
टेलीविजन पर होनेवाले लटके-झटके को देखकर और अक्सर बिना देखे ही कोसनेवालों की कमी नहीं है। लेकिन उस लड़की ने अपने नाचने के पीछे के मकसद को बताया तो इस लटके-झटके का एक नया अर्थ निकलकर सामने आया। उसका कहना था कि हमारे नाचने से खिलाडियों में जोश आता है, हम उनमें उत्साह भरना चाहते हैं। इसी बात को आगे बढ़ाते हुए एक दूसरी लड़की ने कहा- हमारे नाचने से कई बार खिलाड़ी चौके,छक्के भी मारते हैं। खिलाड़ियों को हमारी जरुरत तब सबसे ज्यादा होती है जब वो थोड़े परेशान होते हैं, चीयर लीडर्स के रुप में ये लड़कियां इससे उबारने का काम करती हैं। इस नाचने में नए अर्थ के खुलने से विनोद दुआ की उस बात में बहुत दम नहीं रह जाता जो कि उन्होंने मुहावरे के तौर पर स्लमडॉग मिलेनियर को लेकर हिन्दुस्तानी जश्न के बारे में कहा था कि- आखिर हम भारतीय नाच-नाचकर इतना परेशान क्यों हैं। इसका जबाब मुझे कामेडी सर्कस में एक प्रतिभागी के मसखरई में मिलता है जिस पर चंकी पांडे ठहाके लगाते हुए उलटने-पलटने लग जाते हैं। एक गुजराती के घर क सांप निकला और वो पार्टी मनाने लगा। मतलब ये कि गुजराती को पार्टी मनाने के लिए बहानों की कमी नहीं है। इसे आप ऐसे भी समझ सकते हैं कि क्या गुजराती इतने सम्पन्न होते हैं कि बात-बेबात पार्टी मनाने के लिए तैयार होते हैं। तो क्या हम ये मानकर चलें कि हिन्दुस्तान इतना सम्पन्न होता जा रहा है कि वो बात-बेबात पार्टी मनाने और नाच-नाचकर थक जाने की दिशा में आगे बढ़ रहा है। यहां हम हिन्दुस्तानियों की समझ के बारे में कोई बात नहीं कर रहे।
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http://test749348.blogspot.com/2009/03/blog-post_02.html?showComment=1235992740000#c91089539946517703'> 2 March 2009 at 03:19
वाह जी वाह.जोश का अचूक फार्मूला. अब अगर पुलिस वाले आतंकवादियों-गुंडों के सामने डरें, सीमा पर जवान लड_ने से बचें ......... आदि-आद- तो हर जगह चीयर्लीडर्स भेजें. है न~!
http://test749348.blogspot.com/2009/03/blog-post_02.html?showComment=1236013260000#c3355868596377988471'> 2 March 2009 at 09:01
inhe desh ki seema par bhej do
http://test749348.blogspot.com/2009/03/blog-post_02.html?showComment=1236070140000#c2986013370477613913'> 3 March 2009 at 00:49
विनीत जी जहां तक मेरा निजी सवाल है मेरा मानना है कि कुछ लोगों छोकरियों के छोटे स्कर्ट पहन कर नाच लेने से हमारी कथित उच्च भावों वाली संस्कृति खंडिय नहीं हो जाएगी। खंडित तो तभी हो जानी चाहिए थी, जब कुछ लोग निर्दोषों पर हमला करें, आपस में रंजिश की भडा़स दंगों में निकालें, लड़कियों पर हमला करें। तालिबानिज्म या बजरंगीपन हमारी संस्कृति नहीं है। और न ही उन्हं हमारी संस्कृति की रक्षा का ठेका दिया गया है। विनीत जब भी किसी किस्म का बदलाव आता है समाज में, ऐसे शुचितावादी हो-हल्ला करते ही हैं अपसंस्कृति, अश्लील। महज ध्यानाकर्षण के लिए। हम उन पर ध्यान न दें तो आप ही आप फुस्स् हो जाएँगे।