
सविताभाभी.कॉम के फैन क्लब में एक लड़की ने स्क्रैप लिखा कि- मैं सविताभाभी को रेगुलर पढ़ती हूं, मैं लेसबियन हूं और चाहती हूं कि सविताभाभी को लेसबियन के साथ संबंध दिखाए जाएं। संभव है लड़की ने जो नाम फैन क्लब में दिए हों वो गलत हो और अपनी पहचान छुपाने की कोशिश की गयी हो लेकिन एक बात तो समझ में आती ही है कि सेक्स को लेकर लड़कियों ने भी अपनी पसंद औऱ नापसंद जाहिर करनी शुरु कर दी है।
अपने यहां देखें तो स्त्री औऱ पुरुषों को लेकर सेक्स और शारीरिक संबंधों के मामले में अलग-अलग मानदंड रहे हैं। स्त्रियों के लिए सेक्स या सहवास वंशवृद्धि के लिए है, खानदान के चिराग को जलाए रखने के लिए है,बुढ़ापे के लिए लाठी की टेक के रुप में औलाद पैदा करने के लिए है। इसके आगे सहवास का उसके जीवन में कोई अर्थ नहीं है। इसमें न तो उसकी इच्छा, न खुशी औऱ न ही सैटिस्फेक्शन शामिल है। स्त्रियों के लिए सहवास धर्म की तरह है और जिस तरह धर्म का पालन इच्छा पूर्ति के बजाय साधना के लिए की जाती है, उसी तरह स्त्रियों के लिए सहवास साधना के तौर पर परिभाषित होकर रह जाती है जिसकी अंतिम परिणति है, मातृत्व को प्राप्त करना, बस।
पुरुषों के लिए भी सहवास एक धर्म की तरह है जिसमें सिर्फ संतान पैदा करना औऱ वंशवद्धि करना तो होता ही है लेकिन उसके जरिए आनंद प्राप्त करने की छूट मिलती नजर आती है। नहीं तो तथाकथित माहन ग्रंथों में, एक पुरुष के लिए कई स्त्रियों के विधान को धार्मिक कलेवर न दिया जाता। खैर,
सेक्स को लेकर किसी गंभीर अवधारणा में न भी जाएं औऱ फिलहाल इस बात को शामिल कर लें कि सेक्स शुरु से ही सिर्फ और सिर्फ संतान पैदा करने के लिए जरुरी विधान नहीं रहा है। पुरुषों के मामले में तो बिल्कुल भी नहीं। दबे-छुपे ही सही लेकिन इसे आनंद के साथ स्वीकृति मिलती रही है। अब तो ये कॉन्सेप्ट के तौर पर है-कि सेक्स इज फॉर प्लेजर। सेक्स आनंद के लिए है। इस कान्सेप्ट का सबसे मजबूत उदाहरण आपको देशभर के पुरुष टॉयलेटों में चिपके सफेद-काले इश्तेहारों में मिल जाएगें जहां किसी क्रीम, तेल या कैप्शूल के बाकी गुणों को बताने के साथ-साथ मस्ती का पूरा एहसास जैसे पेट वर्ड शामिल किए होते हैं। देशभर में प्रकाशित होनेवाले दैनिक समाचार पत्रों में छपे विज्ञापनों में मिल जाएंगे। इस तरह की चीजों के विज्ञापन जहां कहीं भी आपको दिखेंगे उससे कभी भी आप एहसास कर पाएंगे कि तेल,कैप्सूल और क्रीम की जरुरत संतान पैदा करने के लिए सहवास के दौरान आएंगे। खोई हुई दुर्बलता, पौरुष ताकत हासिल करने का नुस्खा, आनंद और मस्ती का एहसास ऐसे शब्दों से भरे विज्ञापन ये आसानी से स्थापित कर देते हैं कि सेक्स सिर्फ संतान के लिए ही नहीं प्लजेर के लिए भी किए जाते हैं। इस संदर्भ में कंड़ोम को सेक्स एज ए प्लेजर की संस्कृति को बढ़ाने का सबसे मजबूत माध्यम मान सकते हैं। इन सबके वाबजूद भी अगर कोई अभी भी इसे धार्मिक कार्य औऱ साधना जैसे शब्दों से जोड़कर देखता है तो वो इसके बहाने दर्शन औऱ आध्यात्म पर बहस करना चाहता है या फिर पाखंड फैलाने का काम करना चाहता है। और मैं इन दोनों से बचना चाहता हूं।
