कैम्पवाले भायजी के कहने पर मैं चांदनी चौक चला गया रेडियो खरीदने। पहले तो रेडियो की एक दूकीन के आगे पांच मिनट खड़ा हुआ और जीभरकर रेडियो देखे। दुकानदार ने पूछा भी कि आपको कौन-सी रेडियो और कितने दाम तक के चाहिए। मैंने कहा-अभी रुको भाई, पहले कुछ देर देख तो लेने दो तसल्ली से। एक साथ बहुत सारे रेडियो देखकर मन बहुत खुश हो रहा था। एक ख्याल भी आया कि दो-तीन एक ही साथ खरीद लेता हूं, पता नहीं कब लुप्त हो जाए। म्यूजियम में बाल-बच्चों को ले जाकर दिखाना पड़े, इससे बेहतर है कि घर में ही मिल जाए।


दुकानदार एक-एक करके दीखाता जा रहा था और बार-बार उसके दाम भी बताता। मैं चुपचाप देख रहा था। मैंने दुकानदार का ज्यादा समय नहीं लिया और सीधे कहा- ये दे दो। उसने फिर कहा- पहले तो ये एक हजार पिचानवे में आते थे, अब दाम गिरा है, आठ सो पांच दे दीजिए। मैंने आगे कहा-देख लो भइया, कोई गुंजाइश हो तो। उसने कहा- वाकई आप रेडियो के कद्रदान लगते हैं, कहां कोई आठ सौ लगाकर सिर्फ रेडियो खरीदता है, सब तो हजार-बारह सौ में सीडी प्लेयर लेने के चक्कर में होते हैं। अब आपसे मोल-तोल करने में ठीक भी नहीं लग रहा, चलिए आप सात सौ पचास दे दीजिए, आपको इसे बिजली से चलाने के लिए एडॉप्टर तो नहीं चाहिए। मैं उसे बिना बिजली के बैटरी से ही चलाना चाहता था, सो उसने झट से बीपीएल की तीन बैटरी डाल दी.


रेडियो में बड़ी लगनेवाली बैटरी मैं करीब सात-आठ साल के बाद देख रहा था। खरीदे हुए तो इससे भी ज्यादा समय हो गए होंगे। अपने पास जो भी चीजें है, उसमें डूरा सेल की पेंसिल बैटरी ही लगती है. मुझे याद है, तब एक बैटरी की कीमत पांच से छह रुपये रही होगी। लेकिन तीन बैटरी के दूकानदार ने ४५ रुपये लिए। अब बैटरी के उपर लोहे के पत्तर लगे होते हैं. छुटपन में जब था तो इसके उपर कागज लगे होते। जब बैटरी खत्म हो जाती तो कागज गल जाते। मां इस बैटरी को चूरकर सूप रंगा करती। एक तो इससे सूप की मजबूती बढ़ जाती और दूसरा कि बांस के रेशे जिसके चुभने का डर होता, वह भी खत्म हो जाता। कोयले के चूरे में डालती औऱ पानी के साथ मिलाकर गुल बनाती। मां का कहना था कि इससे चूल्हा ठीक से जलता है और ताव ज्यादा आते हैं। खैर,रेडियो लेकर सीधे राकेश सर के घर पहुंचा। चन्द्रा दीदी ने देखते ही कहा, मेरा भी बहुत दिन से मन हो रहा है कि एक रेडियो खरीदूं। मैंने उन्हें कई बार कहा-आप इसे रख लीजिए, मैं दूसरा खरीद लूंगा। मेरे बार-बार कहने पर भी राकेश सर ने ऐसा नहीं करने दिया। मैं चाहता था कि दीदी वो रेडियो रख ले, भले ही बदले में पैसे दे दे। इसलिए नहीं कि उनका मन हो रहा था, बल्कि भीतर कुछ ऐसा है कि लगता है, ज्यादा से ज्यादा लोग रेडियो खरीदें और सुनें।बार-बार लगता है कि रेडियो से देश का कुछ तो जरुर भला हो सकता है। यह एक संभाव्य माध्यम है।

हॉस्टल पहुंचते ही स्टडी टेबल पर रेडियो को रखा और लोहे के एरियल को पूरा खींच दिया, बहुत लम्बा एरियल। गांव के लोग सिग्नल अच्छी आने के साथ-साथ जान-बूझकर अकड़ में एरियल खींचे होते हैं। लेकिन आज रेडियो कोई ऐसी चीज नहीं है कि कोई अकड़ दिखाए। आज अगर कोई रेडियो को लेकर अकड़ता है तो या तो वो चंपक है या फिर एब्नार्मल। मैंने तीन दिनों तक पूरा एरियल खींचकर रेडियो बजाया। इस बीच कमरे में कई लोग आए और रेडियो के बारे में इतना पूछा जितना कि किसी के लैपटॉप या फिर मेरे टीवी खरीदने पर भी नहीं पूछा था। लैपटॉप, टीवी और आइपॉड खरीदना आज के लिए कॉमन है लेकिन रेडियो खरीदना आज के लिए कॉमन नहीं है। सालों बाद आकाशवाणी सुन रहा था, मीडियम बेब सुन रहा था.

