
ये विनीत एक नंबर का चूतिया मालूम पड़ रहा है। कुछ पता-वता है नहीं, उल्टी-सीधी बातें लिख मारी हैं। अबे विनीत, तुम खुद क्या हो, तुम्हारी क्या औकात है। अमित सिन्हा जैसे ईमानदार इंसान को तुझ जैसे झटियल से प्रमाणपत्र हासिल करने की जरूरत नहीं है। पहले खुद को इस लायक बनाओ कि लोग तुम्हे जाने-पहचाने फिर कमेंट्स करने की हिमाकत करो। अबे, अमित सिन्हा या किशोर मालवीय तो बहुत दूर की बात है, तुम तो एक इंटर्न पर भी टिप्पणी करने की औकात नहीं रखते। ये मुंह और मसूर की दाल। गधे हो जो फालतू की बातें लिख रहे हो। अविनाश भाई, मुझे आप पर भी तरस आता है कि आपने अपने पूर्व अनुभवों से कुछ नहीं सीखा और ऐसे चिरकुटों की बातों को छाप रहे हैं। गुरूजी, ये चूतिए अपने चुतियापे से आपकी छवि की भी मां बहन कर रहे हैं। संभल जाओ दोस्त।
संजय देशवाल
वाइस ऑफ इंडिया में पिछले दिनों जो कुछ भी हुआ उस संबंध में मैंने अपनी राय मोहल्लाlive पर जाहिर की। एक वेबसाइट ने जब इस संबंध में मेरी राय जाननी चाही तो मैंने साफ तौर पर कहा कि चैनल के पास न तो कोई स्ट्रैटजी है और न ही वहां काम कर रहे मीडियाकर्मियों को लेकर कोई चिंता। आज चैनल चला रहे हैं,अगर घाटा इसी तरह जारी रहा तो जोड़-तोड़ से सरकार की ओर से सॉफ्टलोन के लिए जुगत भिड़ाएंगे और आम आदमी का पैसा सांप-सपेरे औऱ ढिंचिक-ढिंचक खबरों के लिए झोंक दिया जाएगा,कहीं कोई हिसाब लेनेवाला नहीं है। चैनल के सीइओ अमित सिन्हा की जो समझ है वो अनुभव मीडियाकर्मी से कहीं ज्यादा भावुकता और श्रद्धा में जकड़े एक भक्त की है। चैनल के भीतर खबरों पर चर्चा होने से कहीं ज्यादा साईं बाबा के नाम पर आरती की थालियां घुमायी जाती है जिसका खुलासा अपने अधिकारों के लिए लड़नेवाले वाइस ऑफ इंडिया के मीडियकर्मियों ने बनाए ब्लॉग long live voi पर किया। ये अलग बात है कि अब उन्होंने इस ब्लॉग को अपनी मांगें और शर्तें पूरी होने के साथ ही बंद कर दिया। आप कह सकते हैं कि हम पाठकों के साथ भावनात्मक रुप से खिलवाड़ किया वो इसे मीडिया इतिहास से धो-पोछकर खत्म कर देना चाहते हैं जबकि ये संभव नहीं है। मेरी बात संजय देशवाल नाम के एक शख्स को इतनी चुभ गयी कि उन्होंने मेरे लिए सार्वजनिक रुप से चुतिया शब्द का इस्तेमाल किया और मोहल्लाlive के मॉडरेटर अविनाश की छवि की मां-बहन करने का मुझ पर आरोप भी लगाया। इसी बीच मेरे पास कई पत्रकारों,दोस्तों और ब्लॉग पाठकों के फोन आए। सबों ने कहा कि इस तरह की अभद्र भाषा का कोई कैसे प्रयोग कर सकता है,आप तुरंत अविनाश से बोलकर इस कमेंट को हटाने कहो। मैं जानता हूं कि अविनाश हाइपर डेमोक्रेटिक आदमी हैं,इसलिए उन्हें कुछ भी कहना सही नहीं होगा। दूसरी तरफ हम चाहते थे कि पाठकों को पता तो चले कि देश के एक पत्रकार के प्रतिरोध की भाषा क्या हो सकती है और उसे किसी की बात से सहमति नहीं होती है तो वो किस जुबान में बात करता है,इसका अंदाजा लगा सकें। इसलिए मैंने नीचे एक उस कमेंट का एक युगल रुप देते हुए एक छोटा-सा कमेंट किया-
संजयजी,आपको पढ़कर मुझे बहुत अच्छा लगा,आपने मुझे इतनी गंभीरता से पढ़ा और अपने संस्कार और भाषा का परिचय दिया। मैं यहां बैठे-बैठे ही आपकी छवि को समझ सकता हूं। अगर आप जैन टीवी से लाइव करनेवाले खेमे में थे तो भविष्य के लिए शुभकामनाएं। आपकी भाषा बहुत अच्छी है,अगर कोई स्टोरी इसी भाषा में लिखते हों तो आप मुझे मेल कीजिएगा,देखना चाहूंगा।….और हां अमित सिन्हा के प्रति प्रतिबद्धता को देखकर काफी प्रभावित भी हुआ। आप जैसे लोगों से वो हमेशा घिरे रहें इसके लिए उन्हें भी शुभकामनाएं….
