वो खून से तर-बतर था। उस बंदे के मुंह से आवाज नहीं निकल रही थी। पुलिस थाने में जब कांस्टेबल ने उससे पूछा कि तुम क्या चाहते हो। हम तो जिसे तुमलोगों ने मारा है उसे बंद करने जा रहे है. बंदा सिसक रहा था, डरा और घबराया हुआ था. धीरे से बोला, हम कुछ नहीं चाहते हैं. सर हम समझौता करना चाहते हैं. आप मेरा इलाज करा दीजिए,बस. समझौते के लिए आए लोगों ने कहा कि- जब इलाज ही कराना चाहते हो तो यहां क्यों बैठे हो, समझौते कर अभी तेरा इलाज करा देते हैं।
यह घटना है दिल्ली विश्वविद्यालय के ग्वायर हाल हॉस्टल में कल रात हुई मारपीट और उसके बाद पास के थाने मौरिसनगर की.
हुआ यूं कि कॉमन रूम में कुछ लोग आइपीएल मैच देख रहे थे। कुछ लोग आगे की कुर्सी पर खुलेआम पी रहे थे और मैच देख रहे थे। पीछे बैठा एक बंदा ईश्वर भी था। ईश्वर पहले इस हॉस्टल का रेसीडेंट रह चुका है और फिलहाल गेस्ट स्टेटस पर यहां टिका हुआ है. पढ़ने में होशियार वो चाहता तो डीयू से आगे रिसर्च के लिए रुक सकता था लेकिन उसकी आर्थिक स्थिति बहुत खराब थी, इसलिए हरियाणा के एक स्कूल में नौकरी लग जाने के बाद वहां चला गया।..और अब दिल्ली में आकर पीएच.डी. में रजिस्ट्रेशन की कोशिशें कर रहा है। तब तो मैं हॉस्टल में नहीं रहा, जब ईश्वर यहां का रेसीडेंट था लेकिन लोग बता रहे थे कि आजतक उसकी किसी ने आवाज तक नहीं सुनी। खैर,
जिस बंदे ने उसके नाक फोड़ दिए, उसके नाक से भी खून निकले और वो भी अपने को विकटिम बता रहा था। उसने पुलिस के सामने बयान दिया कि ईश्वर टीटी की टेबल पर बैठा था और मैंने उसे बस इतना कहा कि- स्साला, तुम्हें पता है ये टेबुल मंहगी आती है, चल नीचे उतर कर बैठ जा. इतने में ही उसने मुझे पंच मार दिया और बाद में जो कुछ भी हुआ, आप सब जानते हैं।
ईश्वर ने उसके इस बयान को सुधारते हुए कहा कि नहीं- इसके कहने पर मैं उतरकर कुर्सी पर बैठ गया था लेकिन उसके बाद भी ये मुझे गालियां दिए जा रहा था। मां-बहन की गालियां और मैं सुनता जा रहा था और अंत में मुझे तेज गुस्सा और मैंने उसे एक हाथ दे मारा। बाद में इसने मिलकर बहुत मारा। ईश्वर दिल्ली में रहकर भी गाली सुनने का अभ्यस्त नहीं रहा है.ये बात उसकी सजा के लिए काफी है।
घटना के समय तो लोगों ने बीच-बचाव की कोशिश की लेकिन जब मामला नहीं बना तो बात पुलिस स्टेशन तक पहुंच गयी और जब पुलिस स्टेशन तक पहुंच गयी तो देखिए वहां का नजारा।
पहले दोनों को मेडिकल चेकअप के लिए हिन्दूराव हॉस्पीटल में ले जाया गया। वहां से पुलिस रिपोर्ट और उन दोनों को साथ में लेकर आयी। रिपोर्ट में इस बात की पुष्टि नहीं हुई कि जो बंदा दो घंटे पहले खुलेआम कॉमन रूम में बैठकर पी रहा था, उसने अल्कोहल ले रखी थी। ये अलग बात है कि बात करने के क्रम में उसके मुंह से अब भी शराब की गंध आ रही थी औऱ बैठी पुलिस को कोई भी अजूबा नहीं लग रहा था.
रिपोर्ट लेकर बैठी पुलिस दोनों बंदे,गवाह,हॉस्टल ऑथिरिटी और हमलोग उस पीछे वाले कमरे थे। इस बात के लिए माहौल बनाया जा रहा था कि समझौता हो जाए। ईश्वर डरकर समझौते के लिए पहले से ही तैयार बैठा था। लेकिन दूसरा बंदा सुकांत वत्स इस बात के लिए तैयार ही नहीं था। तब थाने के मक्खन सिंह ने आवाज लगायी- जा भाई,रस्सी ले आ। अरेस्ट पेपर तैयार किए जाने लगे। सुकांत की तरफ से समझौते के लिए आए लोग मक्खन सिंह को समझाने में लग गए। लेकिन मक्खन सिंह का चिल्लाना जारी था. इधर सुकांत इस बात की रट लगाए जा रहा था कि नहीं हमें बंद ही होना है।
थोड़ी देर बाद दो प्रभावी लोग कमरे में दाखिल होते हैं। लोगों ने बताया कि उनमें से एक पेशे से वकील है. आते ही मक्खन सिंह की ओर मुखातिब हुआ और कहा- क्या हो गया भाई, यही क्या दोस्ती-यारी में झगड़ा। मक्खन सिंह का गुस्सा अचानक से गायब हो गया, हां में हां मिलाते हुए कहा, हां जी बस,बस। वो बंदा मक्खन सिंह की कुर्सी के पीछे खड़ा हो गया और कई बार मक्खन सिंह के कंधे पर हाथ रखते हुए बात करने लगा. माहौल को हल्का करने की कोशिशें करने लगा,ताकि लगे कि कुछ हुआ ही नहीं है, बस दोस्ती-यारी का झगड़ा है. इसी क्रम में पास खड़े कांन्सटेबल को कहा- बाकी लोगों को कहिए बाहर जाए, बेकार में भीड़ लगाए से क्या फायदा. एक-दो लोग जो घटना के समय थे, रह जाएं। कांस्टेबल हरकत में आए और हमलोगों को थोड़ा पुश करते हुए, इतना ही पुश किया कि लगे कि हमलोग भेड़-बकरी हैं और कहा- निकलिए आपलोग यहां से। हमने कहा, आराम से बात कीजिए, आप ऐसे कैसे हमसे बात कर सकते हैं। उनका सीधा जबाब था- के कर लेगा। धीरे-धीरे हम सारे लोग कमरे से बाहर आ गए। कांस्टेबल का मन इतने में भी नहीं भरा था, वो हमें थाने से बाहर निकालकर ही दम मार पाए।
करीब बीस मिनट तक पुलिस के लोग हमलोगों को बातों में उलझाए रखा, अपनी शेखी बघारते रहे। औऱ ये भी बताते रहे कि ये दिल्ली है,भई, अगर यही मामला हरियाणा थाने में होता, तब पता चलता। हमें बाहर निकालनेवाली ये पुलिस हमसे इतनी औपचारिक हो गयी कि अपने दोस्तों-यारों की बात करने लग गयी।
बीस-पच्चीस मिनट के बाद पुलिस ने घोषणा कि- चलो भाई, चलो सब अपने-अपने ठिकाने, एक बज गए। जाओ जाकर सो जाओ, मामला निबट गया है।
वाकई में समझौता हो गया था। दोनों बाहर निकल रहे थे। और ईश्वर पुलिस के सामने मिली धमकी कि-आगे कुछ किया तो देख लिये, लिए भारी कदमों से बाहर निकल रहा था.
लौटेने पर देखा कि ह़ॉस्टल के बाहर वो बंदा जो कि अंदर बंद होने की इच्छा रख रहा था, प्रोवोस्ट से सीधे-सीधे शब्दों में कह रहा था- सर हमें न्याय नहीं मिला है, मैं आगे तक देख लूंगा।...
वाकई समझौते की यह रात थी जिसमें दिल्ली पुलिस को एक बार फिर सफलता मिली।
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6 Response to 'समझौते की रात, लाचार आखिर करे भी तो क्या'
  1. tarun
    http://test749348.blogspot.com/2008/05/blog-post_30.html?showComment=1212220140000#c8760057014186313918'> 31 May 2008 at 00:49

