चार दिनों तक MA फर्स्ट ईअर के बच्चो के बीच ड्यूटी बजाने के बाद कल मुझे फ़ाइनल ईअर के बच्चो के बीच भेजा गया । यहाँ का अनुभव वहाँ से बिल्कुल अलग और मौलिक रहा । फ़ाइनल ईअर मे होता क्या है कि चार पेपर सबो का एक ही होता है लेकिन बाक़ी के चार पेपर आपकी मर्जी पर है कि आप क्या लेते है। क्या लेते है माने कि आगे जाकर आप किस रुप मी हिन्दी कि सेवा करना चाहते है । अगर मीडिया एक्सपर्ट के तौर पर तो जनसंचार लें , और नाटक मे माहिर होना चाहते है तो रंगमंच लें । कविता को लेकर गंभीर है और आपको लगता है कि कविता से दुनिया को बदला जा सकता है और हिन्दी कि सेवा भी कि जा सकती है तो आप आधुनिक कविता लें। एक बात और, आपको इस बात का अहसास हो गया है कि हिन्दी से ज्यादा बेहतर अंग्रेजी मे लिखा गया है और उसे हिन्दी मी लाने कि जरुरत है तो आप अनुवाद भी ले सकते है। बाक़ी हिंदुस्तान के रास-रंग को जानने के लिये रीतिकाल है ही.
आप जो भी आप्शन लेते है उसके साथ सपनो का पैकेज फ्री मे मिल जाता है। पहले ही क्लास मे आपको बता दिया जायेगा कि फलां आप्शन लेकर आप कितनी ऊँचाई पर पहुंच सकते है और साथ ही आपको आइवरी टावर पर बैठे कुछ लोंगो का नाम बता दिया जायेगा । ये लोग ज्यादातर दिल्ली विश्वविद्यालय मे मिलेंगे । आपको बात ज्यादा हकीकत की लगेगी। और आप वही से जोड़ना-घटाना शुरू कर देते है । और आपके भीतर वेज़-वियाग्रा कि ताकत आ जाती है। लाइफ बनी मालुम होती है। आपका मन हो तो बिहार-उपी जहा से भी आप आते हू, ख़त लिख सकते है कि बाबूजी अब तो एक्सपर्ट बनके ही लौटेंगे ।
लेकिन खेला कहा होता है और आपका नरक कहा हो जाता है सो देखिये। जैसा कि कल कल रंगमच के और अनुवाद के बच्चो के साथ हुआ।
रंगमंच के बच्चो ने सबाल मिलते ही हंगामा करना शुरू कर दिया । एक लड़की ने साफ - साफ कहा कि मैडम ने कहा था कि जितना डी सकस हुआ है उतना ही आयेगा और जो सबाल आया है उसकी तो चर्चा ही नही हुई है। मामला मेरे से थमा नही और मैंने गुरुओं को बुला लाया। उनसे बात हुई तो पता चला कि संस्कृत नाटक सबाल आया है और बच्चे ने तैयार नही किया है। इंचार्ज ने हैरानी से सबाल को देखा, मानो जानना चाह रहे हों कि पूरा नाटक जान गये, एक्सपर्ट होने का दाबा भी बन गया और संस्कृत नाटक पर कोई बात नही। खैर आप्शन मी ग्रीक नाटक देकर मामले को सल्ताया गया। कोई नही, रोटी-दाल न मिले पिज्जा ही खा लो , संस्कृत न सही ग्रीक ही लिख दो।
इधर अनुवाद के बच्चो के साथ अलग परेशानी, उनका कहना था कि एक सबाल के अलाबे बाक़ी के सबाल कल के पेपर के है। और लगे फिर शोर करने। बुलाया गुरुजी को, और उन्होने कहा कि इसमे बदलाब नही होगा। कुछ बच्चों ने कहा भी कोई बदलाब चाहते भी नही है। घर से तैयार करके आये थे।
मुझे तो इनके एक्सपर्ट बनने की उम्मीद जाती रही। कि भाया बात-बात एडजस्ट करना पड़े तब तो हुआ, और अपने ही आप्शन के सबाल मे लासक गये तो बाक़ी का क्या होगा। एक्सपर्ट बनने के लिये कुछ एक्स्ट्रा भी पड़ना परता है भाई। नही तो करू हल्ला कि संस्कृत नाटक के बारे मे तुम्हे कुछ नही आता। या फिर एक्सपर्ट बनने के बाद देखोगे, क्योकि इस्क्का भी ट्रेंड है भाई.....
नोट; इंग्लिश से हिन्दी ट्रांस करके लिख रह हू, कई के स्पेल्ल्लिंग सही नही बन पा रहे है, आप सुधार कर देखे, प्लीज.....
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उम्दा