ओह माइ गॉड, दो लड़कों के बीच के प्रेम को देखने के लिए इतनी मारामारी, एक मिनट भी बर्दाश्त नहीं कर सकते लोग। बत्रा सिनेमा में घुसने के क्रम में जब मैंने ये लाइन कही तो मेरे आगे की तीन लड़कियां ठहाके मारकर हंसने लग गयी। वो पीछे मुड़कर देखना चाहती थी कि कौन बंदा है जो इतनी बेबाकी से अपनी बात कह रहा है। लेकिन जब तक वो मुड़ती, मेरी जगह प्रबुद्ध आ गया था और सारी क्रेडिट उसी के खाते चली गयी। मेले-ठेले, भीड़भाड़ इलाके में और खासकर जहां मामला इंटरटेन्मेंट का हो, मेरी तरह हजारों लोग हैं जो कुछ न कुछ कमेंट किया करते हैं। मां कहा करती है कि लड़कियों को देखते ही लड़के बौडा यानि बौरा जाते हैं. लेकिन यहां मैं येसब इसलिए कर रहा था कि कहीं मेरी नाजुक चप्पल इसे रेलम-पेल में शहीद न हो जाए।

बत्रा में नंबर के हिसाब से सीटिंग अरेंजमेंट नहीं है, जिसको जहां सीट मिले, लपक लो। अब संयोग देखिए कि वो तीनों लड़कियां मेरी ही लाइन में बैठी। उनलोगों को इस बात का एहसास हो कि उनके बगल में जो लोग बैठे हैं, क्रिएटिव किस्म के लोग हैं, सिर्फ सिनेमा देखने की नीयत से नहीं आए हैं, यहां से जाकर ब्लॉग लिखेंगे, दूसरा अखबार में लिख मारेगा और तीसरा तो यूथ और सिनेमा पर रिसर्च आर्टिकल की तैयारी में जुटा है, प्रबुद्ध ने कहा- जानते हैं विनीतजी, कुछ लोग इसलिए आपाधापी मचा रहे थे कि कहीं पोलियोवाला विज्ञापन छूट न जाए। पोल्टू दा ने कहा और औरतें तो इसलिए मारामारी कर रही थी कि वो अंदर जाकर जल्दी से अपने पति को नागिनवाला विज्ञापन दिखा सके और कहे कि- चुनो किसको चुनना है, हमें या फिर शराब को। वो लोग पति का आंख खोलने के लिए मारामारी कर रही थी। इन सबके बीच मैं अपने को थोड़ा कॉन्शनट्रेट करने में लगा था। इन तीनों लड़कियों सहित आजू-बाजू के लोगों की प्रतिक्रिया सुनना चाहता था।

फिल्म में जैसे ही नेहा यानि प्रियंका चोपड़ा ने अभिषेक और जॉन इब्राहिम से पूछा कि- इतने दिनों तक तुमलोग एक ही कमरे में रहे, तुमलोगों के बीच...मेरा मतलब है कि कभी...। तभी तीनों में से एक लड़की ने कहा- हाउ चीप। कोई लड़की कैसे किसी लड़के से ऐसा पूछ सकती है। कोहनी मारते हुए दूसरे से पूछा-बता न, तू पूछ लेगी। उनलोगों को जब लगा कि हम उनकी बातों को गौर से सुन रहे हैं तो कुछ ज्यादा जोर से ही बाते करने लगी। अब वो बातें कम और हमारे सामने क्योशचनआयर ज्यादा फेंक रही थी। प्रबुद्ध ने जबाब दागा- इसमें नया क्या है, हमारे हॉस्टल में तो कईयों की गर्लफ्रैंड कहती है और ठहाके लगाती है- पहले ही बता दो, पार्टनर के साथ कुछ चक्कर-वक्कर तो नहीं है। पता चला, एक सेमेस्टर बर्बाद भी किए और फिर तुम मासूम साबित हो जाओ.

दोनों के किस लेने और पासपोर्ट के लिए ऐज ए कपल अप्लाय करने पर पीछे से एक लड़के ने कहा- अब लड़कियों को आएगा मजा। बहुत भाव खाती रही है अब तक। देखिएगा, बहुत जल्द ही सब लड़कियों का नेहवा वाला हाल होगा। हठ्ठा-कठ्ठा लड़का दोस्त तो बन जाएगा लेकिन बस देखने भर का, उसके लेके कोई सपना नहीं देख सकती है। हम पहले ही कहे थे आपको मर्द,मर्द होता है, बैठा नहीं रहेगा लड़कियों के भरोसे। देख नहीं रहे हैं, कैसे दोनों फ्री माइंड से अपना काम कर रहे हैं और नेहवा है कि लसफसा रही है। एक ने समर्थन किया- बाबा, आप तो बेकार में यूपीएसी के पीछ पड़े हैं, गांव का खेत बेचिए और दोस्ताना एक्स बोलके फिल्म बनाइए।

पब्लिक कमेंट्स की वजह से फिल्म की लाइन साफ-साफ सुनना मुश्किल होने लग गया था। फिल्म को समझने के लिए एकबार और देखने की जरुरत थी। पोल्टू दा लगातार कह रहे थे, तुमलोगों को पहले ही कहा- उपर देखते हैं लेकिन विनीतजी कहते है- अरे वहां कुछ नहीं मिलेगा। मसाला खोजने के चक्कर में इनको डीक्लास में घुसते एक मिनट भी नहीं लगता। तभी पीछे से फिर आवाज आयी-

गूगल बाबा, इ दोनों हीरो जो कर रहा है न किराया पर घर लेने के लिए, वो हमारे गांव में भी खूब होता है। इसको हमलोग मरउअल-मरअउल खेलना कहते हैं। बाकी गांव में कोई स्वीकार नहीं करता कि ऐसा हमलोग करते हैं। इ दोनों सही में असली मर्द है, करेजा ठोककर कह रहा है कि हां- हम गे हैं। अब करे जिसको जो करना है.

