-दुखी गाया-बजाया जाता है तो हमें जरा भी हैरानी नहीं होती। बल्कि हमने उसी परिवेश में रहकर अपने को धार्मिक पाखंड़ों से अलग किया है। हैरानी इस बात को लेकर हुई कि बीड़ी जलइएले गाने की पूरी पैरॉडी BIG 92.7 एफ.एम. पर सुनाई दिया। इसके पहले हमने ऐसी पैरॉडी किसी भी एफ.एम.चैनल पर नहीं सुनी।

वैसे तो धर्म,पाखंड और भक्ति की राह दिखानेवाले बाबा और धार्मिक अड्डे पहले से ही कई तरह के दावे करते रहे हैं लेकिन ये दावा पहली बार है कि बीड़ी जलइए गाने के बीच से भक्ति का सोता फूट सकता है। ये वही समाज है जहां स्त्री की हर निगाह,उसकी एक-एक हरकत धार्मिक कामों में बाधा पैदा करती रही है लेकिन धर्म का बाजार के साथ का ये गठजोड़ ही है जो उसके भीतर ऐसी कॉन्फीडेंस पैदा करता है कि जिस गाने को सुनकर शराब,कबाब और शवाब की तरफ मन स्भाभाविक तरीके से भटक जाया करता है,आज उस गाने से बीड़ी या सिगरेट जलाने के बजाय 'मातारानी'के लिए ज्योत जलाने का मन करने लग जाता है। गाने को गाते हुए अदाओं में चूर बिल्लो रानी का ध्यान न आकर मातारानी शेरोवाली का ध्यान आएगा। ये हम नहीं कह रहे हैं,गाने की पंक्तियों में ये बात शामिल है। धर्म और बाजार के गठजोड़ से पैदा ये धर्म का नया संस्करण है। एफ.एम चैनलों पर मनोरंजन और इस पैरोडी से लिस्नर और भक्त के बीच का एक कन्वर्जेंस।

इस देश मैं और संभव है कि इस दुनिया से बाहर भी धर्म का एक ऐसा संस्करण तेजी से पनप रहा है जिसने कि बाजार से,बॉलीवुड से,टीवी सीरियल से,रियलिटी शो से गठजोड़ करके अपने को रिडिफाइन किया है। धर्म के इस नए संस्करण से भक्ति कितनी और किस स्तर की पैदा होती है ये तो इसमें जो लोग शामिल होते हैं और हैं वही बता सकते हैं लेकिन इतना जरुर हुआ है कि बाजार ने अपनी ताकतों के दम पर धार्मिक पाखंड़ों के इस दायरे को जरुर बड़ा किया है. उन लोगों को खींचकर इस दायरे में लाने की जरुरी कोशिश की है जो आया तो अपने बाजार की हैसियत से है लेकिन आने के बाद से उसके दावे बाजार के छोड़कर धार्मिक होने के हो जाता है। ये धर्म और बाजार का फ्यूजन का दौर है कि जो बाजार के भरोसे जिंदा है उसे धार्मिक होते देर नहीं लगता और जो धार्मिक(भीमानंद सहित रोजमर्रा की जिंदगी से उकताए लोग)हैं उन्हें बाजार की तमाम तरह की सुविधाओं के बीच रहते हुए भी धार्मिक कहलाने की छूट मिल जाती है। ऐसा होने से धर्म,मूल्य,आस्था और अनास्था के सारे सवाल फैन कल्चर की तरफ मुड़ जाते हैं और सारा मामला स्टाइल और च्वाइस का हो जाता है। इससे धर्म की बात सुनकर भी धार्मिक होने का कम्पल्शन खत्म हो जाता है। दूसरी तरफ धर्म के भीतर प्लेजर और इंटरटेन्मेंट पैदा होने की गुंजाइश तेजी से बढ़ती है। अब ये अलग बात है कि धर्म के नाम पर दूकान चलानेवाले बाबाओं को खुशफहमी होती रहे कि उनके भक्तों की संख्या बढञती रहे,इधर बाजार भी इत्मिनान होता रहे कि चलो जिस धर्म की पताका त्याज्य और संयम पर टिकी रही है उसे हमने उपभोग तक लाकर खड़ा कर दिया।..इन दोनों में किसका दायरा बढ़ा है और कौन पिट रहा है,ये फैसला आप पर।

बीड़ी जलइए जिगर से पिया की नवरात्र के मौके पर पैरॉडी सुनने के लिए चटकाएं-
बीड़ी जलइएले से भक्ति
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6 Response to 'कल वो बीड़ी जलाती थी,आज से आप...जलाईए'
  1. डॉ .अनुराग
    http://test749348.blogspot.com/2010/03/blog-post_15.html?showComment=1268720680716#c1045564618389289996'> 15 March 2010 at 23:24

    बरसो से उन महान आत्माओ को ढूंढ रहा हूँ ....जो इत्ते क्रियटिव है जी......टी सिरिस वालो ने किसी गली में छुपा रखा होगा .....

    एक है चंचल...............जागरण के अमिताभ बच्चन

     

  2. bhuwan chandra
    http://test749348.blogspot.com/2010/03/blog-post_15.html?showComment=1268724987772#c7313018893766478927'> 16 March 2010 at 00:36

    very nice sir..........

     

  3. Sushil-Kunal
    http://test749348.blogspot.com/2010/03/blog-post_15.html?showComment=1268725416307#c7532036442847879074'> 16 March 2010 at 00:43

    एफएम को छोडो, बीडी जलैले की पैरोडी अभी हालिया प्रदर्शित फिल्म 'अतिथि तुम कब जाओगे' में भी है.

     

  4. कृष्ण मुरारी प्रसाद
    http://test749348.blogspot.com/2010/03/blog-post_15.html?showComment=1268731013592#c9091888618923483210'> 16 March 2010 at 02:16

    भारत में हर चीज को धार्मिक रूप दे दिया जाता है...संख्या बढ़ने से पाखण्ड बढ़ने लगता है....

     

  5. Parul
    http://test749348.blogspot.com/2010/03/blog-post_15.html?showComment=1268743026527#c4284172959874582315'> 16 March 2010 at 05:37

    dharm ke is naye version mein 'ichadhari,bheemanand' jaise pakhandi baba panap rahe hai,is se jyada kehne ki jarurat nahi.

     

  6. डॉ महेश सिन्हा
    http://test749348.blogspot.com/2010/03/blog-post_15.html?showComment=1268752398519#c4477190760267752044'> 16 March 2010 at 08:13

    हद हो गयी
    कहाँ है शिव सेना

     

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