स्त्री अभी संतान नहीं होने पर बांझ कहलाने के दर्द से मुक्त भी नहीं हो पायी है कि पुरुष समाज ने उसके दर्द को बढ़ाने के लिए एक और मुहावरा गढ़ लिया है। सबके बारे में पूछने के बाद उसने मेरे साथ पढ़नेवाली एक लड़की के बारे में पूछा और मेरा जबाब सुनकर उसने सीधे कहा कि- जिस लड़की के अब तक भी कोई ब्ऑयफ्रैंड नहीं है वो समझो ठूंठ है।

फोन आने के दस मिनट बाद भागकर मैं उसे विश्वविद्यालय मेट्रो स्टेशन पर मिलने गया था। अभी वही से आ रहा हूं। मिलने क्या गया था, तय था कि आज वो पूरा दिन मेरे साथ बिताएगा. हांलाकि मैंने उसे अपनी परेशानी पहले ही बता दी थी कि- देख काम में लगा हूं, कल तक मुझे हर हाल में पूरा करके देना है। उसने कहा कि उपन्यास तो होगा न गुरु कि मीडिया के चक्कर में सब बेच-बाच दिए. तुम अपना काम करना, मैं एकाध उपन्यास पढ़ लूंगा। अभी से लेकर शाम तक तो माल-ताल नापने में ही निकल जाएगा। मैंने काह-चलो ठीक है और मैं स्टेशन लाने चला गया.मिलते ही उसकी बेचैनी दुनियाभर के लोगों के बारे में जानने की थी. डेढ़ साल बाद वो मुझसे मिल रहा था. सबके बारे में पूछ रहा था कि कौन किस अखबार में गया, किस चैनल में कौन खप गया। लेकिन उसकी दिलचस्पी सबसे ज्यादा उन लड़कियों में थी जिसे कि वो एंकर आइटम कहा करता. दो-तीन मिनट में सहके बारे में पूछ लेने के बाद अब एक-एककर के सिर्फ लड़कियों के बारे में पूछ रहा था। उसे सारे लड़कियों की याद रौल नंबर से याद थे.तीन-चार लड़कियों के बारे में जब मैंने बताया कि ये लोग अच्छी जगह पर हैं। एड एजेंसी में है, बढ़िया पैसा मिल रहा है। दो-तीन नेशनल चैनल में है और अच्छा कर रही है तो उसका मन एकदम से उदास हो गया। कहने लगा- वो लोग अब अपने को क्या घास देगी. यही होता है, लड़की के तरक्की कर लेने और लड़के के पीछे रह जाने से। स्साला छह-पांच की गुंजाइश ही खत्म हो जाती है. आगे उसका सवाल था- तुमसे बतियाती है कि नहीं. एक के बारे में मैंने कहा कि वो मिली थी अपने ब्ऑयफ्रैंड के साथ कमलानगर में. उसके बाद वो जिद करने लगी और तब हमसब मिलकर मोमोज खाए। वो चिढ़ गया। हम आज तक नहीं समझ पाए तुमको कि जिसके ऑल रेडी ब्ऑयफ्रैंड है उसके साथ तुमको समय बिताने में क्या मजा मिलता है और वो भी तब जबकि वो भी साथ में हो। तुम पैदा ही लिए हो कन्यादान के लिए। मैं सिर्फ हंस रहा था।

अच्छा छोड़, उसका क्या हुआ जो बात-बात में तुमसे कहती थी- ऐ हीरो और चिकोटी काट के भाग जाती थी। मैंने कहा- वो भी मस्त है। अरे मस्त है काम में कि कहीं और. कुछ मामला बना कि नहीं। वो तो बहुत छुछुआते फिरती थी. मैंने कहा- ऐसा नहीं है, वो मिलनसार किस्म की लड़की है, सबसे बात करना चाहती है. हां बेटा बोल ले, छू-छा का मजा तो ले ही लेते थे तुम भी। अब मैं न चाहते हुए भी थोड़ा-थोड़ा सुलग रहा था. एक तो इस बात पर कि वो जब भी मिलता है या फिर फोन पर बात होती है- सिर्फ लड़की को लेकर बैठ जाता है और फिर लड़ाई पर ही बात खत्म होती है. मैं बार-बार उसके बारे में सोचता हूं कि बातें करना बंद कर दूं लेकिन सेंटी होकर रोने-गाने लग जाता है। उसके इस बात पर कि बेरोजगार हूं तभी तो लतियाते हो, मैं फिर से बोलने लग जाता हूं.


