मेरे पैदा होने के पहले ही मोहल्लेभर की चाचियों-दादियों ने मेरी मां की पेट का मुआयना कर लिया था। मां का पेट ढोल जितना बड़ा नहीं हुआ था,आठवां महीना होने के बाद भी। इसलिए सबों ने मिलकर घोषणा कर दी कि लड़की ही होगी। मां कहती कि होगी तो होगी,काहे लड़की अदमी का बच्ची नय होती है। मेरे पापा दो भाई हैं-एक पापा औऱ एक उनसे बड़े भाई यानी चाचा। हमलोगों की कभी नहीं बनी इनसे जिसकी जड़ में तात्कालिक रुप से मेरा पैदा होना भी है। मेरे पैदा होने के बाद से ही कटुता ज्यादा बढ़ी थी उस समय।...तो मामला सौ फीसदी तय था कि अबकी बार लड़की ही होगी।

मैं कमजोर पैदा होता हूं। किताबों की दुनिया में अंतिम संस्करण आमतौर पर पहले के बाकी संस्करणों से ज्यादा दुरुस्त होता है। लेकिन मां के बाकी बच्चों के हिसाब से मैं परिवार का अंतिम संस्करण बाकी भाई-बहनों से ज्यादा कमजोर और उपर से दूध न पचने की बीमारी लिए पैदा हुआ।। बहरहाल,चाचाजी जो कि मां के जेठ हुए,पहले से तय मिजाज से देखने आए कि लड़की ही हुई होगी। कमरे के बाहर मेरी मरियल सी रोने की आवाज ने उनके विश्वास को और भी पक्का कर दिया। अंदर आकर मां से पूछते हैं- क्या हुआ,मां ने कहा लड़का। उन्हें रत्तीभर भी भरोसा नहीं हुआ। मां बार-बार बताती है कि तब हम तुमको उघारकर दिखा दिए थे,चाचा का मन कसैला हो गया था कि लड़का हुआ है। बाहर आकर उन्होंने वक्तव्य दिया- हां तो गोतिया(भाई-भाई के संबंध को बिहार-झारखंड में यही कहते हैं)का पलड़ा कैसे नहीं बराबर होता। मतलब कि चाचा के तीन लड़के हुए और मां को अब तक दो ही औ तीसरा मैं आकर मां के समीकरण को दुरुस्त कर गया। मां अब भी कहा करती है कि तू तो गोतिया का पल्ड़ा बराबर करने के लिए पैदा हुआ है। संभवतः यही कारण रहा कि मेरे बाकी के भाई-बहनों को चाचा और उनके परिवार के लोग बर्दाश्त भी कर लेते लेकिन मुझे देखते ही खुन्नस खा जाते। बचपन से ही बोलचाल न होने पर भी कभी पढ़ाई,कभी संस्कार और कभी संगति का हवाला देकर मुझे धर दबोचते।

मेरे पैदा होने होने पर पापा को बिजनेस में भारी नुकसान हुआ। अतिक्रमण में दुकान भी शायद टूट गयी। सोचता हूं मेरी जगह अगर कोई लड़की पैदा होती तो उसे किस तरह कुलक्ष्णी बोलकर तबाह किया जाता। पापा को कई बार ऐसा लगा भी कि मेरे पैदा होने पर ये सब हुआ क्योंकि जब भी हमारे परिवार के इतिहास की व्याख्या मौखिक स्तर पर होती तो मेरे जन्म को संक्रमण काल के तौर पर रेखांकित किया जाता। उस समय कि व्याख्या कुछ इस तरह से की जाती कि अगर इसके पैदा होने के समय फलां-फलां नहीं हुआ होता तो झारखंड में रिलायंस के जितने मोबाईल टावर है वहां पापा का टावर लगा होता। मेरी मां अक्सर कहा करती है कि- इ बुतरु जेतना बात-झाडू सुना है,उ कभी भी लड़का होने का सुख नहीं है। जब तक नजर के सामने रहा,लात-बात खाकर बड़ा हुआ और मैट्रिक से ही घर से बाहर। इसलिए परिवार में एक दलित की तरह मां मेरे लिए हर मुद्दे पर रिजर्वेशन की मांग करती रहती है। सबने कपड़े लिए तो उसके हिस्से का खरीदकर रख दो,आएगा तो दे देंगे। यकीन मानिए,दीवाली के लडडू पूरे-पूरे महीने तक रखती है। उसे पता होता है कि मैं नहीं आ रहा फिर भी। मैं दिनोंदिन जितना नास्तिक होता जा रहा हूं मां हनुमान,गणेश और दुर्गा की तस्वीरें उतनी ही बढ़ाती जा रही है। बहरहाल,

