करेजा में घुस-घुसकर ऐसे बोलेगा तो किसको नहीं सुहाएगा, कोई भी लड़की लट्टू हो जाएगी। बोलने वाला पगला है जो बोलता है कि- रंजनाजी आपके यहां पानी चला गया तो कोई बात नहीं, हम आकर भर देते हैं। उसको नहीं पता है कि इ जमाना में जहां से दू मीठा बोली मिल जाए, आदमी उसी का हो जाता है। रेडियो जॉकी पर मेरी मां की बेबाक टिप्पणी थी।
तब मेरे उपर एफ एम का भूत सवार था। दिनभर में बीस-बीस घंटे लगातार एफ एम सुना करता और कई बार तो २४ घंटे लगातार और उसकी रिकार्डिंग करता। इसी बीच करीब सौ रिकार्डेड टेप लेकर घर चला गया। उन दिनों मैं गाने छोड़कर विज्ञापन गाता और जब-तब रेडियो जॉकी की नकल किया करता।
जैसे ही मैं कहता-जब रिश्ते बन जाए वहम तो हाजिर है लवगुरु। मेरी मां कहती- इ तुम मउगा वाला भाषा-बोली कहां से सीख गए हो, एक रत्ती अच्छा नहीं लगता है। मउगा का मतलब होता है जो लड़की-औरतों के आसपास ही मंडराता रहता है। मां के हिसाब से उसकी पसंद बदल जाती है औऱ वो भी औरतों की तरह व्यवहार करने लग जाता है, उसकी भाषा-बोली बदल जाती है. इसी बीच मेरे बचपन का दोस्त श्रवण मिलता तो कहता-यार तुम्हारे बात-व्यवहार से लगता नहीं कि तुम दिल्ली में रिसर्च कर रहे हो, मुझे तो लगता है कि भडुआगिरी करने लग गए हो। मेरे इस तरह से रेडियो जॉकी की नकल करने पर लोग खुश होने की बजाए शक करने लगते कि पता नहीं दिल्ली में क्या कर रहा है।
फिर मैंने मां को रिकार्डेड मटेरियल सुनाया और बताया कि मां पहले जैसे रेडियो पर अलाउन्सर होते थे न अब रेडियो जॉकी होने लगे हैं और देखो कितना जीवंत होकर बोलते है। लवगुरु का पूरा टेप सुनाया। मां ने लोगों के सवाल और लवगुरु के जबाब सुने। मां एकदम से भक्क थी। कहने लगी- बाप से, लड़की-लड़का जब जौरे-साथे रहता है उसका खिस्सा भी रेडियो पर भेज देता है। मां प्रेम औऱ अफेयर के लिए जौरे-साथे शब्द का प्रयोग करती है। इस शब्द में लिव इन का भी अर्थ अपने-आप ध्वनित हो जाता है। फिर मैंने रेडियो सिटी के प्रताप की टेप सुनायी। वो किसी लड़की से पानी चले जाने पर राय दे रहे थे। अबकी बार मां का अंदाज बिल्कुल बदल गया था। मां ने बिल्कुल ही बेलाग ढंग से कहा- कोई भी आदमी किसी लड़की से ऐसे करेजा में घुसकर बात करेगा तो लड़की उस आदमी के पगलाएगी नहीं तो क्या करेगी।
चार दिन पहले फोन करके मैंने मां को बताया कि- मां रेडियो सुननेवाली एक लड़की सचमुच में एक जॉकी के पीछे पगला गई है और वो परेशान है। मां का सीधा जबाब था कि उसको बोलने के पहले नहीं सोचना चाहिए कि जवान-जुवान लड़की से एतना अपनापा से बात नहीं करे। इस उमर में लड़की को कौन आदमी खींच जाए कोई भरोसा है। उ तो रेडियोवाला के सोचना चाहिए न, लड़की का इसमें क्या कसूर है। उससे तो जो भी दू बोली मीठा से बोल दे, उससे जी जुड़ जाए। मैंने पूछा- तो तुम्हारे हिसाब से उस लड़की का कोई दोष नहीं है। मां ने कहा, नहीं. मैंने फिर कहा कि ये तो रेडियो है न, इसमें मीठा से नहीं बोले कोई तो फिर कौन सुनेगा, ये बात तो लड़की को समझना चाहिए न कि रेडियो की बात रेडियो तक रखे। रामायण शुरु होते ही अरुण गोविल को प्रणाम करनेलावी मां और जमशेदपुर आने पर कृष्ण बने नितीश भारद्वाज का पैर छूनेवाली मां ने सीधे-सीधे कहा कि- देखते-सुनते समय किसको होश रहता है कि इ टीवी के बात है कि रेडियो के, जी तो जुड़ा ही जाता है न।....लाख तर्क देने के बाद भी मां यह बात मानने को तैयार नहीं थी कि टीवी, रेडियो असल जिंदगी से कोई अलग चीज है।
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http://test749348.blogspot.com/2008/07/blog-post_04.html?showComment=1215157200000#c7614593083794678800'> 4 July 2008 at 00:40
kya karein pesha hee aisaa hai.
http://test749348.blogspot.com/2008/07/blog-post_04.html?showComment=1215227160000#c9135140578130377832'> 4 July 2008 at 20:06
हूं. हूं?
http://test749348.blogspot.com/2008/07/blog-post_04.html?showComment=1215326820000#c2412989077967292303'> 5 July 2008 at 23:47
LEKH PARH KAR MAA KI YAAD AA GAYEE!
SACHMUCH!(Deshi boli mein likha hai, isliye bhi achha laga).