करीब छ-साल का यह अंतराल ऐसा लग रहा था कि इस बीच बहुत कुछ बदला ही नहीं है। बीए पार्ट वन और उसके बाद सीधे पीएच।डी। इसके बीच का कुछ अता-पता ही नहीं। अतीत ऐसे भी पिघल जाते हैं, मुझे पता ही नहीं चला। एफ.एम की क्लीयरिटी के बीच मीडियम बेब की घरघराहट और दो स्टेशनों के बीच की हीहहीहीही... की आवाज से अब खुन्नस नहीं देशीपन का एहसास हो रहा है, बचपन में लौट आने का एहसास हो रहा है, एफ.एम की लोकप्रियता की वजह से अब लोग रेडियो को एफ.एम कहने लगे है, अब सचमुच रेडियो का एहसास होने लगा है. मोबाइल के आने के बाद तो रेडियो शब्द भी गायब होने लग गए। लोग सीधे एफ.एम वाला मोबाइल कहने लगे हैं। एक ही साथ लग रहा था कि कई चीजें लौट आयीं है.

अच्छा, मजे की बात देखिए कि मेरे रेडियो खरीदते ही हॉस्टल के कई लोगों मे रेडियो को लेकर एक बार फिर से जोश चढ़ा है। मुन्ना ने बूफर लगाकर रेडियो बजाना शुरु कर दिया है। दिवाकर जिस टू इन वन को कबाड़ा समझकर फेंक दिया था, अब हमसे पूछ रहा है कि इसका टेप काम कर रहा है, रेडियो नहीं, कहां बनेगा। मैंने तिमारपुर के उस मिस्त्री का पता बताया जो हीटर से लेकर मेरे सोनी और नोकिया का इयरफोन कई बार बना चुका है और वो भी बीस से तीस रुपये में। नीरजजी जल्द ही घर जानेवाले हैं और गोरखपुर में पड़े रेडियो को लेकर आएंगे। उनका रुमी भास्करजी ने सीडी के साथ-साथ आकाशवाणी का इन्द्रप्रस्थ चैनल भी सुनना शुरु कर दिया है।

ये देखा-देखी करने का काम बचपन में खूब हुआ करता था। मां इसे देखाहिस्की में जुंगार छूटना कहती। अचानक कोई व्यापारी या लूडो या स्टोर में पड़ा कैरमबोर्ड उठा लाता और एक-दो दिन खेलने लग जाता तो फिर से मरा हुआ ट्रेंड जिंदा हो जाता। आनन-फानन में बिलटुआ के दूकान के सारे पेंडिंग माल निकल जाते। रेडियो को लेकर काश ऐसा हो तो मजा आ जाए।


कोई बंदा दुनियाभर की चीजों से मजे करने के बजाय रेडियो सुनने लगता है तो मुझे लगता है उसकी जिंदगी में कुछ बेहतर होने वाला है और मुझे इसके लिए उकसाने में उतना सुख मिलता है जितना किसी को किसी का धर्मांतरण करने पर भी शायद ही मिलता हो।

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5 Response to 'और रेडियो में पिघल गए छ साल के अतीत'
  1. मुन्ना के पांडेय(कुणाल)
    http://test749348.blogspot.com/2008/08/blog-post_23.html?showComment=1219486380000#c2614251651124955107'> 23 August 2008 at 03:13

    B B C KA PATA KIJIYE KAHAN ,KIS BAND PAR AATA HAI? BADI ICHCHA HAI KI USHE BHI BOOFER PAR SUNNE KO CHAHTA HOON

     

  2. आनंद
    http://test749348.blogspot.com/2008/08/blog-post_23.html?showComment=1219487820000#c4983156649538187214'> 23 August 2008 at 03:37

    मज़ा आ गया। आपका लेख पढ़कर ही हमें दो स्टेशनों के बीच की हीहहीहीही... सुनाई देने लगी। सचमुच हमारे भी कई साल पि‍घल गए।

    और हाँ, उस तीमारपुर वाले मि‍स्‍त्री का पता मुझे भी बताएँ, कई चीज़ें ठीक करवानी है।

    - आनंद

     

  3. yunus
    http://test749348.blogspot.com/2008/08/blog-post_23.html?showComment=1219489500000#c8052192123737294082'> 23 August 2008 at 04:05

    विनीत भाई । रेडियो की इतनी विकल यादें सुनकर मन जुड़ा गया । एक ब्रॉडकास्‍टर होने से पहले हम रेडियो के इतने विकल श्रोता हुआ करते थे कि उन दिनों के बारे में अब खूब खूब लिखने का मन कर रहा है । फौरन आपको रेडियोनामा का निमंत्रण्‍ा भेज रहे हैं । आप रेडियोनामा को देखें पढ़ें । उससे जुड़ें और लिखें । मेरी इच्‍छा है कि इस सीरीज़ को अच्‍छी तरह विस्‍तार देकर रेडियोनामा पर लाया जाए ।
    छह साल पहले की आपकी रेडियो की यादें । यानी बचपन से लेकर रेडियो की अब तक की यादें सब कुछ पूरे विस्‍तार के साथ ।

     

  4. जितेन्द़ भगत
    http://test749348.blogspot.com/2008/08/blog-post_23.html?showComment=1219550520000#c2013827617691009966'> 23 August 2008 at 21:02

    पढ़कर अच्‍छा लगा।

     

  5. भुवनेश शर्मा
    http://test749348.blogspot.com/2008/08/blog-post_23.html?showComment=1219577520000#c3100155200378595548'> 24 August 2008 at 04:32

    हमारे पास भी एक पिछली साल खरीदा गया रेडियो है...जो केवल रेडियो है.

    हालांकि उसपे एफएम के अलावा कुछ सुना नहीं जाता...आपने फिर से तलब लगा दी...वैसे भी कल युनूसजी को अखबार में पढ़कर ख्‍याल आया कि क्‍यों न उनको रेडियो पर ही सुना जाए...पूछता हूं जनाब किस बैंड पर रहते हैं

     

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