पब्लिक स्कूल में पढ़ने पर क्लास के सारे बच्चे अपने जन्मदिन के मौके पर चॉकलेट और टॉफियां बांटा करते। रईसजादा हुआ तो किशमी टॉफी बार नहीं तो उस जमाने में मार्टन और मेलोडी से बाजार अटे-पड़े थे। साहित्यिक टाइप की पत्रिकाओं में इनके विज्ञापन आते। मैं सबके जन्मदिन की टॉफी खाता। मां से पूछता कि मां तुम मुझे एग्जैक्ट तारीख बताओ न अपने जन्मदिन की। मां भकुआ जाती। कहती कौन-सा फरागत(खुशहाली) में पैदा हुए थए जो कि हम तारीख याद रखते। यही आश्विन-कातिक का महीना होगा। इन दो हिन्दी महीनों के बीच हम कभी भी पैदा होने की गुंजाईश से शांत हो जाते। जन्मदिन के चॉकलेट तो हमने कभी नहीं बांटे,मां सत्यनारायण स्वामी की कथा कराती तो उस दिन हम सबकों अपने यहां बुला लेते। मेरे अधिकांश मुस्लिम दोस्त प्रसाद खाने में हिचकते तो मां उन्हें सब साबुत ही दिया करती और कहती सादिक ये परसाद से बाहर का फल है। फिर नुक्का-चोरी( एलीट तबके ले लोग आंखमिचौनी कहते हैं) खेलकर मस्त हो जाते।

इसी क्रम में मैं बोर्ड की परीक्षा देने के मुहाने तक आ गया। अधिकांश के मां-बाप के पास कुर्जी हॉस्पीटल पटना से लेकर होली फैमिली तक के वर्थ सर्टिफिकेट थे। मुझे अपना जन्मदिन तक याद नहीं। क्लास टीचर ने अपनी मर्जी से भर दिया 23 फरवरी। मैंने उन्हें कहा भी कि सर मां आश्विन-कार्तिक के आसपास जन्मदिन बताती है,आप उसी के आसपास की तारीख डालिए न। उन्होंने हमें चुप करा दिया और पचहतर तर्क दे डाले। इस जन्मदिन में मां बेदखल हो गयी थी जिसका कि हमें अफसोस हुआ। उसके बाद से एक बार जब मैट्रिक की सर्टिफिकेट में 23 फरवरी जन्मदिन तय हो गया तो वही चलता आ रहा है। जब हमने फेसबुक से लेकर बाकी जगह अकाउंट बनाए तो यही डाला। मैंने इसे बदला नहीं।

