अगर आप वाकई देश की महिलाओं के लिए कुछ करना चाहते हैं तो मेरी मानिए, कुछ मत कीजिए, उऩको उनके हाल पर छोड़ दीजिए। सड़ने दीजिए कचरों के बीच में, बिलखने दीजिए रोटी के एक टुकड़े के लिए, बनने दीजिए उसे पुरुष की हवस का चारा और करने दीजिए थानेदार को गंदे-गंदे सवाल। आप बस चुपचाप देखते-सुनते रहिए। वैसे भी जितने धक्के और रगड़ खाएगी, उतनी ही मजबूत होगी, समाज के सच को बेहतर तरीके से समझ पाएगी लेकिन प्लीज आप वो सब मत कीजिए जो उनके नाम पर आज कर रहे हैं।
८ मार्च को महिला दिवस है, इसकी मुनादी मीडिया तीन-चार दिन पहले से ही कर रही है। आज तो कइयो ने चाबी बनाकर, भारत का नक्शा बनाकर बीच में कुमकुम लगाई हुई महिला की तस्वीर छापी है। तमाम अखबारों और चैनलों के ग्राफिक्स के बंदों ने रातभर खूब दिमाग लगाया है। देशभर के स्त्री विशेषज्ञों को जुटाया है। उन सफल महिलाओं की सूची बनाई है और अखबारों ने फोटो सहित छोटी-छोटी राय प्रकाशित की है।
इधर दिल्ली महिला आयोग ने तो बकायदा मेला लगाया है जिसमें स्त्री और लड़की के हाथों से बनी चीजों की प्रदर्शनी लगायी है। मेरी कुछ दोस्त ने अपनी बुटिक और शोरुम बंद रखे हैं और घर पर ही कुछ करने का मन बनाया है। फोन करके कहा कि शाम को कहीं मत जाना। जोधा-अकबर अभी नहीं देखे हो न। एक को तो सुबह-सुबह ही उसके पति ने पर्ल सेट दिया है इस मौके पर। मेरे कुछ दोस्तों ने बताया कि अगर मूड बन गया तो आज छुट्टी ले लेंगे और खाना भी बाहर खाएंगे या फिर खुद ही कुछ ट्राय करेंगे लेकिन पत्नी को आजभर के लिए बख्श देंगे, हाथ जलाने नहीं देगें।
मीडिया का महिला अभियान बहुत ही व्यवस्थित तरीके से शुरु होता है। कुछ दिन पहले वे ये खोजते हैं कि रिक्शा चलानेवाली पहली महिला कौन है और फिर पहाड़ पर चढ़नेवाली पहली महिला कौन है। और फिर इस तर्ज पर शुरु हो जाता है कि देश की पहली फलां...कौन... पहली फलां कौन.....। अखबार तो उससे सम्पर्क करके उनके संघर्ष की कहानी छाप देते हैं लेकिन चैनल के लिए काम थोड़ा बढ़ जाता है। वो उन तमाम महिलाओं से चैट की कोशिश करते हैं जिन-जिन के घर में चैनल की ओबी वैन पहुंच पाती है या फिर वो महिला खुद स्टूडियो तक आ जाए फिर दिनभर एक ही बात की रगड़ाई।
जो चैनल सीधे-सीधे इस ट्रेंड में कूदना नहीं चाहते और उन्हे लगता है कि महिला दिवस के नाम पर ये सारे तामझाम बेकार हैं वो शहर के कोलाहल से थोड़ी दूर चले जाते हैं और फिर शुरु होता हैं पैकेज। आज हम दुनिया भर में महिला दिवस मना रहे हैं और देश का एक ऐसा भी हिस्सा है जहां की महिलाएं इसका मतलब नहीं जानतीं। अब भी शौच के लिए घर से तीन किलोमीटर चलकर जाती है, इसके लिए उन्हें सुबह चार बजे ही उठना पड़ता है। जीडीपी ९ प्रतिशत हो जाने के बाबजूद बेहाल हैं, दो जून की रोटी तक मय्यसर नहीं।...ऑडिएंस की नजर में सबसे बेहतर दिखने और लगने के लिए जी-जान लगाते एंकर-रिपोर्टर।
विचारधारा के स्तर पर अगर बात होती है तो बहस की गुंजाइश भी बन सकती है कि इसे बनाओ, इसे मत मनाओ लेकिन अब तो इसमें बाजार भी शामिल है और सच कहें तो सबसे ज्यादा तरीके से सक्रिय है। वो बाजार जो विचारधारा और तर्कों पर नहीं खपत पर चलता है। इसलिए आपको जो मन में आए दिन और दिवस मनाइए इससे बाजार को कोई परेशानी नहीं है। जहां राधा-कृष्ण की जोड़ी बिक रही थी अब महिला दिवस के नाम पर लक्क्षीमाई की तस्वीर बिकती है तो क्या दिक्कत है, भंवरीदेवी का टैटो बिकती है तो वही बेचो।
