बहन-बेटियों के बिगड़ जाने का हवाला देते हुए, हजारों चीजों पर पाबंदी लगाने और फतवा जारी करनेवाले लोगों से अगर सीधा सवाल किए जाएं कि क्या समाज का काम सिर्फ संस्कारी लड़कियों के होने से चल जाएगा। ये सवाल मेरे दिमाग में फिलहाल क्यों आया, इसकी चर्चा बाद में करेंगे, पहले एक-दो अपनी उन आदतों पर गौर करें, जब हम छोटे बच्चों को सिखा रहे होते हैं।

दर्जन भर से ज्यादा घरों में मैंने देखा है कि लोग अपने बच्चों को हाय, हैलो, नमस्ते के अलावे कुछ बातें इस तरह से भी सिखाते हैं- बेटा,आंख कैसे मारते हैं, चलो, चारु बुआ को आंख मारकर दिखा दो। किन्नी मौसी को एक फ्लाइंग किस दे दो। ये बातें जो भी सिखा रहे होते हैं और जिसके लिए ऐसा करने को कहते हैं, उससे उनका मजाक करने का रिश्ता होता है. बच्चा, बताए गए निर्देश के अनुसार ही काम करता है और वो उन्हें शाबाशी देते हैं। देखा,ये भी जानता है कि आप खूबसुरत हैं औऱ आपको फ्लाइंग किस देना चाहिए। मौसी, बुआ यानि एक लड़की या तो झेंप जाती है या फिर जीजाजी आप भी न...बोलकर बच्चे को पुचकारने लग जाती है। उन्हें अपने लौंडे पर गुमान होता है औऱ अभी से ही पुरुषत्व मिजाज के होने पर खुशी होती है। मैंने एक-दो बार उन्हें टोका भी है- ये क्या सीखा रहे हैं आपका रिश्ता किम्मी से मजाक का है तो उसमें अपने लौंडे को भी क्यों घसीट रहे हैं। भाई साहब का सीधा जबाब होता- क्या बैकवर्ड की तरह बात कर रहे हैं, बच्चा थोड़े ही समझता है इन सब चीजों का मतलब, हम तो बस टाइम पास के लिए कर रहे थे।
लौंडे को एक लड़की के लिए भद्दे और बेहुदा हरकतें सीखाकर टाइम पास करना बहुत आसान है लेकिन लड़कियां ऐसे टाइम पास करने की कला नहीं सीखती,न सिखायी जाती है। इसके पीछे का तर्क है कि वो अभी से ही ये सब सिखेगी तो बर्बाद हो जाएगी। यानि समाज के लिए जो भी चीजें कथित रुप से बुरा है, अश्लील है, बेकार है, उसे लड़कियां जल्द ही समझ लेती है। उस उम्र में ही उसका मतलब समझ लेती है जबकि उसी उम्र के लड़के इन सब चीजों का कोई मतलब नहीं समझते। समाज की बुराइयों को, लड़कियों के जल्दी सीख जाने की मान्यता साबित करते हुए कहीं हम उस पर पाबंदी औऱ वहीं लड़कों को गुपचुप तरीके से ही सही पितृसत्तात्मक समाज को मजबूत करने की ट्रेनिंग तो नहीं दे रहे होते हैं।
मैं नहीं कह रहा कि जब वो लड़कों को किस लेने या उड़ाने,तू चीज बड़ी है मस्त-मस्त गाने के लिए, आंख मारकर बुआ या मौसी पर तिरछे ढंग से मुस्कराने की कला सिखा रहे होते हैं तो अपनी लड़कियों को भी वही सब सिखाएं। बात बस इतनी है कि लौंड़ों के लिए जो चीजे सहज,कैजुअल औऱ मजाक करने की है, लड़कियों के लिए वही चीजें संस्कार, मर्यादा, खानदान की इज्जत कैसे साबित हो जाती है।

किसी के भी घर में लड़कियों के लिए जो मैं सबसे ज्यादा शब्द सुनता हूं वो ये कि- निम्मी,पीउ,जिया, अब बड़ी हो रही है, उसके सामने ऐसी बातें नहीं करनी चाहिए, उसके सामने फलां चीजें नहीं रखनी चाहिए, आउटलुक का ये अंक आप बेड के नीचे ही रखिए, टेबुल पर रखने से वो पलटने लगेगी। कितना डर है हमें लड़कियों के समझदार हो जाने का, कितना भरोसा है हमें कि ये सब चीजें लड़कियां लड़कों से जल्दी समझ लेती है। लेकिन, लड़कियों को गैर समझदार औऱ बुराइयों से दूर रखने, उसकी इज्जत को लेकर लगातार चिंतित होने की विभाजन रेखा स्पष्ट नहीं होती। अपनी तरफ से लाख कोशिश करने के बाद हम उसे घालमेल कर देते हैं। हम जिस बहन-बेटी के इज्जत की बात करते हैं, उसकी रक्षा की बात करते हैं,ठीक उसी समय कैसे उसकी धज्जियां उड़ा रहे होते हैं,पोस्ट लिखने की तात्कालिक वजह के तौर पर इन्हें देखें-
साभारः- मोहल्ला

विनाश said...
सही काम कर रहे हो आखिर तुम्हारी बिटिया भी बडी हो रही है उसे भी खुला समाज चाहियेगा . इसकी एक शाखा अंतर्वासना डाट काम का भी विज्ञापन कर डालो ना जहा बेटी और बाप आपस मे सेक्स कैसे करते है कि कहानिया छपती है
January 24, 2009 6:56 PM