यकीन मानिए पिछले 26-27 साल में मुझे कभी नहीं लगा कि लोग मुझे इतना प्यार करते हैं,मानते हैं और मुझे नोटिस लेते हैं। परसों से ही जन्मदिन देने का सिलसिला जारी है। हर बधाई देनेवाले को लग रहा है कि वो सबसे पहले बधाई दे। रांची से प्रभात गोपाल झा ने सुबह ही बधाई दी और इस उम्मीद से कि वो सबसे पहले बधाई दे रहे हैं। भिलाई से बी.एस.पाबला का फोन आया औऱ कहा कि हमने आपके जन्मदिन पर पोस्ट डाली है। धनबाद से लवली मेल कर रही है। चेन्नई में बैठे प्रशांत प्रियदर्शी को नसीहत दे रही है कि मेरे जन्मदिन की तरह विनीत को विश करना मत भूल जाना। चेन्नई से प्रशांत प्रियदर्शी फोन करके बता रहे हैं कि महाराज पार्टी देने का इतना ही शौक है तो जन्मदिन का बहाना क्यों? फेसबुक पर दर्जन भर से ज्यादा लोग विश कर चुके हैं। यूएस में बैठी अक्ष्या वर्चुअल गिफ्ट भेज रही है। यकीन मानिए कि शुभकामनाओं से लाद दिया इस साल लोगों ने मुझे। मैं फोन पर ही कुछ-कुछ को तर्क देता हूं कि आज सचमुच का जन्मदिन नहीं है मेरा। लेकिन उनके उत्साह के आगे मेरा ऐसा कहना मुझे अपनी ही नजर में छोटा किए दे रहा है। मैं पाबलाजी से हंसकर कहता हूं चलिए साल में दो बार हो या जन्मदिन।

संत जेवियर्स में पढञने की वजह से मेरा कॉन्फीडेंस लेवल हाई हो चला था। मैं किसी भी मसले पर किसी से बात करने में संकोच नहीं करता। इसी क्रम में एक बार मैंने अपने चाचा से जिनका कि परिवार के लोगों से बहुत ही कम बातचीत हुआ करती,पूछ बैठा- अच्छा ये बताइए कि आपको पता है कि मैंने कब गोतिया का पल्ड़ा बराबर किया था। उन्होंने कहा मतलब? मैंने कहा कि मतलब ये कि मैं किस दिन पैदा हुआ। मां से मुझे जानकारी मिली थी कि उनके पास सात पीढ़ी की वंशावली है। बड़ा होने पर मैंने समझा कि अगर मेरा पैदा होने उनके लिए वाकई तकलीफदेह है तो उन्हें ये तारीख याद रहनी चाहिए। उन्होंने कहा- 17 अगस्त। यहां तक कि उन्होंने समय भी बता दिया। मुझे मेरा अपना जन्मदिन मिल गया था।

अब मैं सेंट जेवियर्स कॉलेज में पढ़ते हुए दोस्तों को ट्रीट देता और दिनभर मस्ती करता। दिलचस्प बात ये है कि मैंने ग्रेजुएशन की पूरी पढ़ाई फादिर कामिल बुल्के शोध संस्थान,रांची में बैठकर की है। मैं वहां का नियमित सदस्य था। तो 17 अगस्त को रांची के साहित्यकार,पत्रकार और बुद्धिजीवी वहां जुटते। मेरे लिए नहीं,उस दिन बाबा बुल्के की पुण्यतिथि होती। लोग बाबा को याद करते,थोड़ा मातमी महौल होता लेकिन ये कार्यक्रम खत्म होते ही मैं सबको चॉकलेट बांटता। लोग शुभकामनाएं देते। मेरे साथ की लड़कियां कमेंट करती- अच्छा दिन पैदा हुए हो,ऐसा लगता है कि ये पूरा शहर तुम्हारे जन्मदिन के लिए ही जमा होता है,कितने लोग विस कर देते हैं तुम्हें। फिर कावेरी या चुरुवाला के यहां लंच और दिनभर मस्ती।...दिल्ली में इस तरह 17 अगस्त को बहुत ही सीमित लोगों के बीच दिनभर की मस्ती के साथ जन्मदिन मनाने का सिलसिला जारी है।.
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22 Response to 'आप सबका शुक्रिया,लेकिन आज मेरा जन्मदिन नहीं है'
  1. kase kahun?by kavita.
    http://test749348.blogspot.com/2010/02/blog-post_23.html?showComment=1266924694824#c517325337173982294'> 23 February 2010 at 03:31

    certificate ke hisab se aaj janmdin ki badhai lelijiye.17 august ko fir de denge.ha mithai dono bar khilana padegi.

