मोहल्ला से अविनाश भाई ने बिना बताए जबसे हमें निकाल-बाहर किया उसके बाद से मोहल्ला पर जाने का मेरा मन ही नहीं करता। शुरुआत में तो एक-दो दिन जाता रहा कि चलो यहां पढ़ने के लिए ठीक-ठाक मटेरियल मिल जाता है, निकाल दिया तो निकाल दिया। लेकिन सच कहूं उसके बाद बहुत ही परायापन-सा लगने लगा है। ऐसा लगता है कि मैं किसी दूसरे के घर में जाकर छूछूआ रहा हूं। जाना बंद कर दिया और मन को समझाया कि- रे मन तुझे नॉलेज चाहिए न, अखबार से ले, टीवी से ले, बेबसाइट घूम आ, लाइब्रेरी से किताबें लाकर पढ़, बाकी चीजों पर कम खर्च कर और कुछ जरुरी सीडी लाकर देख। बेकार में मोहल्ला पर जाने की क्या पड़ी है। ऐसा तो है नहीं कि तू बीए, एमए और मास कॉम सब मोहल्ला पर जाने से ही पास कर गया है।....लेकिन मन तो मन है, वो क्यों हमारी बात मानने लगे। अपने पुश्तैनी घर की याद किसे नहीं आती है। उस घर की जिसमें उसने चलना सीखा, लिखना सीखा, पहली बार झूठ बोलना सीखा, दुनियादारी सीखी। मैं भी तो जब चैनल की नौकरी छोड़कर घर बैठ गया, फेलोशिप के नाम पर सबकुछ छोड़कर फिर से स्टूडेंट लाइफ में आ गया। कहां घर में ये देखने की फुर्सत नहीं कि फ्रीज में क्या-क्या रखा है और कहां अचानक इतना समय मिल गया कि फ्रीज को रोज खाली करुं और रोज भरुं तो भी समय बच जाए। ऐसे समय में मुझे बोरिंग भी होने लगी थी। मैं ऐसी कोई जुगाड़ में था कि मेरा लिखना न छुटे, लोगों से सम्पर्क न छूटे और मैं लाइव बना रहूं।
बहुत पहले कथादेश के एक प्रोग्राम में बताया था कि कभी मोहल्ला देखिए। मैंने उस समय इन्टर्नशिप कर रहा था। नहीं देखा लेकिन इस दिन मुझे मोहल्ला याद आ गया। मैने गूगल पर मोहल्ला टाइप किया और मोहल्ला खुल गया। सारे जाने-पहचाने और बड़े नाम। मन खुश हो गया। मैंने सीबॉक्स में मैसेज छोड़ा- अविनाश भाई मैं विनीत, याद है हमलोग कथादेश के प्रोग्राम में मिले थे। अब मैं डीयू से पीएच।डी कर रहा हूं। अविनाश भाई ने उस समय मुझे शुभकाननाएं दी। दो दिन बाद मैंने जोड़-तोड़कर अपना एक ब्लॉग बनाया। इस बीच उनसे कई बार पूछा, ये कैसे होता है, इसको क्या करना होता है।
मुझे एक प्लेटफार्म मिल गया था जहां मैं अपनी बातें लिख सकता था, बिना बॉस की झिड़की के। बिना एडिटिंग के। मैंने अविनाश भाई को फिर मैसेज भेजा- मैंने अपना ब्लॉग बनाया है। उस समय उत्साहित तो था ही, जेआरएफ ने खूब बल दिया था और मीडिया की घिसायी ने एस्टेमना कि कितना भी कोई खटाए, उफ्फ नहीं करुंगा। मैंने लिखा, अविनाश भाई मैं हिन्दी की मठाधीशी को खत्म करना चाहता हूं। भाव कुछ ऐसे ही थे। शब्द कुछ इधर-उधर हो सकते