लेकिन प्लेजर का यही कॉन्सेप्ट जरा स्त्रियों के मामले में लागू करके देखिए। लागू तो दूर,समाज का एक बड़ा तबका कैसे आपको काट-खाने के लिए दौड़ता है। कृष्णा सोबती ने अपने उपन्यास मित्रो मरजानी में एक स्त्री को अपने पति से शारीरिक तौर पर असंतुषट होने औऱ उसे इसी आधार पर अस्वीकार कर देने की बात की तो पूरा हिन्दी समाज पिल पड़ा। स्त्री-विमर्श का एक सिरा जब ये कहता है कि देह के जरिए भी मुक्ति संभव है तो पितृसत्तात्मक समाज आग-बबूला हो उठता है। तमाम तरह की मुक्ति और बदलावों की बात कर लेने के बाद स्त्री-मुक्ति औऱ सेक्स के स्तर पर बात करने की कोशिश की जाए तो समाज उसे पचा ही नहीं पाता। वो इतना घबरा जाता है कि उसे लगता है कि स्त्रियों को आड़े हाथों लेने के लिए, उसे,यौन-शुचिता जैसे सवालों से घेरकर ही तो बेडियों को मजबूत बांधे रखा जा सकता है। अब जब वो सेक्स को भी रोजमर्रा की चर्चा में शामिल करने लग गयी, उसमें भी अपनी पसंद और नापसंद बताने लग गयी तो फिर ऐसा क्या बच जाएगा जिससे कि सामंती और गुलामी की संस्कृति को जिंदा रखा जा सकेगा।
अब आप ही बताइए,ऐसे में, कोई लड़की नियमित अपडेट होनेवाले सविताभाभी.कॉम के पन्ने पढ़ती है, और तो और अपनी पसंद भी फैन क्लब में ठोंक जाती है तो ऐसी लड़कियों का क्या कर लेगें आप। सिवाय दिन-रात ये मनाने के कि हे भगवान ऐसी लड़कियों की संख्या न बढ़े।
http://test749348.blogspot.com/2009/01/blog-post_17.html?showComment=1232184960000#c6168689891691673831'> 17 January 2009 at 01:36
bahut vicharniya thatya vineet ji
http://test749348.blogspot.com/2009/01/blog-post_17.html?showComment=1232186160000#c3180087900270286783'> 17 January 2009 at 01:56
बहुत खुल कर लिखा है भाई। मुबारक।
http://test749348.blogspot.com/2009/01/blog-post_17.html?showComment=1232196060000#c4604615522078552139'> 17 January 2009 at 04:41
सराय के दीवान पर विजन्द्र सिंह चौहान ने लिखा-
विनीत,
संभव है लड़की ने जो नाम फैन क्लब में दिए हों वो गलत हो और अपनी पहचान छुपाने की कोशिश की गयी हो लेकिन एक बात तो समझ में आती ही है कि सेक्स को लेकर लड़कियों ने भी अपनी पसंद औऱ नापसंद जाहिर करनी शुरु कर दी है।
यदि पहचान गलत की संभावना पर विचार कर रहे हैं तो कतई समझ नहीं आता कि लड़कियों ने यौन अभिव्यक्तियॉं शुरू कर दी हैं। और अधिक संभवना है कि ऐसा ही है। पार्न कंटेंट की दुनिया में लेसिबयन संबंधों के चित्रण के ग्राहक (पाठक/व्यूअर) पुरुष समझे जाते हैं। यानि जिन सामग्री में समलैंकिग स्त्री संबंधों का चित्रण होता है उनके 'रसास्वादन' में पुरुष रुचि मानी जाती है।
'तो ऐसी लड़कियों का क्या कर लेगें आप। सिवाय दिन-रात ये मनाने के कि हे भगवान ऐसी लड़कियों की संख्या न बढ़े। '
हमारे मनाने से क्या होता है...हम तो ये भी मनाते हैं कि नया नया लैपटाप लिए पीएचडी के शोधार्थी सविताभाभी के द्वारे जाने के स्थान पर शोध पर घ्यान दें। ...कुछ होता हे हमारे मनाने से :))
विजेंद्र
2. सराय के दीवान पर रविकांत ने लिखा-
पर विजेन्द्र जी,
देखिए कि नया लैपटॉप लेने के बाद ये पीएचडी का शोधार्थी कितना ज़्यादा प्रोडक्टिव हो गया है.
और सविता भाभी भी उसके शोध का हिस्सा माना जाए. क्या ख़याल है?
