एक लड़की का सवाल है कि रामायण या फिर महाभारत में राम को, कृष्ण को या फिर दूसरे पुरुषों के बचपन को खूब दिखाया-बताया गया है। वो कैसे चलते हैं, कैसे झूठ बोलते हैं, कैसे रुठते हैं आदि-आदि। लेकिन उसी समय सीता भी है, द्रौपदी भी है, राधा भी है लेकिन उसका कोई बचपन नहीं, उसे सीधे-सीधे युवती के रुप में दिखा दिया गया, ऐसा क्यों। बड़ी से बड़ी और महान से महान रचनाओं में लडकियों का बचपन गायब क्यों है। वो लड़की के तौर पर हमारे साहित्य से नदारद है और एकाएक युवती के रुप में शामिल है, ऐसा क्यों।
जिस लड़की ने ये सवाल उठाया वो बार-बार विश्वविद्यालय में मध्यकाल यानि भक्तिकाल पर बोलने आए डॉ।रमेशचन्द्र मिश्र को इसे हिन्दी की खोट के रुप में बताना चाह रही थी। उसका साफ इशारा था कि आप जिस काल के साहित्य को महान रचना करार दे रहे हैं, दरअसल उसमें भारी गड़बड़ी है। मुझे भी लगा कि सारे रचनाकारों को लड़की की जरुरत युवती हो जाने पर ही होती है ताकि उसके नख-शिख वर्णन करने में काम आ सके। क्या जब तक लड़कियों की छातियों के उभार नहीं आते वो किसी कवि या रचनाकार के काम की नहीं होती। क्या लड़कियों को सिर्फ विरह रोग ही लगता है और वो भी जब वो बालिग हो जाती है। उसके पहले उसे कोई दूसरी बीमारी नहीं होती, उसे और कोई तकलीफ नहीं होती। जिस मसले को लड़की ने उठाया उससे जुड़े न जाने कितने सवाल उठते हैं और उठ सकते हैं लेकिन सवालों की गिनती के मुकाबले किसी के पास जबाब एकाध भी हो जाए तो बहुत है।
मेरे एम।ए के समय में नित्यानंद तिवारी सर हुआ करते थे और वो हमलोगों को पद्मावत पढ़ाया करते थे। स्त्रियों की दशा पर बात करते हुए अक्सर कहते-मध्यकाल में स्त्रियां सम्पत्ति के रुप में समझी जाती थी। सम्पत्ति, जिस पर कि कब्जा किया जा सके और उस समय ऐसा ही होता था। मेरी समझ बनी कि सम्पत्ति को लेकर मालिक बहुत कॉन्शस रहा करता है। लड़कियां जो कि बालिग नहीं होती वो तो सम्पत्ति भी नहीं होती, वो किसी के क्या काम आ सकती है। तो क्या दशा रही होगी इनकी। इस पर हिन्दी में कहीं कुछ नहीं है। हिन्दी में कमोवेश वही लड़कियां मतलब की रही है जिसे प्रेमी ने छोड़ दिया और विरह में डूबी है या फिर वो स्त्रियां जो हम पुरुषों को रिझाने की कला में निष्णात है। बाकी का कोई भी मतलब नहीं है। पूछने को ये भी पूछा जा सकता है कि साहित्य अगर मानवीय संवेदनाओं की भाषिक प्रस्तुति है तो क्या इन लड़कियों के प्रति किसी को संवेदना पैदा ही नहीं हुई और उससे पहले भी एक सवाल कि क्या लड़कियां भी संवेदना पैदा करने की वस्तु हो सकती है, इस पर हिन्दी के किसी रचनाकारों ने सोचा होगा।
लड़की का जोर रहा कि जब राम और कृष्ण को चलते हुए, माखन या मिट्टी मुंह में लगाए हुए दिखाया तो फिर सीता या फिर राधा को क्यों नहीं। लेकिन मेरा सवाल उससे थोड़ा आगे का है कि अगर राधा या सीता को भी ऐसा ही कुछ दिखा देते तो हिन्दी के रचनाकार कौन-सा एहसान कर देते। बल्कि अब तक( जितना मैंने हिन्दी साहित्य को पढ़ा है, वाकई बहुत कम पढ़ा है, उसी आधार पर) हिन्दी के रचनाकारों को एक भी बच्ची नहीं मिली जिसके बारे में लगे कि कुछ लिखा जाना चाहिए। इसे आप क्या मानते हैं। आप ये भी तर्क दे सकते हैं कि हिन्दी साहित्य में तो बहुत कुछ नहीं लिखा गया इसका मतलब क्या है कि जो कुछ भी लिखा गया है उसे इसके अभाव में साहित्य मानने से इन्कार कर दें।
मत इन्कार करिए, सबको साहित्य मानिए लेकिन आगे से बिना लड़कियों की दशा और नायिका के अलावे भी स्त्री के रुप होते हैं, को दरकिनार करके लिखा और बार-बार कालजयी और महान बताने की कोशिश की तो ऐसे ही कोई लड़की सवाल कर देगी और आपको हकलाना पड़ जाएगा। सुजाता के शब्दों में कहें तो समाज की चोखेरबाली से टकराना होगा....
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19 Response to 'बिना बचपन के यंग हो जाती है लड़की'
  1. राकेश
    http://test749348.blogspot.com/2008/02/blog-post_18.html?showComment=1203327240000#c9055056762644298846'> 18 February 2008 at 01:34

