दो दिनों से विभाग की ड्यूटी बजा रहा हूं। एम ए इन्टरनल की परिक्षाएं चल रही है। यही हाल रहा तो मैं बहुत जल्द ही सरकार का दामाद वाला शब्द वापस ले लूंगा। लेकिन अभी इतनी जल्दी नहीं।
खैर, अब मैं किसी काम को बेकार नहीं मानता और झेल से झेल काम करने में भी बोर नहीं होता। इस उम्मीद से मन लगाकर करता हूं कि ब्लॉग का माल निकल ही आएगा। परीक्षक का काम इसी नीयत से ले लिया। सोचा, चलो साहित्य की जो नई फसलें तैयार हो रही है, उसे देखने-समझने का मौका मिलेगा।
नई फसल को समझने का एक ही तरीका था कि जो बच्चे लिख रहे हैं, उसे बीच-बीच में पढ़ा जाए। मौका तो बहुत कम मिला लेकिन कोशिश में लगा रहा। ज्यादा पढ़ने में लगा रहता तो बच्चे शोर मचाना शुरु कर देते और मास्टरजी बीच में आ जाते तो फिर हमें ही लताड़ते, जब कॉपी-सवाल बांटने पर कंन्ट्रोल नहीं कर सकते तो फिर पढ़ाओगे कैसे भइया और इंटरव्यू में जाउं तो कहने लगें कि पहले एक-दो साल कॉपी-सवाल बांटकर बच्चों को शांत रखना सीखो। लेकिन कहते हैं न-
जहां न पहुंचे,
कवि औ डॉलर
वहां पहुंचे ब्लॉगर।।
सो मैं भी कुछ-कुछ पढ़ने लगा। दोनों दिन मेरी ड्यूटी एम ए प्रीवियस के बच्चों के बीच रही। पहले दिन आदिकाल का पेपर था। विद्यापति, रासो वगैरह लिखना था। आधे से ज्यादा बच्चों ने तो घंटेभर से ज्यादा में विद्यापति की राधा के आंचल को ढलकाया। एक बच्ची ने तो सीधे लिखा कि-
राधा के झुकते ही आंचल ढलक गया और उसके पुष्ट उरोज पर कृष्ण की नजर पड़ गयी लेकिन राधा ने उसे तुरंत ढंक लिया। कृष्ण ठीक से देख नहीं पाए, ऐसा लगा जैसे अचानक बिजली कौंध गयी हो और इसी बात को लेकर वे बेचैन हैं।
एक बंदा थोड़ा समझदार था और थोड़ा साहित्यकार किस्म का। उसने इसी बात को लिखा-
राधा के झुकते ही आंचल ढलक गया और कृष्ण को उसका सौन्दर्य दिख गया। बिम्ब के लिए प्रभाव का बढिया प्रयोग।
एक बंदा बार-बार विद्यापति की तुलना बायरन से करना चाह रहा था और बार-बार बयारन लिख रहा था। मास्टर इंग्लिश राइटर का नाम देखकर इंप्रेस हों इसके लिए वो बयारन को अंडरलाइन कर रहा था।
इंटरडिसिप्लीन का सबसे बेहतर नमूना दिखा, कोने में बैठे एक बंदे की कॉपी पर। हर सवाल में कोई न कोई मैप या कोई ग्राफ बनाता। विद्यापति की रचना कहां-कहां लोकप्रिय हुई, इसके लिए भारत का नक्शा बनाया और गोला बना-बनाकर सबसे अधिक, अधिक और सबसे कम प्रभावित क्षेत्र को दिखाया।
ऐसा नक्शा मैं सिर्फ मौसम आजतक में देखा करता हूं।
दूसरे सवाल में कि विद्यापति किस-किस विचारधारा से प्रभावित हुए, बंदे ने सीएनबीसी की तरह एक ग्राफ बनाया और एक्स, बाई और बीच में जीरो लिखा। फिर ग्राफ के जरिए न केवल ये बताया कि किस-किस से प्रभावित हुए बल्कि चढ़ाव-उतार से मात्रा तक बता दिया। लो भाई करो चेक कॉपी। भूगोल तो जानते हो न, नहीं तो तुम्हारे बूते का काम नहीं है, मास्टर को खुल्ला चैलेंज।
कल भकितकाल के पेपर में एक बंदे ने कबीर की सामाजिकरता पर बात करते हुए लिखा-
कबीर ने हिन्दुओं को प्रताडित करते हुए लिखा कि-
पोती पढ़ि-पढ़ि जग मुआ पंडित कोई नहीं हुआ।
लग रहा था बंदा पढ़कर नहीं प्रवचन और कमल मार्का भाषण सुनकर आ गया है। अब ऐसे में कोई कबीर को हिन्दुओं का दुश्मन मान ले तो क्या बेजा है।
ज्यादातर बच्चे बार-बार रामचरित्र का प्रयोग करते नजर आए। कुछ तो बार-बार दिमाग को ठोकते