Anonymous said...
बहन बेटियाँ भी तो पढ़ रही थी तेरा ये ब्लॉग .
मादरचोद तेरी वजह से अब नेट कनेक्शन ही हटवाना पड़ेगा.
छि छि छि
शर्म आनी चाहिए तू तोह एक पत्रकार (तथाकथित ही सही) है न.
January 24, 2009 11:26 PM

("सविता भाभी डॉट कॉम पर आपका स्‍वागत है!" पोस्ट की प्रतिक्रया)
ये वो लोग हैं जो बहन-बेटियों को बिगड़ने सबचाना चाहते हैं, इस बात से निश्चिंत होकर कि उनके द्वारा की गयी टिप्पणियों को पढ़कर बहन-बेटियों पर कोई असर नहीं होगा,मन एकदम से कसैला नहीं होगा कि देश के किसी बाप या भाई ने उसके संस्कारी बनाने की मांग को किस तरह लोगों के सामने रखा।
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11 Response to 'लड़कियां तो चाहिए संस्कारी और लड़के......?'
  1. कार्तिकेय मिश्र (Kartikeya Mishra)
    http://test749348.blogspot.com/2009/01/blog-post_24.html?showComment=1232872560000#c5530023791138300098'> 25 January 2009 at 00:36

    आपकी बात से सर्वथा सहमत हूँ। निश्चित ही मर्यादा और रीतियों के नाम पर पुरुष-हित साधन के बीज बच्चों में जन्म से ही डाले जा रहे हैं। एक ही हवा-पानी में पले-बढ़े बच्चों और बच्चियों में अंतर देखिये। एक आत्मविश्वास से दमकता तो दूसरी इनफ़ीरियारिटी के तले दबी-कुचली।

     

  2. दिनेशराय द्विवेदी Dineshrai Dwivedi
    http://test749348.blogspot.com/2009/01/blog-post_24.html?showComment=1232874180000#c1947493604612132280'> 25 January 2009 at 01:03

    भाई, कीचड़ में पत्थर फैंका है, छीटे उचट रहे हैं।

     

  3. makrand
    http://test749348.blogspot.com/2009/01/blog-post_24.html?showComment=1232875020000#c5355911596888877672'> 25 January 2009 at 01:17

    bikul thik kaha aapne

     

  4. अक्षत विचार
    http://test749348.blogspot.com/2009/01/blog-post_24.html?showComment=1232875140000#c2493679647581451842'> 25 January 2009 at 01:19

    समाज की कमजोर नस पकड़ी है आपने। बहुत आभार।

     

  5. अनिल कान्त :
    http://test749348.blogspot.com/2009/01/blog-post_24.html?showComment=1232880660000#c9112458277069668096'> 25 January 2009 at 02:51

    दमदार लेख ...........

    अनिल कान्त
    मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति

     

  6. संगीता पुरी
    http://test749348.blogspot.com/2009/01/blog-post_24.html?showComment=1232880720000#c8021494173364844336'> 25 January 2009 at 02:52

    बहुत सही कहा.....गणतंत्र दिवस की ढेर सारी शुभकामनाएं...

     

  7. विवेक
    http://test749348.blogspot.com/2009/01/blog-post_24.html?showComment=1232899260000#c4180270728025029113'> 25 January 2009 at 08:01

    बहुत करारा और सही जवाब दिया..अच्छा किया...आप देख सकते हैं कि यही लोग नेट पर उन गलियों में भटकते मिल जाते हैं...और तब इनका मकसद वही होता है...जिसके लिए इन्हें दिक्कत हो रही है...

     

  8. सचिन मिश्रा
    http://test749348.blogspot.com/2009/01/blog-post_24.html?showComment=1232901660000#c835327444220350457'> 25 January 2009 at 08:41

    sahi kaha aapne, gantantra diwas ki hardik subhkamnayein.

     

  9. Tarun
    http://test749348.blogspot.com/2009/01/blog-post_24.html?showComment=1232942880000#c6521317691573452638'> 25 January 2009 at 20:08

    Woh bhi sanskaari hi chahiye...baaki kya kahoon - boya per babul ka to aam kehan se hoven

     

  10. सुजाता
    http://test749348.blogspot.com/2009/01/blog-post_24.html?showComment=1232944680000#c4723942570491260278'> 25 January 2009 at 20:38

    विनीत
    अच्छी पोस्ट है , अभी देखा , गालियों पर इस साल के आरम्भ मे ही जब हमने लिखा तो इस प्रकार की मानसिकता के दर्शन सभी को हुए थे। हम केवल यही कह रहे थे कि जब आप गालियाँ देते हैं सरे आम तो इस बात के लिए तैयार रहिए कि आप अपनी बेटी, पत्नी, बहन , मित्र के मुख से वही गाली सुनेंगे और तब छि छि न करिएगा , करेंगे तो आप दोगले कहलाएंगे।
    ठीक इसी बात पर हमें आगे बढ कर रेड लाइट एरिया खोलने की सलाह दी गयी।

    मुझे ये प्रतिक्रियाएँ देख कर कतई हैरानी नही हुई। हैरानी तब होती कि जब आपकी बात को समझा गया होता।
    दुखद है!

     

  11. विनीता यशस्वी
    http://test749348.blogspot.com/2009/01/blog-post_24.html?showComment=1232953320000#c8776553269392714357'> 25 January 2009 at 23:02

    Vineeta ji mai aapki baat se sahmat hu.

    aapne ek satik mudda uthaya hai.

     

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