     

  2. सुशील कुमार छौक्कर
    http://test749348.blogspot.com/2010/02/blog-post_23.html?showComment=1266925706897#c2426191697317196034'> 23 February 2010 at 03:48

    इतना बडा सा प्यारा सा लिख डाला बस एक पार्टी से बचने के लिए जी। अजी पहले ही कह देते जी वैसे भी हम आपके प्यार के भूखे हैं किसी पार्टी बगैरा के नही ये अलग बात है कि आप अपने हाथ की बनी काफी पीला दें। और साथ खूब सारी नमकीन खिला दें। और हम उसे प्यार समझ के खा जाए। वैसे किसको पता है अपना सही जन्मदिन। हमें भी नही पता। खैर एक काफी बाकी रह गई हमारी। चलिए आज लीजिए जन्मदिन की ढेरों शुभकामनाएं। और 17 अगस्त को पार्टी ले लेंग़े।

     

  3. सैयद | Syed
    http://test749348.blogspot.com/2010/02/blog-post_23.html?showComment=1266926408796#c4457658255629773600'> 23 February 2010 at 04:00

    १७ अगस्त को फिर से बधाई देंगे जी ... फिलहाल आज वाले जन्मदिन की बधाई स्वीकारें..

    वैसे मुझे भी सुशील जी की बात सही लगती है :)

     

  4. L.Goswami
    http://test749348.blogspot.com/2010/02/blog-post_23.html?showComment=1266927619289#c6985630381178230510'> 23 February 2010 at 04:20

    कोई बात नही विनीत हम फिर विश कर देंगे..पर आज वाली वापस नही ले रहे...रोचक किस्सा रहा ..शानदार रिपोर्टिंग की तरह ... :-)

     

  5. सुलभ § Sulabh
    http://test749348.blogspot.com/2010/02/blog-post_23.html?showComment=1266928368086#c4663303269750302241'> 23 February 2010 at 04:32

    बधाई का सिलसिला चलता रहेगा.. ऐसे हम भी अगस्तस है,

     

  6. संजय बेंगाणी
    http://test749348.blogspot.com/2010/02/blog-post_23.html?showComment=1266929942099#c3173674761499611723'> 23 February 2010 at 04:59

    हमने बधाई नहीं दी थी. काहे कि गलत तारीख पर काहे दें? :) आप पार्टी दे सकते हो....

     

  7. मसिजीवी
    http://test749348.blogspot.com/2010/02/blog-post_23.html?showComment=1266931483819#c3007437726002077777'> 23 February 2010 at 05:24

    दो बार जन्‍मे...अच्‍छा है, तो आप द्विज ठहरे.. :)

    हमारी पत्‍नी भी इसी जाति से हैं उनके प्राचाय्र हर साल नकली जन्‍मदिन पर बधाई देते हैं उन्‍हें बताया जाता है कि नकली है...वो भूल जाते हैं...अगले साल फिर बधाई देते हैं।

     

  8. sudesh
    http://test749348.blogspot.com/2010/02/blog-post_23.html?showComment=1266932792708#c4984786478498521776'> 23 February 2010 at 05:46

    वाह बन्धु. १७ अगस्त तो मेरा भी जन्म दिन है इसलिये अब मुझे तो तुम्हारा दूसरा जन्म दिन याद रहेगा ही. मेरे घर मे मेर जन्म दिन दो बार मनाने की परंपरा रही है. एक अंग्रेज़ी तारीख़ से १७ अगस्त और दूसरी बार हिन्दी तारीख़ के हिसाब से श्रावण पूर्णिमा (रक्षाबन्धन) के दिन. तो भाई डबल जन्म दिन क्लब मे स्वागत है.

