
मीतू खुराना की जो कहानी है वो पितृसत्तात्मक समाज में लिंग-भेद और पुत्र कामना में अंधे हो चुके परिवार की कहानी से बिल्कुल भी अलग नहीं है। अलग है तो सिर्फ इतना भर कि मीतू खुराना खुद पेशे से डॉक्टर है,उसका पति भी डॉक्टर है। तथाकथित सभ्य समाज से ताल्लुक रखता है। लेकिन लड़का-बच्चा जनने और लड़की के पैदा होने की स्थिति में अपने परिवारे के लोगों के साथ वो खुद भी कितना बर्बर हो जाता है,ये हमारी उम्मीद को ध्वस्त करता है। उस कल्पना को चकनाचूर करता है जो कि साक्षरता को लेकर भारत सरकार की ओर से जारी किए गए विज्ञापनों में दिखाया-बताया जाता है। हम पढ़-लिखकर भी मानवीय नहीं हो सकते,संवेदनशील नहीं हो सकते। हम उसी बर्बर समाज का हिस्सा बने रहेंगे। ये सबकुछ सोचकर-जानकर कैसा लगता है?
मीतू खुराना की दर्दनाक कहानी को झारखंड की चर्चित और जुझारु पत्रकार अनुपमा ने मोहल्लाlive पर पेश किया है। हम उसके एक हिस्से को साभार के साथ यहां पेश कर रहे हैं,बाकी आप सीधे लिंक के जरिए वहां जाकर पढ़ सकते हैं। पेश करने के पीछे सरोकार है कि हम अपने-अपने स्तर से मीतू की इस लड़ाई में समर्थन और सहयोग दे सकें।
हर लड़की यह सोचती है कि उसकी शादी अच्छे घर में हो। पति उसे चाहनेवाला हो और एक सपनों का घर हो। जिसे वह सजाये-संवारे और एक खुशहाल परिवार बनाये। मैंने भी कुछ ऐसे ही ख़्वाब बुने थे। अभी-अभी तो उसे संजोना और बुनना शुरू ही किया था मैंने। पर कब सब कुछ बिखरना शुरू हुआ, पता ही नहीं चला। खैर… सीधी-सीधी बात बताती हूं। शादी नवंबर 2004 में डॉ कमल खुराना से हुई। कहने को तो अच्छा घर था, पर यहां आते ही मुझे दहेज के लिए प्रताड़ित किया जाने लगा। मैं यह सब जुल्म चुपचाप सहती रही कि चलो कुछ दिनों में सब ठीक हो जाएगा। पर ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। शादी के दो महीने बाद ही यानी जनवरी 2005 में मैं गर्भवती हो गयी। गर्भ के साथ ही मेरे सपने भी आकार ले रहे थे। छठवें सप्ताह में मेरा अल्ट्रासाउंड हुआ और यह पता लगा कि मेरे गर्भ में एक नहीं बल्कि दो-दो ज़िंदगियां पल रही हैं। मेरा उत्साह दुगना हो गया। मैं बहुत खुश थी। परंतु मेरी सास मुझ पर सेक्स डिटर्मिनेशन करवाने के लिए दबाव डालने लगीं। मैंने इसके लिए मना कर दिया। ऐसा करने पर मुझे तरह-तरह से प्रताड़ित किया जाने लगा। इसमें मेरे पति की भूमिका भी कम नहीं थी। मेरा दाना-पानी बंद कर दिया गया और रोज़-रोज़ झगड़े होने लगे। मुझे जीवित रखने के लिए रात को मुझे एक बर्फी और एक गिलास पानी दिया जाता था। गर्भावस्था में ऐसी प्रताड़ना का दुख आप खुद समझ सकते हैं। इस मुश्किल घड़ी में भी मेरे मायके के लोग हमेशा मेरे साथ रहे। शायद इसी वजह से मैं आज जीवित भी हूं।....
जब मैं गर्भ चयन के लिए प्रताड़ना के बाद भी राज़ी नहीं हुई तो इन लोगों ने एक तरकीब निकाली। यह जानते हुए कि मुझे अंडे से एलर्जी है, उन्होंने मुझे अंडेवाला केक खिलाया। मेरे बार-बार पूछने पर कि इसमें अंडा तो नहीं है, मुझसे कहा गया कि नहीं, यह अंडारहित केक है। केक खाते ही मेरी तबीयत बिगड़ने लगी। मुझमें एलर्जी के लक्षण नजर आने लगे। मझे पेट में दर्द, उल्टी व दस्त होने लगा। ऐसी हालत में मुझे रात भर अकेले ही छोड़ दिया गया। दूसरे दिन पति और सास मुझे अस्पताल ले गये। लेकिन वो अस्पताल नहीं था। वहां मेरा एंटी नेटल टेस्ट हुआ था। मुझे लेबर रूम में ले जाया गया। यहां पर गायनेकेलॉजिस्ट (स्त्री रोग विशेषज्ञ) ने मेरी जांच कर केयूबी (किडनी, यूरेटर, ब्लैडर) अल्ट्रासाउंड करने की सलाह दी। लेकिन वहां मौजूद रेडियोलॉजिस्ट ने सिर्फ मेरा फीटल अल्ट्रासाउंड किया और कहा कि अब आप जाइए। जब मैंने देखा और कहा कि गायनेकेलॉजिस्ट ने तो केयूबी अल्ट्रासाउंड के लिए कहा था, आपने किया नहीं, तो उसने कहा कि ठीक है आप लेट जाइए और उसके बाद उसने केयूबी किया।