इस कमेंट के जरिए मैंने किसी भी रुप में अपने को महान साबित करने की कोशिश नहीं की है बल्कि मुन्नाभाई एमबीबीएस में बॉमन इरानी की तरह टेंशन रिलीज करने के प्रयोग किए हैं। ये भाषा उसी पत्रकार समाज से प्रयोग की गयी है जो दिन-रात हमें फोन करके,मेल के जरिए नसीहत दिए फिरते हैं कि आपको जो मन आए लिखिए लेकिन अपशब्दों का प्रयोग मत कीजिए। उनकी लगातार कोशिश होती है कि हमारे लिखे के भीतर से चीर-फाड़कर एक-दो ऐसे शब्द निकालें और उसे अश्लील साबित करते हुए पूरे मुद्दे को निगल जाएं। ब्लॉग और पार्टल के विरोध में ऐसी छवि बनाए जैसा कि मृणाल पांडे औऱ वरिष्ठ आलोचक रमेश उपाध्याय जैसे लोग बनाते आए हैं। जो लोग इंटरनेट की दुनिया में नहीं विचरते,दूर से हांक लगानेवाले आलोचकों को सुनकर राय बनाते हैं कि इस पर लेखन के नाम पर सिर्फ टुच्चई होती है,उन्हें ये भरोसा हो जाए कि इंटरनेट पर लिखनेवाले लोग कभी कुछ बेहतर लिख ही नहीं सकते।
मेरे एक-दो अनुभवी मीडिया साथियों ने कहा कि ये जो कमेंट किया गया है वो वाइस ऑफ इंडिया के किसी वरिष्ठ मीडियाकर्मी का है,ऐसा काम वो पहले भी कर चुके है। नाम बदलकर कमेंट करने का काम वो पहले भी कर चुके हैं। लेकिन मैं बार-बार यही कामना कर रहा हूं कि ये किसी भी चैनल के पत्रकार की भाषा न हो,ऐसे शख्स की भाषा न हो जो मीडिया प्रोफेशन से संबंध रखता हो। नहीं तो इधर पन्द्रह दिनों में मीडिया को लेकर जो विश्वास छीजते चले जा रहे हैं,उसमें इजाफा हो जाएगा और मुझे जरा भी अच्छा नहीं लगेगा।
http://test749348.blogspot.com/2009/08/blog-post_26.html?showComment=1251289986012#c6927474454213900307'> 26 August 2009 at 05:33
यही तो है शब्दों की ताकत
पर आपने तो ताकतीय शब्दों को भी
बेताकतीय करके रख दिया है।
आपने जिन शब्दों को ताक पर रखा है
ताक से उन्हें वे वापिस उठा ले जायेंगे
आपकी पूछ रहे हैं
पर अपनी बता कर जायेंगे।
लौट कर ..... घर को जायेंगे।
http://test749348.blogspot.com/2009/08/blog-post_26.html?showComment=1251290339398#c201383533412209492'> 26 August 2009 at 05:38
स्पष्ट राय, स्पष्ट बयान.
http://test749348.blogspot.com/2009/08/blog-post_26.html?showComment=1251296758520#c4678489311822483300'> 26 August 2009 at 07:25
निश्चित ही यह एक गलत और निंदयीय कार्य है।
आपने बहुत ही संतुलित तरीके से अपनी बात रखी।
http://test749348.blogspot.com/2009/08/blog-post_26.html?showComment=1251305374881#c8503071950441281769'> 26 August 2009 at 09:49
sometime people go wrong when they have no option left......Anyway u keep writing the truth and the people who have dare to accept the truth are always there to back you.Good luck..
http://test749348.blogspot.com/2009/08/blog-post_26.html?showComment=1251363380862#c7140964614454578358'> 27 August 2009 at 01:56
उसके मन मयूर को नाचने दोगे तभी तो भड़ास बाहर आएगी। सो आ गई। अब आपने जो जवाब लिखा वह भी आपकी पहचान के अनुरूप है। आपसे यही अपेक्षा थी कि एक ठण्डा कोड़ा वापस फहराया जाए। अब पता नहीं उसका असर कितना हुआ होगा।
बेबाक राय रखना और उसे पेश कर देना दोनों साहसी कार्य है। आगे के लिए शुभकामनाएं।
http://test749348.blogspot.com/2009/08/blog-post_26.html?showComment=1251367820315#c5688133298126007713'> 27 August 2009 at 03:10
आपने एकदम सही बात की और सही तरीका अपनाया ! एक बार जब श्रीमती रीता बहुगुणा और मायावती के बीच खींचतान चल रही थी तो इनके न्यूज़ चैनल पर जो उद्घोषक महोदय थे, उस दिन जब मैंने उनकी भाषा सूनी रीता बहुगुणा के खिलाफ तो उसके बाद से मैं यह न्यूज़ चैनल नहीं देखता !
http://test749348.blogspot.com/2009/08/blog-post_26.html?showComment=1251369002651#c1039456291035065272'> 27 August 2009 at 03:30
I deplore this act unequivocally ! The term 'chootia' is part of our colloquial heritage and should be avoided in formal conversation .
http://test749348.blogspot.com/2009/08/blog-post_26.html?showComment=1251378979809#c2262402935299574696'> 27 August 2009 at 06:16
ऐसे ही बेबाक लिखिए विनीत भाई।