हैं। उन्होंने नए ब्लॉगर के हिसाब से मुझे राय दी और जो कि सही थी कि- आप हिन्दी की कुछ क्षणिकाएं ही हमसे शेयर करें तो अच्छा होगा। मैंने भी समझा कि जोश में मैं कुछ ज्यादा लिख गया। सच्चाई तो ये है कि हिन्दी में जितने लोग मठाधीशी करते हैं उससे दस गुना ज्याद लोग भी तोड़ने के लिए आगे आ जाएं तो भी मठाधीशी खत्म नहीं होगी। क्योंकि मठाधीशी दोहरी प्रक्रिया है। एक तरफ से टूटती है तो दूसरी तरफ बनती चली जाती है। खैर,
अविनाश भाई को मेरा ब्लॉग पसंद आया और उन्होंने मोहल्ला पर इसका लिंक दे दिया। मैं भी लोगों को बताता फिरता कि मेरा भी ब्लॉग है और जब लोग पता पूछते तो मैं बताता कि गूगल प जाओ और टाइप करो, मोहल्ला। कोने में जाओगे तो लिखा होगा-दोस्तों का मोहल्ला। उसी में मेरा भी लिंक है। ऐसा करके मैं अपने ब्लॉग को और कितना मोहल्ला को लोगों के बीच फैमिलियर बना रहा था, पता नहीं लेकिन लोग बड़ी आसानी से मेरे ब्लॉग पर आने लगे।
इसी बीच अविनाश भाई ने मोहल्ला को कॉम्युनिटी ब्लॉग घोषित कर दिया। हालांकि मोहल्ला की संरचना पहले से भी इसी तरह से थी, पहले भी कई लोग इसमें लिखते आ रहे थे। लेकिन अबकि, उन्होंने कई नए लोगों के भी नाम जोड़ दिए और एक अलग लिंक बनाया-हम हमसफर। मुझे मेल किया- मैं आपका भी नाम जोड़ रहा हूं। मैंने देखा और यकीन मानिए उस दिन मुझे कुछ ऐसी ही खुशी हुई थी जब हम बेकार को चैनल ने कहा था-छ हजार रुपये मिलेंगे। मोहल्ला को मेरे विभाग के सभी प्रबुद्ध टीचर जब तब पढा करते हैं। मुझे खुशी इस बात कि थी कि इस पर जब वो मेरी पोस्ट देखेंगे तो उन्हें कितना अच्छा लगेगा कि चलो अपना स्टूडेंट भी अपडेट हैं। अविनाश भाई के प्रति मेरे मन में सम्मान का भाव जगने लगे। मैंने कुछ पोस्ट भी लिखे। मोहल्ला की जरुरत, शैली, पाठक और गरिमा के हिसाब से। लोगों ने पसंद भी किया। एक-दो ने फोन करके भी कहा-अरे तू तो मोहल्ला पर लिखने लगा है।
धडल्ले से लिखता औऱ अविनाश भाई उस कच्ची-पक्की पोस्ट पर कोई अच्छी सी तस्वीर लगा देते, वाक्यों को दुरुस्त कर देते, कस देते। यूनिवर्सिटी में ये काम मेरे सरजी किया करते और इधर अविनाश भाई। मुझे भरोसा होने लगा कि मैं जल्द ही बेहतर हिन्दी लिखने लगूंगा। आप सोचिए न, उन दिनों मैं इतना उत्साहित रहता कि एक दिन में दो-दो और कभी तो तीन पोस्ट लिख जाता। अलग-अलग मिजाज के, अलग-अलग ब्लॉग के लिए। जब भी अविनाश के आगे जीमेल पर हरी बत्ती छेड़ देता, कैसे हैं क्या कर रहे हैं और फिर अपनी बातें बताता। दुनिया जहान की बातें, हिन्दी के लोगों को कोसता, साथ के कुछ घटिया लोगों को गरियाता।......
