दिल्ली यूनिवर्सिटी के हेल्थ सेंटर के सामने भारी भीड़। देखकर अच्छा लगा कि चलो सरकारी विज्ञापन का असर हुआ है, लोग पोलियो का टीका और एचआईवी की जांच कराने आए हैं। लेकिन मन में दुविधा भी कि अचानक इतने लोग जागरुक कैसे हो गए। नजदीक जाकर देखा तो एक भी बच्चा टीका लेने की उम्र का नहीं था और न ही कोई युवा साथी और स्त्रियां जिसे देखकर लगे कि वे अपनी जांच कराने आए हैं। चारो तरफ से लोग घिरे हैं और बीच में कुछ हलचल जारी है। पता किया तो मालूम हुआ कि रात में माता जागरण है, अभी इसलिए रामकचौड़ी बांटा जा रहा है। दिल्ली आकर रामकचौड़ी का इतिहास जानने की इच्छा बराबर बनी रही है कि राम कचौडी राम ने वनवास जाने से पहले खाया था या फिर वनवास से लौटकर। इस कचौडी को कहीं माता सीता ने वनवास में ही तो नही बनाया था, रावण के आने के पहले। लेकिन यहां ये सवाल पूछना ठीक नहीं था,मार हो सकती थी, दंगा भड़कने का खतरा था। क्योंकि भीड़ में दो ही तरह के लोग शामिल थे, एक जिसे कि किसी पंडित ने बताया कि मजबूरों को रामकचौड़ी खिलाओ,पाप कटेगा और दूसरे वे लोग जिनका दोपहरे के खाने दस रुपये बच जाते और इस बीच अगर मैं कुछ करता तो दोनों भड़क जाते क्योंकि हिन्दुस्तान में भूख और पाप से मुक्ति सबसे बड़ा मुद्दा है। और जहां यहां अंगूठा डाला तो फिर खैर नहीं। ये भी डर था कि जहां मुद्दा छेड़ा कि कम्मीटेड रामभक्त कलेम न करने लगे कि यहीं थी सीता रसोई और यहीं पर बनी थी देश की पहली राम कचौडी, अब कौन लड़े इनसे जब सरकार पार पा ही नहीं रही हो तो फिर अपना कहां बस है। लेकिन मन में सवाल भी कि पूरी दिल्ली छोड़कर इसे सबसे सही जगह हमारी यूनिवर्सिटी ही लगी।
मैं जब रांची, झारखंड में था तो अपने कॉलेज के साथियों के साथ छठ पूजा के दिनों में बोरा और खाली डिब्बा लेकर रोड़ के दोनों ओर खड़े हो जाते, डैम में सूर्य को अर्घ्य देकर लौटते और हमारे बोरे और डिब्बों में प्रसाद के तौर पर ठेकुआ डालते जाते। पन्द्रह- बीस दिनों तक वही हमारा नाश्ता होता। मेरे साथ कई इसाई और आदिवासी साथी भी होते जो सालोंभर हिन्दुओं के कर्मकांड को खूब गरियाते, मूर्ति पूजा का विरोध करते और इस गरज से भी कि मैं चिढ़ जाउंगा लेकिन उनके साथ जब मैं भी गरियाने लगता तो आमीन..आमीन बोलकर चले जाते। प्रसाद जमा करने का ये तरीका चार साल तक चला। लड़कियां हमें बड़े प्यार से प्रसाद देती कि जेबेरियन होकर हमसे प्रसाद मांग रहे हैं।
लेकिन दिल्ली में तो नजारा ही कुछ और है, ऐसे पब्लिक प्लेस में खड़े होकर मांगना, कोई सोच भी कैसे सकता है। मेरा बार-बार मन हो रहा था कि लग जाउं लाइन में लेकिन हर दो मिनट पर पहचान का दिख जाता, अंत में सोचा देखे तो देख ले अपन तो आज खाएंगे ही रामकचौड़ी।
फिर डर लगा अपने मीडिया साथियों से कि आकर बाइट लेंगे, पूछेंगे कि कैसा लग रहा है रामकचौडी खाने में। अच्छा ये बताइए, आप रिसर्चर लोग सिर्फ यहीं खाते हैं या फिर पेशेवर लंगर, आई मीन कितने साल का अनुभव है। और तब फिर अपने दर्शकों से कहती .....तो आप देख रहे हैं कि डीयू में लगे इस लंगर में न केवल मजबूर लोग शामिल हैं बल्कि रिसर्चर भी खूब मजे ले रहे हैं। कई दुविधाएं लेकिन निबट लेंगे सबसे और इनकी तो मैं ब्लॉग लिखकर भड़ास निकाल लूंगा।... लग गया लाइन में । पीछे से आवाज आई क्यों भाई पैसा मिलना शुरु नहीं हुआ है , अरे डॉक्टर साहब गाइड का नाम डूबाइएगा क्या, यही बचा था करने के लिए पढ़-लिखकर चुतियापा। एक ने कहा, कल ही दू गो लक्स के गंजी लिए हैं, कटोरा फ्री दिया है, आके ले जाइएगा। अपने एक साथी ने कहा स्साला इंटल बन रहा है। देखा एक रिक्शेवाले की नजर मेरे उपर लगातार बनी है, सोच रहा होगा कि भागा हुआ सिरफिरा है, आंखों में चमक आती जा रही थी उसकी कि इत्तला करने पर सरकार जरुर इनाम देगी।....सब झेल गया
लेकिन अचानक अपनी मॉडल गीतांजलि की याद आ गयी और सोचा कि कल को लेक्चरर की इंटरव्यू के लिए गया और जहां मुझे देखते ही गुरुजी के विरोधी खेमेवाले मास्टर साहब ने चिल्ला दिया कि बहाली लेक्चरर की होनी है या पागल की, तब तो अपनी बत्ती लग गयी। धीरे से दोना लिया, टप्परवेयर की टिफिन निकाली, उसमें रामकचौड़ी डाली और स्पिक मैके की कैंटिन में हर्बल टी के साथ लेकर बैठ गया...मन में यही सोच रहा था कि थैंक गॉड, अपने झारखंडी साथी ने नहीं देखा नहीं तो उसे जाकर बताता कि विनीत तो भीख मांगकर अपना काम चलाता है, कर्जा में डूबा है, सारे पैसे चुकाने में चले जाते। यूजीसी नेट के लिए अभी दस दिन से ही तो आने लगी है अपने पास....
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http://test749348.blogspot.com/2007/10/blog-post_20.html?showComment=1192944180000#c4798715057211853377'> 20 October 2007 at 22:23
फिर से धांसू. गुरु बहुत अच्छा लिखते हो. हमको तो बता रहे थे कि रामलीला आयोजकों की मेहनत में हम मट्ठा घोल रहे हैं, आप का इ लिख के रामकचौडियों में गुड़ घोल रहे हैं! बहुत अच्छा.
http://test749348.blogspot.com/2007/10/blog-post_20.html?showComment=1192952520000#c7997674832739733483'> 21 October 2007 at 00:42
वाह मजेदार रही आपकी यह कचौड़ी कथा। :)
http://test749348.blogspot.com/2007/10/blog-post_20.html?showComment=1192977240000#c7569420538634872612'> 21 October 2007 at 07:34
राम कचौड़ी-बहुत सही. :)
अच्छा लगता है आपको पढ़ना.
http://test749348.blogspot.com/2007/10/blog-post_20.html?showComment=1192989540000#c7337309320919379901'> 21 October 2007 at 10:59
बंधु, आप तो एक किताब लिख डालो!!
मजा आ रहा है आपको पढ़ते रहने में