नजर आए। मानो आईआईटी का पेपर लिख रहे हों या फिर हमें इम्प्रेस करना चाह रहे हों कि देखो कितना मुश्किल पेपर लिख रहा हूं, होगा आपसे।
कुछ लोग बीच-बीच में यू नो, आइ मीन बोलते दिख गए।
मैंने जो मतलब निकाला वो ये कि-
ये बच्चे मानकर चलते हैं कि कुछ भी लिख दो, मास्टर छांटकर नंबर दे ही देगा। मास्टर को सिरफ हिन्दी ही आती है, इसलिए नक्शे और ग्राफ बना दो।
इंगलीस तो पढ़ा नहीं होगा इसलिए बयारन को भी बीच-बीच में झोंको।
और सबसे ज्यादा तो कि ये बंदा जो कॉपी बांट रहा है, छोटू है एमए पास होगा ही नहीं।
तो सरजी, मैडमजी ये है हिन्दी की नई फसल। इसमें कुछ बच्चे काबिल और होनहार हैं, उनपर मेरी कोई भी बातें लागू नहीं होती। उनके लिए ढेर सारी शुभकामनाएं।।।
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http://test749348.blogspot.com/2007/12/blog-post_13.html?showComment=1197514680000#c3009609401371635631'> 12 December 2007 at 18:58
नई खेप का अच्छा ऑब्जर्वेशन है और सचमुच लगता है कि विद्यार्थियों की यही मानसिकता है कि कॉपी जांचनेवाले को चमत्कृत कर दो, वह नंबर तो दे ही देगा। वैसे हिंदी के ज्यादातर प्राध्यापकों के बारे में उनकी राय मुझे भी ठीक लगती है। सालों पहले इलाहाबाद विश्वविद्यालय में हिंदी विभाग के अध्यापकों को देखकर मुझे लगा था कि अगर मूर्खता का Personification किया जाए तो उससे बननेवाले कई रूप इन अध्यापकों के होंगे।
http://test749348.blogspot.com/2007/12/blog-post_13.html?showComment=1197515760000#c3418633511546395182'> 12 December 2007 at 19:16
मजेदार वाकया । धन्यवाद भाई इसे हमें भी आपने बांटा ।
मॉं : एक कविता श्रद्वांजली
http://test749348.blogspot.com/2007/12/blog-post_13.html?showComment=1197521580000#c4236837347117635789'> 12 December 2007 at 20:53
मजेदार लिखा है !
http://test749348.blogspot.com/2007/12/blog-post_13.html?showComment=1197533580000#c8688975536613880753'> 13 December 2007 at 00:13
क्या ऑब्जर्वेशन किया है, गज़ब!!
पर भैय्या, आप इतने वरिष्ठ हो गए कि एम ए प्रीवियस के छात्र-छात्राएं आपके लिए बच्चे-बच्ची हो गए, सही है जी। तो मन से आप ने अपने को वरिष्ठ घोषित कर ही दिया।
http://test749348.blogspot.com/2007/12/blog-post_13.html?showComment=1197544620000#c6384412224870521435'> 13 December 2007 at 03:17
हिन्दी का मेरा ज्ञान बढ़ाने के लिए शुक्रिया.
http://test749348.blogspot.com/2007/12/blog-post_13.html?showComment=1197547380000#c4413247986851808534'> 13 December 2007 at 04:03
keen observation vineet bhai,but the effect is more widespread.
http://test749348.blogspot.com/2007/12/blog-post_13.html?showComment=1197558900000#c3542528720849910957'> 13 December 2007 at 07:15
रोचक...वैसे आज हिन्दी अध्यापक को हिन्दी से ज़्यादा अंग्रेज़ी आनी चाहिए.. नए रूप में दिखना चाहिए... कुछ अंग्रेज़ी साहित्य और संगीत का ज्ञान हो तो सोने पे सुहागा...फिर देखिए विद्यार्थी हिन्दी अध्यापक के पीछे पीछे हिन्दी पढ़ता दिखाई देगा.
http://test749348.blogspot.com/2007/12/blog-post_13.html?showComment=1197637800000#c4211209774657340765'> 14 December 2007 at 05:10
तबीयत खुश मास्टर जी ( ?), हंस के, मुस्कुरा के बहुत मज़ा आया - आपकी तिरछी नज़र के घुमाने से अच्छा किस्सा बना