     

  9. H P SHARMA
    http://test749348.blogspot.com/2010/02/blog-post_23.html?showComment=1266935811275#c2410306496352837301'> 23 February 2010 at 06:36

    जन्मदिन की शुभकामना

     

  10. कृष्ण मुरारी प्रसाद
    http://test749348.blogspot.com/2010/02/blog-post_23.html?showComment=1266936281704#c3044339968444949766'> 23 February 2010 at 06:44

    विनीत, तम्हारा पोस्ट पढ़ कर फिर मैं अपनी पुरानी यादों में खो गया.जब तुम्हारा जन्म हुआ था उस समय मैं रांची में होस्टल में रहकर अपनी इंटर की पढ़ाई की शुरुआत कर चूका था. होस्टल में पोस्टकार्ड मिला, कि बड़ी दीदी को लड़का हुआ है.मैंने जबाबी डाक से तुम्हारा नाम "विनीत" लिखकर भेज दिया था.दरअसल, तुम्हारा नाम मैंने अपने एक दोस्त के दोस्त 'विजय विनीत' के नाम पर रखा था. वह सूर्यगढआ के पास के एक गाँव से मिलने रांची आया था. वह कम पढ़ा-लिखा, सहज, सरल दिखता था.लेकिन उसके अंदर गजब की आग थी. उसकी बातें पढ़े-लिखे लोगों के दिल तथा दिमाग पर असर करती थी....मुझे क्या पता था कि "विनीत" नाम से ही इतना असर पैदा हो जाता है..तुम्हारा पोस्ट बहुत ही बढ़िया...दिल को छूने बाला..खुश रहो....लगे रहो...तुम्हारा मामू

     

  11. yunus
    http://test749348.blogspot.com/2010/02/blog-post_23.html?showComment=1266945835895#c7371918392747208700'> 23 February 2010 at 09:23

    भई कितने प्‍यार से याद किया है बीता वक्‍त । रमे रहो मज़ा आया पढ़कर ।

     

  12. Nikhil Srivastava
    http://test749348.blogspot.com/2010/02/blog-post_23.html?showComment=1266951049915#c2232985295690891976'> 23 February 2010 at 10:50

    अब समझे कि काहे नहीं रिप्लाई किये थे आप. खैर, बड़ा बढ़िया लिखे हैं. वैसे भैया, उहाँ यानि फेसबुक पर भी सही कर दीजिए न. और अच्छे लोगों को कुछ मिले न मिले, प्यार जरूर मिलता है. ये हमारा अनुभव और ऑब्जर्वेशन है.
    बेस्ट विशेज.

     

  13. डा० अमर कुमार
    http://test749348.blogspot.com/2010/02/blog-post_23.html?showComment=1266951556679#c5692660701029147227'> 23 February 2010 at 10:59


    जनमत का सम्मान करते हुये मान भी लीजिये कि आपका जन्मदिन आज ही रहा होगा ।
    मेरा जन्मदिन १ जुलाई को मन जाता है, जबकि यह २९ अगस्त को होता है ।
    माहापुरुषों के जन्मदिन हमेशा से विवाद में रहते आये हैं, आपने एक किवँदती बनने से पहले ही उसका गला घोंट दिया । आपके ऎसे निर्मम खँडन से आहत हूँ, जी !

     

  14. Sanjeet Tripathi
    http://test749348.blogspot.com/2010/02/blog-post_23.html?showComment=1266951693637#c8546204295163061629'> 23 February 2010 at 11:01

    pabla jee ki post padhkar aapko badhai to de di thi lekin na jane kyn phone karne se apne aap ko rok liya tha.
    khair. koi wanda nai, party wala bday bas apan yaad rakhenge, ab ye aap jano kab de rahe ho
    ;)

     

  15. दीपक 'मशाल'
    http://test749348.blogspot.com/2010/02/blog-post_23.html?showComment=1266973528515#c1775781336105210793'> 23 February 2010 at 17:05

    kuchh dakiyanoosee baton ko manne walon ke andhvishwas ne aapka bachpan dukh se bhar diya.. sunkar takleef hui dost..