    जिस किसी ने भी उठाया हो, सवाल महत्त्वपूर्ण है. वैसे आजकल एक ब्लॉग शुरू हुआ है http://daughtersclub.blogspot.com
    मालूम नहीं उस पर लिखी सामग्री साहित्य की श्रेणी में शामिल हो पाएगी कि नहीं. दृष्टांत के तौर पर देखा जा सकता है. विषय अच्छा उठाया आपने बंधु. बधाई.

     

  2. आशीष
    http://test749348.blogspot.com/2008/02/blog-post_18.html?showComment=1203327960000#c2040792721720706604'> 18 February 2008 at 01:46

    आपने तो एक नई बहस को जन्‍म दे दिया भाई

     

  3. रचना
    http://test749348.blogspot.com/2008/02/blog-post_18.html?showComment=1203328140000#c5378279184164942616'> 18 February 2008 at 01:49

    kyaa aapke blog post jo ek uttam aur sadhii hui haen kaa taaital badalla nahin jaa sakta ? kuch cheezay haen jineh badlnaey mae abhi samay lag rahaa haen per kuch haen jineh hm suvidha sae badl sakte haen , jaise naari kii sharir sanrachna sae hat kar usii baat ko bhi vyakt kiya jaayae
    aasha haen is kament ko ek healthy trend kee shuruvat samjh kar laegae . naari sharir ko bhul kar bhi baat ho toh shayaad kam log padeh per jo padhegaye woh sach mae padhegae

     

  4. मनीषा पांडे
    http://test749348.blogspot.com/2008/02/blog-post_18.html?showComment=1203328260000#c8066756778423780749'> 18 February 2008 at 01:51

    हिंदी साहित्‍य के लिए कालजयी और महान जैसी विशेषणों-आभूषणों का इस्‍तेमाल मत करिए, क्‍योंकि ऐसा कुछ है ही नहीं। उसके बहुत सारे दूसरे कारण हैं, लेकिन जहां तक स्‍त्री के प्रति नजरिए का सवाल है, तो सिर्फ हिंदुस्‍तान ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया का इतिहास पितृसत्‍तात्‍मक रहा है, जहां स्‍त्री एक देह, पुरुष के आनंद और वंशवृद्धि की मशीन से ज्‍यादा कुछ नहीं रही। हिंदी ही नहीं, पूरी दुनिया के प्राचीन साहित्‍य में इसके उदाहरण मिल जाएंगे। केट मिलेट की किताब 'सेक्‍चुअल पॉलिटिक्‍स' इसी डिस्‍कोर्स पर बात करती है। यूरोप के लेखकों और साहित्‍य की भाषा और कंटेंट में जेंडर विभेद और पूर्वाग्रहों का सवाल। आप बर्गमैन, तारकोवस्‍की, बेर्तोलुच्‍ची और फेलिनी समेत सिनेमा के लीजेंड्स का काम भी उठाकर देखिए। एक बेहद गहरी, सरल, दैहिक उन्‍मुक्‍तता में भी देह सिर्फ स्‍त्री की ही होती है। पूंजीवादी बाजार में सजी औरत की देह जैसी वितृष्‍णा और अमानवीयता तो वहां नहीं है, लेकिन दिखाई गई देह सिर्फ स्‍त्री की ही है, पुरुष की नहीं। कितने तो सवाल हैं।

     

  5. काकेश
    http://test749348.blogspot.com/2008/02/blog-post_18.html?showComment=1203328500000#c4739777722028144379'> 18 February 2008 at 01:55

    आपने बात तो बहुत खरी और अच्छी उठाई है लेकिन शीर्षक सनसनी वाला है. इससे आपको अच्छे हिट मिल जायेंगे लेकिन एक स्त्री का तो अनादर ही होगा. मैं रचना जी सहमत हूँ. यदि हो सके तो शीर्षक बदल दें.आपके विचारों से सहमति है.

     

  6. मसिजीवी
    http://test749348.blogspot.com/2008/02/blog-post_18.html?showComment=1203330240000#c5477804689443955958'> 18 February 2008 at 02:24

    सही ही तो है विनीत, बेचारे मध्‍यकाल के लेखकों के पास तो ब्लॉग- स्‍लॉग भी नहीं था कि दिन भर में चाहे तो 50 पोस्ट ठेल दो। अब जब तुम ब्‍लॉग दौर में ही पोस्‍ट भर के लिए 'उभरी छातियों' के इस्तेमाल से नहीं बच पाए तो उन्हें क्‍या दोष देना..क्‍यों ?