उसका फोन आता है कि नहीं। मैंने पूछा- किसका। अरे उसी का जब सबकी वैलीडिटी खत्म हो गयी थी, सब किसी ने किसी से लसक गयी थी तब उसने तुमसे बोलना शुरु किया था। तुमसे तो कुछ नहीं होगा, चैनल में किसी से कुछ हुआ कि नहीं. फोन तो अब भी करती ही होगी. मैंने कहा हां लेकिन इस बारे में कभी बात नहीं हुई. उसका भी एतना मेहनत करना अकारथ चला गया. और ससुरे तुम अब मास्टरी करोगे और दम भर माल लेकर भौजी लाओगे. मैंने फिर कहा-यार तुम्हार मन नहीं उबता है, ये सब बकबास करके. अरे, मन उबता है, इसी से तो मन लगा रहता है, दिन कट जाता है, नहीं तो बेकार आदमी के लिए दिन काटना पहाड़ है भई। वो कहावत सुनी है न- थैंक गॉड, मेड गर्ल्स.अब मैं पक रहा था, इसलिए बात बदलना चाह रहा था।

मैंने कहा- और बता कहीं कुछ रिज्यूमे भेजा, कहीं बात चल रही है भी नहीं। उसने मेरी तरफ गौर से देखा और कहा- स्साले तुम एकदम ढंडेकिस्म के आदमी हो। अबे अगर कोई लड़की सुंदर है, पैसे कमा रही है और फिर भी किसी लड़के से टांका नहीं भिड़ा है तो वो ठूंठ है ठूंठ। यही बात मैं तेरे लिए भी कह सकता था लेकिन तू दोस्त है, ऐसा कहकर मर्दानगी पर कालिख नहीं पोतना चाहता। और ये जो तू मस्त-वस्त कह रहा है न, ये सब कुछ नहीं होता।
मैं अपना जरुरी काम छोड़कर उसे लेने गया था और अब तय कर लिया था कि इसे कमरे तक नहीं लाना है. मैंने उसे कहा- अब तुझसे मिल लिया, तू यहां से जहां जाना चाहता है जा। उसने चिल्लाकर पूछा- पर कहां। मैंने कहा- जहन्नुम लेकिन मेरे से मिलने दोबारा मत आना.
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6 Response to 'बिना ब्ऑयफ्रैंड के लड़कियां ठूंठ होती है'
  1. अपना अपना आसमां
    http://test749348.blogspot.com/2008/09/blog-post_05.html?showComment=1220616360000#c5897732948380723609'> 5 September 2008 at 05:06

    विनीत आपने बेरोजगारी और भदेस विचारों के मेल को बड़ी खूबसूरती से कलमबद्ध किया है। लगता है यह ज़िंदगी का वह पड़ाव है जहां अपना चूकना देखने के बाद मन एकदम से विद्रोह कर बैठता है और इंसान बातचीत के ऐसे मुद्दे खोज निकालता है जिसे फींचकर उसे सुकून मिले। शायद यही हुआ आपके दोस्त के साथ भी। अच्छी रचना है..। शुभकामना!

     

  2. जितेन्द़ भगत
    http://test749348.blogspot.com/2008/09/blog-post_05.html?showComment=1220620200000#c2942995323016354120'> 5 September 2008 at 06:10

    हर नुक्‍कड़ पर खड़े होकर लोग यही बातें कर रहे हैं। ऐसे लोगों का कोई ठोस इलाज ढ़ूढ़ो यार।

     

  3. सुजाता
    http://test749348.blogspot.com/2008/09/blog-post_05.html?showComment=1220677740000#c401695268297753013'> 5 September 2008 at 22:09

    बढिया तस्वीर लगाई है।पर जितेन्द्र भगत की जैसी मेरी भी चिंता है।इस तरह की सोशल ट्रेनिंग से कैसे बाहर निकला जाए!

     

  4. रचना
    http://test749348.blogspot.com/2008/09/blog-post_05.html?showComment=1220684640000#c4355978019254464533'> 6 September 2008 at 00:04

    जितेन्द्र भगत और सुजाता से सहमति और कमेंट्स ना होना अपने आप मे बहुत कुछ कह रहा हैं

     

  5. pravin kumar
    http://test749348.blogspot.com/2008/09/blog-post_05.html?showComment=1220694060000#c3930553804699453851'> 6 September 2008 at 02:41

    vineet....baat kuch jami nahi DOST....KYA KAHU

     

  6. Abhishek
    http://test749348.blogspot.com/2008/09/blog-post_05.html?showComment=1221294780000#c678112570502876333'> 13 September 2008 at 01:33

    अगर लड़की ठूंठ है तो ऐसे लड़के क्या कहलाएंगे ;)
    खाली दिमाग शैतान का घर!

    अच्छी पोस्ट।

     

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