     

  16. बी एस पाबला
    http://test749348.blogspot.com/2010/02/blog-post_23.html?showComment=1266986309530#c4330877866615728757'> 23 February 2010 at 20:38

    यादों का प्रस्तुतिकरण अच्छा लगा

    वो तो अच्छा हुआ कि आपकी सहमति से बधाई वाली पोस्ट का प्रकाशन हुआ, वरना अब तक तो ...

    :-)

    बी एस पाबला

     

  17. सुजाता
    http://test749348.blogspot.com/2010/02/blog-post_23.html?showComment=1266990539626#c8316723905328871357'> 23 February 2010 at 21:48

    ये तो फायदा की बात है भाई! एक बधाई अब ही लो और अगली 17 अगस्त को दे देंगे द्विज महाराज !जन्मदिन मुबारक हो !

     

  18. संजय ग्रोवर Sanjay Grover
    http://test749348.blogspot.com/2010/02/blog-post_23.html?showComment=1266991070773#c1723418537846690500'> 23 February 2010 at 21:57

    Achchha laga. Meri taraf se aapke Janm (din se kya farq padta hai) par badhaayi.

     

  19. अनूप शुक्ल
    http://test749348.blogspot.com/2010/02/blog-post_23.html?showComment=1266993663923#c8121339110965326086'> 23 February 2010 at 22:41

    वाह ! इसी बहाने एक रोचक लेख पढ़ने को मिला। रंगनाथ सिंह की टिप्पणी में यदि श्रीलाल शुक्ल जीवित होते तो जुड़ा जाते पढ़कर अफ़सोस हो रहा है। श्रीलाल शुक्ल जी को क्या हुआ भाई! ऐसा कैसे लिख गये!

     

  20. नीरज जाट जी
    http://test749348.blogspot.com/2010/02/blog-post_23.html?showComment=1267002217476#c2573281758030485356'> 24 February 2010 at 01:03

    विनीत,
    आज पहली बार आपके यहां आया हूं, पोस्ट पढने से पहले एक अमरूद के हाथ से दो टुकडे करके खाना शुरू कर दिया था. पूरी पोस्ट पढ डाली, लेकिन अभी भी एक टुकडा बचा हुआ है.
    मैं ना तो किसी को ’विश’ करने की सोचता, ना ही अपने जन्मदिन पर ’विश’ लेने की सोचता, लेकिन इस बहाने किसी की तात्कालिक जानकारी, माहौल व संघर्ष का पता चलता है, तो अच्छा लगता है.

     

  21. Rangnath Singh
    http://test749348.blogspot.com/2010/02/blog-post_23.html?showComment=1267002217477#c2403444380383996796'> 24 February 2010 at 01:03

    अनूप जी धन्यवाद हमारी चूक पर ध्यान दिलाने के लिए। उस असावधान गलत कमेंट को हटा दिया है। इसे स्लिप आफ माइंड समझें। कहना यह था कि विनीत भाई का शुरूआती पैरा पढ़कर राग दरबारी की याद आ गयी। कहना न होगा कि राग दरबारी इस विधा में एक प्रतिमान बन चुका है। और नई पीढ़ी में कोई उस परंपरा में लिख रहा है यह जानकर श्रीलाल जी को बहुत खुशी होगी।

     

  22. Abhishek
    http://test749348.blogspot.com/2010/02/blog-post_23.html?showComment=1268828302764#c4071557186476747309'> 17 March 2010 at 05:18

    Bahut
    bahut
    bahut achha banaya hai.......

     

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