     

  7. Sanjeet Tripathi
    http://test749348.blogspot.com/2008/02/blog-post_18.html?showComment=1203330300000#c3815645563481787901'> 18 February 2008 at 02:25

    बात पते की, सवाल सटीक!!
    पर शीर्षक मुझे भी पसंद नही आया!!

     

  8. प्रशांत तिवारी
    http://test749348.blogspot.com/2008/02/blog-post_18.html?showComment=1203332460000#c7869257114331349374'> 18 February 2008 at 03:01

    भाई आपके विचार से तो हम सहमत है .लेकिन शीर्षक आपको बदलना चाहिए .

     

  9. विनीत कुमार
    http://test749348.blogspot.com/2008/02/blog-post_18.html?showComment=1203337020000#c5702033496598898426'> 18 February 2008 at 04:17

    aap sabki tippani padkar yahi laga ki shirkshak badal deni chaahiyae, takleef hui ho to maaf karange.

     

  10. काकेश
    http://test749348.blogspot.com/2008/02/blog-post_18.html?showComment=1203337740000#c8758684619632997975'> 18 February 2008 at 04:29

    धन्यवाद.

     

  11. Amar
    http://test749348.blogspot.com/2008/02/blog-post_18.html?showComment=1203338280000#c290231218563069877'> 18 February 2008 at 04:38

    Sounds good,Motive Good..,but need to change the title,,,as per me.....

     

  12. रचना
    http://test749348.blogspot.com/2008/02/blog-post_18.html?showComment=1203342060000#c5685513264105501551'> 18 February 2008 at 05:41

    kanya ka safar aurat tak bina yuvtii banae kuch adhura saa lagtaa hae ??

    ek heading maeri soch kii aap kii post ko
    heading badle kae liyae dhynavaad
    tak emy word pl repost this post again so that more people can read a sensibly written arugument

     

  13. Mired Mirage
    http://test749348.blogspot.com/2008/02/blog-post_18.html?showComment=1203364260000#c3407972502268424974'> 18 February 2008 at 11:51

    बहुत विचारोत्तेजक पोस्ट ! देखिये पोस्ट का नाम बदला तो हम चले आए, नहीं तो देखकर चले जा गए थे पहले ।
    घुघूती बासूती

     

  14. anuradha srivastav
    http://test749348.blogspot.com/2008/02/blog-post_18.html?showComment=1203409320000#c4192029356974793292'> 19 February 2008 at 00:22

    मुद्दा सही उठाया है।

     

  15. मुन्ना के पांडेय(कुणाल)
    http://test749348.blogspot.com/2008/02/blog-post_18.html?showComment=1203412260000#c1601599435723428741'> 19 February 2008 at 01:11

    acchi baat uthai aapne magar jitni gambhir ye baat hai shirshak ushe chota kar raha hai .ish vishay ke layk shirshak de phir \ye bahas aapne shuru kar hi di hai..

     

  16. gautam yadav
    http://test749348.blogspot.com/2008/02/blog-post_18.html?showComment=1203686520000#c5334979165738071332'> 22 February 2008 at 05:22

    are sahab aapne to dimag me hal chla diya.
    is bat par to kabhi dhyan hi nahi diya tha.

     

  17. हर्षवर्धन
    http://test749348.blogspot.com/2008/02/blog-post_18.html?showComment=1203741960000#c5308515291245802990'> 22 February 2008 at 20:46

    इस मारके की बात पर तो कभी ध्यान ही नहीं गया। सही सवाल उठाया है।

     

  18. uma shankar choudhary
    http://test749348.blogspot.com/2008/02/blog-post_18.html?showComment=1203918960000#c4304372591912418363'> 24 February 2008 at 21:56

    vineet tumne baat pate ki kahi is par to bahut logon ne dhyan hi nahi diya hai.yah hamara fudal samaj hai jo ladkion ke bachpan ko glorify nahi kar paata hai.

     

  19. upasana
    http://test749348.blogspot.com/2008/02/blog-post_18.html?showComment=1222444320000#c6224578592183688577'> 26 September 2008 at 08:52

    betiyon ke blog me betiyon ke baare me bhut kuch jaanne ko milta hai.lekin adhiktar baaten chhoti betiyon ke kirya-kalapon ke baare me likha hota hai,lekin aaj me aap sabon se un badi betiyon ke baare me puchhna chahti hun ki aaj ke zamane me apne pairon par khare hone ke baad unki zimmewariyon ke baare me aapki kiya rai hai,kyonki aaj zamana badal raha hai aur log apne mata-pita ko bhul rahe hai.kirpaya is baat par apne vichar prakat karen.

     

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