सारे बड़े मॉल में कुछ न कुछ इवेंट होगें। एक-दो साल और होने दीजिए, अभी कायदे से मार्केट की नजर इस पर गई नहीं है। नहीं तो महिला दिवस के सात दिन पहले से सात दिन बाद तक कूकर- कड़ाही, नॉनस्टिक पैन, फ्रीज, वॉशिंग मशीन और घर की तमाम चीजों पर छूट मिलने लगेंगे। स्टेफी महिला मैराथन कराएगा, अयूर हर्वल गांव में गोरापन के लिए शिविर लगाएगा।.....वो सब कुछ होगा, कराया जाएगा जिससे देश की महिलाओं और महिला दिवस के नाम पर अच्छी-खासी खरीदारी की जा सके। अभी गिफ्ट और कार्ड की कम्पनियों का ढंग से कूदना बाकी है।
......इधर सरकारी कोशिशें भी तेज है। इस दिन बड़ी-बड़ी घोषनाएं करो, देश की बेटियों के पक्ष में, गर्भवती होने पर राहत की बात करो, उनसे कहो कि तुम चटाई बनाओ, बाजार हम देंगे। घर में मसाला पीसो, पैकिंग करके बेचने की व्यवस्था हम कर देंगे। दो-चार पुल महिला के नाम पर बना दो। वो सब कुछ करो जिससे लगे कि पितृसत्तात्मक समाज में महिला के लिए भी पूरा स्पेस है। ऐसा महौल तैयार करो कि महिलाएं सूचना अधिकार को लेकर सवाल न करे, विवाह संस्था पर उंगली न उठाए, कचहरी जाने की बात न करे, थानेदार के भद्दे-भद्दे कमेंट पर भी न लजाए और बनी रहे।.....८ मार्च को खूब मौजा-मौजा कर दो, सालभर असर रहेगा। वैसे भी भारतीय जनमानस उत्सवधर्मी माहौल का कायल रहा है। आप इसका वास्तविक संदर्भ न भी बताएंगे तो भी.........
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
http://test749348.blogspot.com/2008/03/blog-post_08.html?showComment=1204955760000#c6375841626108920779'> 7 March 2008 at 21:56
विनीत बाबू, सारा मामला बाजार पर कब्जा करने का है, चाहे वो मीडिया के माध्यम से किया जाए या फिर नए नए इवेंट के माध्यम से
http://test749348.blogspot.com/2008/03/blog-post_08.html?showComment=1204956180000#c5388849519610597686'> 7 March 2008 at 22:03
सही है....अखबार में महिला सशक्तिकरण के नाम पर प्रीति जिंटा का फोटो छपा है..क्योंकि पहले फिल्में अब आईपीएल के बाद उनकी मार्केट वैल्यू बहुत बढ़ गई है.
http://test749348.blogspot.com/2008/03/blog-post_08.html?showComment=1204960440000#c3232639866926647025'> 7 March 2008 at 23:14
सही लिखा है... बाजार पर छानें और मीडिया में भुनानें के सिवा कुछ नही होनें वाला।
http://test749348.blogspot.com/2008/03/blog-post_08.html?showComment=1204965600000#c2271237057701762932'> 8 March 2008 at 00:40
बाजारीकरण के चलते ज्यादा मुनाफ़ा कमाने के लिए भी इस्तेमाल किया तो महिला का, मेन'स डे क्युं नहीं मनाते ये बाजार वाले, उनकी नजर में सिर्फ़ महिला कमोडिटी है
http://test749348.blogspot.com/2008/03/blog-post_08.html?showComment=1204988460000#c533563230239506571'> 8 March 2008 at 07:01
महिलाओं को बढ़ावा देने के लिए डेडिकेट किया गया यह दिन अब सिर्फ एनजीओ और नेताओं की दुकान चलाने के लिए रह गया है।
http://test749348.blogspot.com/2008/03/blog-post_08.html?showComment=1205007540000#c952188552336478673'> 8 March 2008 at 12:19
हमारी सीएम
वसुंधरा राजे तो किस्मत से पैदा ही इस दिन हुईं अब सरकारी पैसे से एक रैली और सभा करके करवा दिया महिला सशक्तीकरण।