    ye haal agar ek university se sate thane ka hai to andaaza lagaya ja sakta hai aur jagaho k ilaako ka.

     

  2. दिनेशराय द्विवेदी Dineshrai Dwivedi
    http://test749348.blogspot.com/2008/05/blog-post_30.html?showComment=1212224640000#c524141116390735460'> 31 May 2008 at 02:04

    आज कल सभी राज्यों की पुलिस यही कर रही है। वह कम से कम मुकदमे दर्ज करना चाह रही है। ताकि रिकार्ड में अपराधों की संख्या कम रहे। समझौते ऐसे ही होते हैं कि लोग कुछ दिन बाद फिर लड़ पड़ते हैं।

     

  3. बालकिशन
    http://test749348.blogspot.com/2008/05/blog-post_30.html?showComment=1212254580000#c6700556148719254036'> 31 May 2008 at 10:23

    पुलिस का काम यही तो रह गया है आजकल.

     

  4. Udan Tashtari
    http://test749348.blogspot.com/2008/05/blog-post_30.html?showComment=1212255900000#c1467956417231076369'> 31 May 2008 at 10:45

    अफसोस होता है यह सब देख सुन कर.

     

  5. द्रष्टिकोन
    http://test749348.blogspot.com/2008/05/blog-post_30.html?showComment=1212289260000#c231865611412204616'> 31 May 2008 at 20:01

    अरे, आपका ये लाचार एक्स - स्टूडेंट दलित नहीं था वरना आप इसे भी सवर्ण दलित का झगड़ा बता कर दलित विमर्श कर पाते।

    नीचे मेरी भी रुटीन टिप्पणी
    बहुत बुरा हुआ। पुलिस निकम्मी हो गयी है। हर जगह यही हो रहा है। क्या होगा इस देश का?

     

  6. राकेश
    http://test749348.blogspot.com/2008/05/blog-post_30.html?showComment=1212389820000#c1515574554948231091'> 1 June 2008 at 23:57

    भाई दृष्टिकोणजी सलाम लें. टहल आया आपके ब्लॉग पर. आपके वहां और यहां लिखे में फ़र्क है. काहे भइया, दोमुहापन की कोई ख़ास वजह?

     

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