( आगे पढिए, एक ब्लॉगर दो-दो ब्लॉग का निर्वाह नहीं कर सकता और रोचक बात कि भड़ासी बिना मोहल्ला भी सूना है। अविनाश भाई को भी याद आते हैं भड़ासी।)
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http://test749348.blogspot.com/2008/04/blog-post_03.html?showComment=1207168500000#c5868741049146251599'> 2 April 2008 at 13:35
भैये ये अविनाश ऐसा ही करता है सबके साथ! मैं भी भुगता-भुगताया बैठा हूँ लेकिन शुक्र है सही समय पर अक्ल आ गयी क्योंकि मोहल्ले जैसे बेकार विवादी मंच से बेहतर रेटिंग और हिट और पाठक मुझे अपने ब्लॉग से मिल जाते हैं और साथ ही साथ नाम भी!
अविनाश कभी लगता था कि यार ये लड़का अपना सा ही है जो अपनों के बीच से उठकर शहर में आ गया है लेकिन शहरी चकाचौंध ने उसे अंधा कर दिया है,बेकार के विवाद खड़े करना मोहल्ले में सबको इकट्ठा करना और जब किसी ने कोई सार्थक पोस्ट लिखनी चाही तो उस लेखक को ही निकाल बाहर फ़ेंकना उसका मुख्य शगल रहा है भाई!
अब अपना नाम कमाओ मोहल्ला मत बनाओ
http://test749348.blogspot.com/2008/04/blog-post_03.html?showComment=1207172460000#c2167186296706917995'> 2 April 2008 at 14:41
मुझे नहीं लगता कि आपको किसी सहारे की जरूरत है...कितना अच्छा तो लिखा है आपने....आप लिखते रहें...आपको बहुत सारे साधारण बलॉगर तो पढ़ ही रहे हैं...
http://test749348.blogspot.com/2008/04/blog-post_03.html?showComment=1207186560000#c8422327182212226625'> 2 April 2008 at 18:36
आप अच्छा लिखते हैं। गाहे-बगाहे क्या , नियमित लिखा करें।
http://test749348.blogspot.com/2008/04/blog-post_03.html?showComment=1207187580000#c3911164630062696559'> 2 April 2008 at 18:53
विनीत, मुझे नहीं लगता कि आपको किसी मोहल्ले की जरूरत है। और, ये रुदन जैसा अहसास दिलाकर अपनी अच्छी लेखनी को और गाहे बगाहे पढ़ने वालों को क्यों दुखी कर रहे हैं।
http://test749348.blogspot.com/2008/04/blog-post_03.html?showComment=1207192560000#c8437277233774137461'> 2 April 2008 at 20:16
अरे भाइ काहे मन छोटा करते हो ,आपका अपना ब्लोग है यही ब्लोगियाईये जी और ज्यादा दिल करे तो हमारे पर पधार जाईये जी, फ़ुरसतिया टाईम्स तो हमेशा आपके लिये खुला है जी..:)
http://test749348.blogspot.com/2008/04/blog-post_03.html?showComment=1207193220000#c2425801809376394126'> 2 April 2008 at 20:27
अनूप शुक्ल और हर्ष वर्द्धन की बात से सहमत हूँ ।
यह भी देखना -
http://khulkeybol.blogspot.com/2008/04/blog-post.html
http://test749348.blogspot.com/2008/04/blog-post_03.html?showComment=1207207980000#c2617006094673359517'> 3 April 2008 at 00:33
आप एक अच्छे लेखक है, मोहल्ला एक हल्ला मात्र है । मोहल्ले से इतर भी जाइये कई अच्छे वरिष्ठ युवा लेखक मौजूद है।
http://test749348.blogspot.com/2008/04/blog-post_03.html?showComment=1207225500000#c5487467083895017452'> 3 April 2008 at 05:25
बोधिसत्व जी और अनूप जी से सहमत हूं!