रविकान्त
3. सराय के दीवान पर विनीत ने लिखा-
विजेन्द्र सर
मेरे ही विभाग में अभी दस दिन पहले ही एक लड़की लेसबियन संबधों पर एम.फिल् जमा करके फ्री हुई है। इन दिनों कैंपस के आसपास चाय पीती हुई मिल जाएगी। उसके लिए सविताभाभी जैसे मसले पर बात करने से उसकी रिसर्च को एक जमीन मिल रही थी। कहीं से इस बात को नहीं इस तरह से नहीं लिया कि मैं बाकी के सारे रिसर्च के काम को छोड़कर इधर-उधर(साइट पर ही) भटकता हूं। आपके द्वार शब्द के प्रयोग में एक अलग किस्म की बारीकी पाता हूं। इसलिए मेरे प्रति आप चिंतित हो उठे। दरअसल, मैं सविताभाभी की बात को सिर्फ पसंद-नापसंद तक शामिल करके नहीं देखना चाहता। मैं तो इस बात पर बहस करना चाह रहा था कि आखिर लड़कियों को सेक्स के मामले में खुलकर क्यों बात नहीं की जानी चाहिए। मैंने शायद अंतिम पैरा में आप शब्द का इस्तेमाल कर दिया, जिसे आपने अपने चपेटे में ले लिया। इसे डिलीट न करते हुए भी आप सबों से माफी चाहता हूं।
नेट पर ये भी संभव है कि लड़की की फोटो और नाम से कोई लड़का ही स्क्रैप लिख गया हो जैसा कि आपका अध्ययन से निकलकर आता है। मैंने भी देखा है कि कई लड़कियां और कुच लड़के ऑरकुट पर उन तस्वीरों को लगा जाते हैं जो कि वो होते ही नहीं।
सरजी, आप मेरे रिसर्च को लेकर इतना गंभीर हैं, जानकर अच्छा लगता है। नहीं तो जैसे आज आप सविताभाभी को भटकने और बिगड़ने की चीज मान बैठे, उसी तरह कुछ महीने पहले कुछ लोग टेलीविजन को भी लेकर ऐसे ही मान लिया था। आज मामला स्वाभाविक है। संभव है आनेवाले समय में आज आप जिस बात से असहमति जता रहे हैं, वो भी स्वाभाविक मान लें।
और अंत में, सरजी अपने नए लैपटॉप को लेकर इतना सतर्क और डरा रहता हूं कि बाहरी सुरक्षा के लिहाज से गोदरेज में ताला लगाकर रखता हूं जबिक आंतरिक सुरक्षा के तौर पर हर साइट खोलने के पहले बहुत डरता हूं। इसलिए यदि मेरी इस पोस्ट को नए लैपटॉप की उपज मानते हैं तो उचित नहीं है। इतना जरुर है कि लिखना इस पर बहुत पहले से चाहता था लेकिन कहीं दूसरी जगह से लिखना संभव नहीं हो सका। हां कोई मजबूत एंटीवायरस दिलाने का भरोसा दे दे कि कुछ भी देखने से सेव की हुई चीजों का कुछ नहीं होगा तो एक शोधपरक लेख इस विषय पर बाकी की साइटों को देखकर जरुर लिखना चाहूंगा। और सिर्फ वेब गर्ल की आजादी को लेकर ही नहीं, बाजार, देसी पोर्न की बढ़ती साइटें और क्यों इसे सोशल एक्सेपटेंस न मिलते हुए भी प्रैक्टिस के तौर पर जमकर पॉपुलरिटी मिल रही है।
उम्मीद है कि आगे इस तरह की बहसों को व्यक्तिगत स्तर पर जोड़कर देखने के बजाय एक विमर्श के तौर पर लिया जाएगा।
शुक्रिया सहित
विनीत
http://test749348.blogspot.com/2009/01/blog-post_17.html?showComment=1232269500000#c505614260945931161'> 18 January 2009 at 01:05
सराय के दीवान पर राकेश सिंह ने लिखा-
सविताभाभी.कॉम से मिलते-जुलते ऑफलाइन सामग्रियों पर एक शोध अभय कुमार दुबे जी ने किया
था जो बाद में 'दीवान-ए-सराय' में भी छपा था. रविकान्त जी वाली सलाह को ही और
आगे बढाते हुए मेरी ये गुजारिश है कि ऑनलाइन पॉर्न सामग्रियों पर किया जाने वाला कोई
भी काम सेक्शुअल्टी के सवाल पर संभवत: कोई नया नज़रिया दे सकेगा.
मेरे ख़याल से ऐसे अध्ययनों की सख़्त दरकार है.
राकेश
http://test749348.blogspot.com/2009/01/blog-post_17.html?showComment=1232724600000#c465876001013106414'> 23 January 2009 at 07:30
विनीत जी आपका ब्लॉग और रिसर्च देखकर आपके बारे मे सब कुछ पता चल गया!
आपके प्रयास बहुत अच्छे है और टेलिविज़न को लेकर आपकी मानसिकता भी बहुत अच्छी है ,और सत्ये है !!
http://test749348.blogspot.com/2009/01/blog-post_17.html?showComment=1232787180000#c4597076074543399091'> 24 January 2009 at 00:53
badhiya likha....
http://test749348.blogspot.com/2009/01/blog-post_17.html?showComment=1263159142699#c5699661536277469128'> 10 January 2010 at 13:32
भाई बहुत खुल कर लिखा है।
http://test749348.blogspot.com/2009/01/blog-post_17.html?showComment=1263159142700#c4731805218502340823'> 10 January 2010 at 13:32
भाई बहुत खुल कर लिखा है।