धीरे से एक ने कहा- आपको ये सब बात यहां नहीं करनी चाहिए, सामने आपकी भौजी लोग बैठी है, सुनेगी तो क्या सोचेगी। बन्दे ने तपाक से कहा- क्या सोचेगी, जब एतना ही आंख के कोर में पानी रहा तो घर में रहती, सीडी मंगाके देखती। सोचेगी कि लड़को से बराबरी भी करें और कुछ सुनना भी न पड़े तो ऐसे कैसे होगा। बाकी देखिएगा- धीरे-धीरे जो लोग हैं ,स्वीकार करने लगेंगे कि वो गे हैं. फिलिम का समाज पर असर तो होता ही है।

सुबह एनडीटीवी इंडिया की रिपोर्ट है कि मुंबई में दोस्ताना फिल्म की एक स्पेशल शो आयोजित की गयी और फिल्म की वजह से लोगों में हौसला बढ़ा है। हरीश अय्यर इसके पहले अपनी बहन को कभी नहीं बताया कि वो गे हैं। लेकिन फिल्म आने के बाद जैसे ही बताया तो उसकी बहन ने पूछा कि- आप कौन से गे हो अभिषेक की तरह या फिर जॉन की तरह। एक महिला की बाइट थी कि- मेरा बेटा अमेरिका मे रहता है और वो गे है. स्क्रीन पर सबके सामने एक्सेप्ट करती है। निर्माता तरुण मनसुखानी का मानना है कि फिल्म के कारण लोगों का नजरिया बदला है। उम्मीद कीजिए कि अगर कोई ओसामा पर फिल्म बनाये तो उसका हृदय परिवर्तन हो और वो किसी चैनल पर आत्मसमर्पण करता दिख जाए।

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5 Response to 'जब मां दा लाडलों ने देखा- तुम्हारा बेटा गे है'
  1. Suresh Chiplunkar
    http://test749348.blogspot.com/2008/11/blog-post_17.html?showComment=1226995380000#c3650882225370967058'> 18 November 2008 at 00:03

    करण जौहर ने यह फ़िल्म इसीलिये बनाई है ताकि उसके ऊपर लगे "आरोपों" पर बाद में आराम सफ़ाई दे सके… कि मैं तो पहले से ही……

     

  2. तरुण गुप्ता
    http://test749348.blogspot.com/2008/11/blog-post_17.html?showComment=1227002040000#c4035625322097469933'> 18 November 2008 at 01:54

    तरुण मनसुखानी का जो भी मानना रहा हो लेकिन एक बात तो साफ है कि अगर ये फिल्म ना भी बनती तो भी लोगों के नज़रिये में कोई ख़ासा फर्क नहीं आता । यदि फिल्मों से ओसामा , ओबामा बनने लगे तो सेना की संख्या बढ़ाने से अच्छा ये होगा कि हम इन विषयों पर बनने वाली फिल्मों की संख्या बढाने पर तवज्जों दें ।

     

  3. PD
    http://test749348.blogspot.com/2008/11/blog-post_17.html?showComment=1227030540000#c4796642599480948957'> 18 November 2008 at 09:49

    आपका प्रसारण जीवंत रहा.. बहुत बढ़िया.. लगा जैसे बगल में हम भी बैठकर देख रहे हैं.. :)

     

  4. miHir pandya
    http://test749348.blogspot.com/2008/11/blog-post_17.html?showComment=1227135360000#c2767739278359202448'> 19 November 2008 at 14:56

    अच्छी रिपोर्ट थी! बत्रा में ही जाकर देखनी पड़ेगी लगता है अब तो. वैसे इससे पहले भी ’रूल्स’ और ’माय ब्रदर निखिल’ जैसी फ़िल्मों मे यह ’गे-दोस्ताना’ ज़्यादा अच्छी तरह और बिना हास्य के तड़के के दिखाया जा चुका है. और विदेशी ’ब्रोकबैक माउंटेन’ तो संवेदनाओं के स्तर पर एक classic फ़िल्म थी ही.

     

  5. Abhishek
    http://test749348.blogspot.com/2008/11/blog-post_17.html?showComment=1227253980000#c8168332238242875423'> 20 November 2008 at 23:53

    मज़ा आ गया! मैंने दोस्ताना तो नहीं देखी है, लेकिन एक वाकया याद आ गया। 'तक्षक' फ़िल्म में अमरीश पुरी, अजय देवगन से काफ़ी गुस्से से कहते हैं 'अच्छा तो ये लड़की का चक्कर है'। अच्छा भला सीरियस सीन था लेकिन 'लड़की का चक्कर' सुनते ही साड़ी जनता ठहाके लगा के हंस पड़ी!

     

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