http://test749348.blogspot.com/2008/04/blog-post_03.html?showComment=1207226520000#c7151191724677644405'> 3 April 2008 at 05:42
vineet, aapne yah nahin bataya ki avinash ne aapko mohalla se baahar kyon nikala. koi vajah thi ya yun hi...aur agar vajah thi to kya thi? pata to chale ki itni atmiyata achanak khatm kyon ho gayi.
http://test749348.blogspot.com/2008/04/blog-post_03.html?showComment=1207228260000#c7307199767338606315'> 3 April 2008 at 06:11
vineet, doston ka mohalla men to aapke blog ka link mauzud hai.
http://test749348.blogspot.com/2008/04/blog-post_03.html?showComment=1207228320000#c7878306602548415165'> 3 April 2008 at 06:12
saathi arun mai aage ki post me saari baate likh raha hoo..
http://test749348.blogspot.com/2008/04/blog-post_03.html?showComment=1207228380000#c5681548651942506438'> 3 April 2008 at 06:13
ha hai to lekin, hum humsafar ka link nahi aur ha mere dashboard par mohalla nahi
http://test749348.blogspot.com/2008/04/blog-post_03.html?showComment=1207252500000#c1429923013915741043'> 3 April 2008 at 12:55
विनीत भाई, इसके पीछे कोई खास वजह है। जिस वजह से मैंने भड़ास के खिलाफ़ स्टैंड लिया - वो एक ज़रूरी वजह थी। भदेस और उन्मुक्त भाषा के लिए भड़ास की प्रशंसा कई बार करने के बाद एक ऐसे मुद्दे पर उसकी आलोचना करना, जो एक स्त्री को बीच बाज़ार में निशाना बनता है - उस पर ओर-छोर की जवाबदेही होनी ही चाहिए थी। आप बीमार थे। मुझे आपसे कोई गिला-शिकवा नहीं। जब दुरुस्त हुए, तब आपको अपनी बात मुखर रूप से कहनी चाहिए थी। आपने नहीं कहा। मेरे दोस्त और कभी सहकर्मी रहे सचिन लुधियानवी भी भड़ास और मोहल्ला के बीच बेवजह की तुलना कर रहे थे। मेरे अपने भाई प्रशांत प्रियदर्शी ने भी भड़ास से जुड़े रहना उचित समझा। मैंने इन सबसे खुद को अलग किया। मोहल्ले की मेंबरशिप रद्द कर दी। ग़लती से आप भी उनमें थे। दोनों जगह एक साथ नहीं रहा जा सकता। अब भी हमारा यही स्टैंड है। आप अच्छा लिखते हैं - और समझ सकता हूं कि अनूप शुक्ला और सुजाता और बोधिसत्व यहां आपके लिखे की प्रतिक्रिया में क्यों उग आये हैं।
http://test749348.blogspot.com/2008/04/blog-post_03.html?showComment=1207252560000#c2743552493972245105'> 3 April 2008 at 12:56
पहली पंक्ति में पढ़ें: कोई खास वजह नहीं है।
http://test749348.blogspot.com/2008/04/blog-post_03.html?showComment=1207254060000#c6366299582158532180'> 3 April 2008 at 13:21