इस घटना के बाद तो प्रताड़नाओं का दौर और भी बढ़ गया। मेरे पति व ससुराल वाले मुझे गर्भ गिराने (एमटीपी) के लिए ज़ोर देने लगे। मेरी सास ने तो मुझसे कई बार यह कहा कि यदि दोनों गर्भ नहीं गिरवा सकती, तो कम से कम एक को तो गर्भ में ही ख़त्म करवा लो। दबाव बनाने के लिए मेरा खाना-पीना बंद कर दिया गया। मेरे पति मुझसे अब दूरी बरतने लगे और एक दिन तो उन्होंने रात के 10 बजे मुझे यह कह कर घर से निकाल दिया कि जा अपने बाप के घर जा। जब मैंने उनसे आग्रह किया कि मुझे मेरा मोबाइल और अपने कार की चाभी ले लेने दीजिए, क्योंकि गर्भावस्था में मैं खड़ी नहीं रह पाऊंगी तो उन्होंने कहा कि इस घर की किसी चीज़ को हाथ लगाया तो थप्पड़ लगेगा… मेरे ससुर ने हस्तक्षेप किया और कहा कि इसे रात भर रहने दो, सुबह मैं इसके घर छोड़ दूंगा। उनके कहने पर मुझे रात भर रहने दिया गया। सास की दलील थी कि दो-दो लड़कियां घर के लिए बोझ बन जाएंगी, इसलिए मैं गर्भ गिरवा लूं। अगर दोनों को नहीं मार सकती तो कम से कम एक को तो ज़रूर ख़त्म करवा लूं। जब मैं इसके लिए राज़ी नहीं हुई तो उन्होंने मुझसे कहा कि ठीक है यदि जन्म देना ही है, तो दो, लेकिन एक को किसी और को दे दो।
आज भी मुझे वह भयानक रात याद है। तारीख थी 17 मई 2005… इतना गाली-गलौज और डांट के बाद मैं घबरा गयी थी और उस रात को ही मुझे ब्लीडिंग शुरू हो गयी। इतना खून बहने लगा कि एबॉर्शन का ख़तरा मंडराने लगा। खुद तो मदद करने की बात छोड़िए, चिकित्सकीय सहायता के लिए मेरे पिता को भी मुझे बुलाने की इजाज़त नहीं दी गयी। मैंने किसी तरह तड़पते-कराहते रात गुज़ारी और सुबह किसी तरह फोन कर पापा को बुला पायी। पापा के काफी देर तक मनुहार के बाद मेरे पति मुझे नर्सिंग होम ले जाने को तैयार हो गये। लेकिन खीज इतनी कि गाड़ी को सरसराती रफ्तार से रोहिणी से जनकपुरी तक ले आये। उस बीच मेरी जो दुर्गति हुई होगी, उसकी कल्पना आप खुद भी कर सकते हैं।
आगे पढ़ने के लिए चटकाएं- बेटा दो या तलाक दो
http://test749348.blogspot.com/2009/11/blog-post_20.html?showComment=1258794364838#c7281234217429626026'> 21 November 2009 at 01:06
बहुत मार्मिक कहानी है । ये शायद बहुत से घरों की दास्तां है आज भी पढे लिखे लोग इतने शर्मनाक काम करते हैं। ऐसे लोगों को बख्शा नहीं जाना चाहिये। धन्यवाद
http://test749348.blogspot.com/2009/11/blog-post_20.html?showComment=1258796253025#c2571903148198865229'> 21 November 2009 at 01:37
अब इन गधों का क्या करें..पढ़-लिख कर भी इंसान बनने से इंकार किये दे रहे हैं
http://test749348.blogspot.com/2009/11/blog-post_20.html?showComment=1258796878639#c1871313358875109195'> 21 November 2009 at 01:47
नहीं पढ़ा जा रहा ....... '
शर्मिंदगी होती है की हम किस तरह के समाज का हिस्सा हैं ...
धिक्कार है
http://test749348.blogspot.com/2009/11/blog-post_20.html?showComment=1258805186400#c2502045129101889849'> 21 November 2009 at 04:06
यही सब पढ सुनकर कहने का मन करता है कि
कौन है जो कह सके कर ली तरक्की देखिए
आदमी की फ़ितरतें बदली नहीं हैं देखिए
http://test749348.blogspot.com/2009/11/blog-post_20.html?showComment=1258836814750#c5407680851917730429'> 21 November 2009 at 12:53
this kind of act should be considered as a heinous crime againtst woman and responsible crimanal should be given severe punishment
http://test749348.blogspot.com/2009/11/blog-post_20.html?showComment=1258987755513#c1081628471209473978'> 23 November 2009 at 06:49
देश के कुछ हिस्सों में हैवान बसते हैं और दुःख इस बात का है कि ये सब ज्यादातर देश की राजधानी के आसपास होता है
http://test749348.blogspot.com/2009/11/blog-post_20.html?showComment=1259003756650#c3965149557106248694'> 23 November 2009 at 11:15
thanks for the reply.getting such a reply is great because still many people are calling me mad to destroy my family life because my husband wanted sons.everyone wants a son is what i am being told. i am afraid that if any judge hands over my daughters to my husband and inlaws they'll be killed. I'll have to move ahead with cases according to them because my daughters will be with them.the custody case has been put on advice of hospital concerned because once they have daughters with them they can f
http://test749348.blogspot.com/2009/11/blog-post_20.html?showComment=1261567995705#c2955308329807977667'> 23 December 2009 at 03:33
please visit the web page www.mitukhurana.wordpress.com. i need your support in my fight against female foeticide