वैसे तो मीडिया और टेलीविजन को लेकर स्टीरियो टाइप की समीक्षा लम्बे समय से होती आ रही है. लगभग सारे अखबारों ने इसके लिए वाकायदा कॉलम बना रखे हैं। लेकिन मीडिया समीक्षा को एक विधा के तौर पर विकसित करने की कोशिश में भारतीय जनसंचार संस्थान, नई दिल्ली से निकलनेवाली पत्रिका संचार माध्यम का वाकई कोई जबाब नहीं. मीडिया को रिसर्च औऱ समीक्षा के जरिए देखने-समझने के लिए यह पत्रिका एक गंभीर मंच है.
पिछले शुक्रवार को आइआइएमसी जाना हुआ। आनंद प्रधान सर से कुछ बातचीत करनी थी. जाने पर पता चला कि अभी वो हिन्दी पत्रकारिता की क्लास ले रहे हैं। अब चालीस-पचास मिनट कहां बिताए जाएं, यही मैं सोचने लगा. तभी ध्यान आया कि आज से दो साल पहले मैंने संचार माध्यम की सदस्यता ली थी। तब पत्रिका का प्रकाशन बंद हो गया था. फिर भी यह सोचकर कि कभी तो प्रकाशन शुरु होगा, मैंने सदस्यता ले ली थी। इस बीच इस पत्रिका के लिए मैंने भी एक लेख लिखे और डाक द्वारा वो अंक भी मिल गया. यह कोई सात-आठ महीने पहले की बात है. उसके बाद मेरा वहां जाना ही नहीं हुआ। सोचा, चलो पता करते हैं, अगर इस बीच नए अंक आए होंगे तो ले लूंगा और पुराने अंक भी होगें तो उसे भी खरीद लूंगा..ऑफिस में जाने पर पता चला कि कल ही संसदीय पत्रकारिता पर विशेषांक आया है जिसमें कुलदीप नैय्यर सहित कई महत्वपूर्ण लोगों के लेख हैं. ऑपरेशन दुर्योधन से लेकर बाकी स्टिंग ऑपरेशन की चर्चा है। संसदीय रिपोर्टिंग को लेकर विशेष सामग्री है। मीडिया से जुड़े लोगों के लिए अनिवार्य अंक है, मैंने उसे खरीदा और पता किया कि और पुराने अंक कौन-कौन से आए हैं. ऑफिस की मैम ने सारे अंको की एक-एक प्रति निकाल दिए. कुल चार अंक थे. एक प्रति की कीमत २५ रुपये। सारे अंक लेकर मैं आनंद प्रधान सर के चैम्बर में पहुंचा और बताया कि मैंने सारे अंक खरीद लिए हैं. मीडिया पर सामग्री के लिहाज से २५ रुपये कुछ भी नहीं है।संचार माध्यम में छपे लेखों की जो सबसे बड़ी विशेषता मुझे लगी वो यह कि एक भी लेख स्टिरियो टाइप से नहीं लिखे गए थे। सारे नामचीन लोगों के लेख तो थे ही लेकिन उसके साथ यह भी था कि लेख को पढ़ते हुए किसी को भी अंदाजा लग जाएगा कि लेखक ने खासतौर से समय देकर पत्रिका के लिए लेख लिखा है. नहीं तो कई बार मैं देखता हूं कि मीडिया लेखन के नाम पर बड़े से बड़े लोग अपना एकतरफा मत देकर निकल लेते हैं। वो न तो रिसर्च करते हैं और न ही समीक्षा के लिए विश्लेषण पद्धति अपनाते हैं. उनके भीतर एक तरह का आत्मविश्वास होता है कि वो मीडिया समीक्षा के नाम पर जो कुछ भी लिख देगें, पाठकों के लिए ब्रह्म वाक्य हो जाएगा। इसलिए हिन्दी मीडिया समीक्षा में बहुत कुछ लिखे जाने के बाद भी व्यवस्थित मीडिया पद्धति का विकास नहीं हो पाया है, कार्यक्रमों की विविधता और माध्यमों की अलग-अलग प्रकृति के हिसाब से आलोचना पद्धति का विकास नहीं हो पाया है.संचार माध्यम पत्रिका के अधिकांश लेख को पढते हुए हमें यह सहज लगा कि लिखनेवाले ने विषय पर ठीक-ठाक रिसर्च किया है और इस बात की चर्चा जब हमनें आनंद प्रधान सर जो कि पत्रिका के सहायक संपादक भी है से की तो उन्होंने भी यही कहा कि- हम चाहते हैं कि संचार माध्यम मीडिया की रिसर्च मैगजीन बने। इसलिए लेखकों से अनुरोध भी करते हैं कि वे संदर्भ सहित अपनी बात रखें तो ज्यादा बेहतर होगा। लेख के जितने भी विषय हैं, वे मीडिया के बदलते चरित्र पर विस्तार से बात करते हैं। चाहे वो बच्चों की पत्रकाओं में सामाजिक टकराव का मामला हो या फिर समाचार चैनलों पर खबरों के अन्डरवर्ल्ड का मामला या फिर पूंजीवाद के आगे संपादको के मैनेजर बन जाने की घटना. सबों पर लोगों ने व्यवस्थित ढ़ंग से लिखा है।. .. और मजे की बात है कि इन सारे लेखों में आज की मीडिया की आलोचना वेलोग कर रहे हैं जो कि सीधे-सीधे मीडिया से जुड़े हैं। ऐसा होने से लेखों में अनुभव की परिपक्वता के साथ-साथ भविष्य में मीडिया को लेकर जताए जानेवाली आशंका भी विश्वसनीय लगती है और इससे भी बेहतर स्थिति है कि इसे बदलने की छटपटाहट भी मौजूद है.इन सारे अंकों को पाकर मैं इतना खुश था कि चलते-चलते मैंने आनंद सर से कहा- सर, मैंने तो आकर सारे अंक ले लिए लेकिन जिस तरह की सामग्री इसमें प्रकाशित की गयी है, मुझे लगता है कि यह डीयू के लोगों के बीच जरुर जानी चाहिए. मैं तो देखता हूं कि लोग मीडिया के नाम पर कुछ भी पढ़ ले रहे हैं, इस बात की चिंता किए बगैर कि इसमें कहां, क्या कितना सही है. इस पत्रिका का ज्यादा से ज्यादा प्रसार होना चाहिए। मेरा तो मन कर रहा है कि सबों की दस-दस प्रति खरीदकर डीयू के बुक स्टॉल में रख दूं. आनंद सर ने कहा- नहीं- नहीं मैं ही देखता हूं कुछ, नहीं होगा तो तुमको याद करुंगा।हिन्दी मीडिया पर एक अच्छी पत्रिका छपे और वो ठीक ढंग से लोगों के बीच न पहुंचे तो मीडिया से जुड़े किसी भी व्यक्ति को अफसोस तो होगा ही न....
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11 August 2008 at 03:57
accha laga parh kar..aatimiyta juri hui hai isme..lage rahiye!!
11 August 2008 at 19:12
विनीत भाई क्या यह पत्रिका डाक से मंगाई जा सकती है ?
11 August 2008 at 20:56
bilkul, aap ek saal ka 50 rs iimc ke naam se bhej de
sanchaar madhyam
bhartiya jansanchaar sansthan
aruna asaf ali marg
jnu new campus
new delhi- 110067
12 August 2008 at 05:25
शुक्रिया विनीत भाई इस जानकारी के लिए