हिन्दी समाज बड़ी तेजी से उत्तर-आधुनिक हो रहा है। दिल्ली में तो इसकी वजह समझ में आती है लेकिन कोई बंदा पुणे में बिना कोई प्लानिंग के उत्तर-आधुनिक हो जाए तो थोड़ी हैरत तो जरुर होगी भाई।
ये आठ के ठाठ है बंधु में मैंने बताया था कि दिल्ली में आए पांच साल हो गए और अभी तक मैंने स्वेटर नहीं खरीदे और ये भी कहा था कि मैं आपसे मांग नहीं रहा लेकिन परसों जो मेरे साथ कांड हुआ है अब मैं मना नहीं करुंगा। पिछली बार पोस्ट लिखने के बाद ही कईयों के मेल आए और फोन किया कि दिल्ली में ठंड़ बहुत अधिक पड़ती है बचके रहना। मेरी एक दोस्त ने राय दी कि स्वेटर खरीद लो भाई और मैं भी मन बना चुका था कि खरीद ही लूंगा लेकिन नसीब कुछ और ही बयान करती है।
परसों एक भाई साहब खोजते-खोजते आए और पूछा कि आप ही विनीत हैं, मैंने कहा- हां भाई क्या बात है। उन्होंने बताया कि मैं बाकुड़ा( पश्चिम बंगाल) से आया हूं। पता चला है कि आपके पास मेरे दोस्त की रजाई है, तीन साल पहले आपके पास छोड़ गया था, उसने कहा है कि आप मुझे दे दीजिए। आप फोन पर बात कर सकते हैं।
मैं फ्लैशबैक में चला गया। तीन साल पहले एक दोस्त ने रजाई खरीदी थी लेकिन दिल्ली में बीस दिन से ज्यादा नहीं टिक पाया था। जाते समय उसने कहा कि रख लीजिए कोई लेगा तो दे दीजिएगा। मैंने तब साफ कर दिया था कि भाई हमसे कोई भी लेगा तो बात दोस्ती-यारी की हो जाएगी, कोई पैसा नहीं देगा। फिर भी उसने रजाई छोड़ दी। इस बीच मैंने अपनी पुरानी रजाई मेस में काम करनेवाले साथियों को दे दी तब मैं मेस सेक्रेटरी था। सोचा ये भी याद करेंगे। और दोस्त की नई रजाई इस्तेमाल करने लगा। आज वही रजाई मुझे लौटानी थी।
मैंने कहा,यार तुम दूसरी रजाई ले लो, इस ठंड़ में मैं कहां मरुं और इसके नाप से रजाई के कवर भी सिलवा लिए हैं। बंदे का जबाब था रजाई तो देनी ही होगी सर, पुणे में ही मैंने इस रजाई के 250 रुपये दे दिए हैं। मैं समझ गया जमाना लद गया है, सचमुच कम से कम जीने के स्तर पर हिन्दी में कोई अब निराला पैदा नहीं होगा, हां पोस्ट-मॉर्डनिस्टों की तादाद भले ही बढ़ती रहे।
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http://test749348.blogspot.com/2007/12/blog-post_07.html?showComment=1197027120000#c9141894685063951796'> 7 December 2007 at 03:32
नई खरीदी या नहीं ? लगे हाथ स्वेटर भी खरीद लीजिएगा ।
घुघूती बासूती
http://test749348.blogspot.com/2007/12/blog-post_07.html?showComment=1197032700000#c3718651486106411891'> 7 December 2007 at 05:05
खरीदै लो भैय्या, दिल्ली की सरदी की चर्चा बहुतै है न!!
http://test749348.blogspot.com/2007/12/blog-post_07.html?showComment=1197041700000#c3019360560585278166'> 7 December 2007 at 07:35
यार अजीब घामड़ हो,
मैं तुम्हारी जगह होता तो वो रजाई कभी वापस ना देता, हाँ उलटे उसको अपने पास तीन साल तक सम्भाल कर रखने का किराया जरुर माँग लेता उससे.
15रु प्रति महीना के हिसाब से तीन साल के 540रु रखवा लेता तभी उसको रजाई वापस करता.
:)
http://test749348.blogspot.com/2007/12/blog-post_07.html?showComment=1197046200000#c8146558462007525720'> 7 December 2007 at 08:50
ब्लॉगर होने का लाभ लो... पुणे के ब्लॉगरों को कहो कि साहब की पोस्टमार्डनिटी में आवश्यक संशोधन प्रस्तावित कर आएं
पर मानने को जी नहीं चाहता कि तुम किसी कीमत पर राजी हो गए होंगे कि उसे 250 रुपए फोकट में पकड़ा दो। बस ये कहो कि फोकट में पोस्ट का आईडिया मिल गया।
http://test749348.blogspot.com/2007/12/blog-post_07.html?showComment=1197096060000#c1163912265423939420'> 7 December 2007 at 22:41
ये तो बहुत ग़लत हुआ आपके साथ. लेकिन जो हुआ उसपर मट्टी डालिए और घुघुती जी की बात मान लीजिये.
http://test749348.blogspot.com/2007/12/blog-post_07.html?showComment=1197117180000#c5729648792354051798'> 8 December 2007 at 04:33
क्या विनय जी स्वेटर का राह देखते-देखते रजाई भी गई। अरे अब दोनों एक साथ ही खरीद डालो। वरना िदल्ली की सर्दी किसी को नहीं बख्शती।
http://test749348.blogspot.com/2007/12/blog-post_07.html?showComment=1197118080000#c386508569208078503'> 8 December 2007 at 04:48
ye kissa suna tha raat Sarai ki party me. aur agle din se aapki tabiyat theek nahi. badan me hararat hai. lagta hai ek rajayi ka jaana bhari pad gaya...!