अविनाश भाई, मैंने हर अच्छी और बुरी बातों को आपके साथ शेयर किया। विभाग के लोगों को खुलकर गरिआया है आपके सामने। आप अगर इसका इस्तेमाल करें तो मेरी दो मिनट में छुट्टी हो सकती है। मैं जानता हूं कि आपने मुझे लिखने के लिए बल दिया। आप बताइए जब मैं आपसे छोटी से छोटी बातें शेयर कर सकता हूं तो आप मुझे हटाने के पहले एक बार बात तो कर सकते थे न। लेकिन आपने खुद ही तय कर लिया कि मैं भड़ासी हूं। जनसत्ता वाले मामले के बाद तो मैंने तय कर लिया था कि अब कहीं भी नहीं लिखना है। आपने मुझे जस्टिफाई करने का मौका नहीं दिया। आपको मेरी लेखनी से समझना चाहिए था कि मैं कभी भी महिला विरोधी नहीं लिखता। भड़ास ने लिखा, इससे आपने हमें भी वैसा ही मान लिया।..मुझे बस इतना खल गया कि आप ये सारी बातें मुझे तब बतायी जब मैंने आपको याद किया।
आप खुलकर लिखने की बात कर रहे हैं। आपको पता है कि भड़ास और मोहल्ला के प्रकरण को समझने के लिए अच्छा खासा समय चाहिए था। एक तो मैं लम्बे समय तक बैठ नहीं सकता था और दूसरी बात आप मेरे हॉस्टल के कम्प्यूटर की स्थिति जानते हैं। कभी माउस गायब तो कभी स्पीड कम। आधे घंटे में ही लिखना होता है। सब कुछ जानते हुए भी अचानक आपने फतवा जारी कर दिया। आप मुझसे बडे हैं, अनुभवी हैं, चाहें तो डांट सकते हैं लेकिन स्वाभिमान को कुचलने का अधिकार कैसे दे दूं।
और जहां तक बात अनूप शुक्ला, बोधिसत्व या फिर सुजाता के उग आने की बात है तो इतना तो आपने मुझे समझा ही होगा कि मैं मठाधीशी के विरोध में रहा हूं। मैं नहीं चाहता कि हमें जोड़कर कोई अपनी संख्या बढ़ाए और अपना मठ बनाए। ऐसा तो होने नहीं दूंगा और न ही अपनी खुन्नस कोई मेरे जरिए निकाल सकता है। इतनी समझदारी तो आपलोगों ने मेरी बढ़ा दी है।
आपने मुझे ब्लॉग लिटरेट किया है इसके लिए कोई धन्यवाद नहीं दूंगा, इतना तो अब भी अधिकार है चाहे जिस नाते समझ लें। चाहें तो आप खुश भी हो सकते हैं कि आपका बताया लौंडा आपसे हिन्दी टाइप करके बहस कर रहा है।
http://test749348.blogspot.com/2008/04/blog-post_03.html?showComment=1207635600000#c3593241159620220080'> 7 April 2008 at 23:20
@ अविनाश उवाच -"आप अच्छा लिखते हैं - और समझ सकता हूं कि अनूप शुक्ला और सुजाता और बोधिसत्व यहां आपके लिखे की प्रतिक्रिया में क्यों उग आये हैं।"
मैं केवल इसी पोस्ट पर नही उगी हूँ ।मैं तो यूँ भी विनीत के ब्लॉग पर तब से उगती आ रही हूँ जब से उसने गाहे बगाहे शुरु किया है ।इसलिए आप भयभीत न हों।आपके खिलाफ कहीं कोई गुटबन्दी नही हो रही ।न ही विनीत इतना नासमझ है ।वहम का कोई इलाज नही होता । वहम दोस्तों को दुश्मन बना देता है ।
@विनीत उवाच-
और जहां तक बात अनूप शुक्ला, बोधिसत्व या फिर सुजाता के उग आने की बात है तो इतना तो आपने मुझे समझा ही होगा कि मैं मठाधीशी के विरोध में रहा हूं। मैं नहीं चाहता कि हमें जोड़कर कोई अपनी संख्या बढ़ाए और अपना मठ बनाए। ऐसा तो होने नहीं दूंगा और न ही अपनी खुन्नस कोई मेरे जरिए निकाल सकता है। इतनी समझदारी तो आपलोगों ने मेरी बढ़ा दी है।
तुम्हे सिर्फ संख्या बढाने के लिए शामिल नही किया चोखेर बाली में । जब भी लगे कि यहाँ तुम्हारा इस्तेमाल हो रहा है , चले जाना ।अविनाश की संतुष्टि भी तो ज़रूरी है न !