लेडिस देखकर दे ही देगा

Posted On 20:07 by विनीत कुमार |

मीडिया लाइन में लेडिस का चक्कर बहुत होता है। भाई लोग बताते हैं कि अगर इससे निपट लिए गुरु तो इस्टेवलिश होने में कौनो दिक्कत नहीं है। लंगोट के कच्चे आदमी के लिए तो ये फील्ड है ही नहीं, लेकिन हां मीडियागिरी छोड़कर कुछ और करने आएं हैं तब तो भइया सही लाइन पकड़े हो। जब तक इन्टर्न या ट्रेनी हैं हमउम्रवाली लेडिस के साथ भावुक रहिए कि जाने दे यार जैसा बॉस बोलते हैं वैसा कर, एक बार बॉस को तेरी तलब लग गई, मेरा मतलब है तुम्हारा काम अच्छा चल निकला तो फिर नचाना, थोड़ी बड़ी है तो मैम, मैम बोलकर आगे पीछे कर लो, कभी तो मतलब की बात हो जाएगी, और बहुत बड़ी है तुमसे और ओल्ड इज गोल्ड संप्रदाय से आते हो तब तो भइया मौज है, टिफिन भी खिलाती है। और अगर दो-तीन साल रह गए तो फिर बॉस हो गए। मीडिया में डेजिग्नेशन, सैलरी और पोजीशन खर-पतवार की तरह तेजी से बढ़ते हैं। उस समय लेडिस लोग को बताओ कि बाइट कैसे लेते हैं और स्क्रिप्ट कैसे लिखते हैं और फिर....। वैसे भी मीडिया हिन्दी विभाग तो है नहीं कि एक बार लेडिस का हाथ तुमसे छू जाए तो घर जाकर चश्मागोला साबुन से पांच बार हाथ धोए या फिर दो-चार बार हंस बोल दिए तो दीदी बोलने पर मजबूर कर दे। अपना तो अनुभव रहा है कि जब भी किसी हिन्दीवाली लेडिस को थोड़ा टाइम दिया हूं, दो-तीन दिन बाद ही बोलने लगती है कि कल डगमगपुर से लड़केवाले देखने आ रहे हैं। मतलब साफ होता है, बेरोजगार हो, जाकर बाबूजी से हाथ मांग नहीं सकते तो फिर इस तरह हमारे साथ कटा क्यों रहे हो। मीडिया में तो किसी न किसी लेबल पर आधे से ज्यादा लेडिस असंतुष्ट मिल जाएगी और वहीं भिड़ाओ अपना मामला। लेकिन इस बात का फंड़ा हमेशा क्लियर रखें कि कभी विपत स्थिति आ जाए और निकाल दिए जाएं तो कहां जाओगे। क्योंकि महीने दो महीने में ये बात सुनने में आ ही जाती है कि फलां को फलां चैनल से निकाल दिया गया,वजह वही लंगोट का कच्चापन।
ये लंगोट का कच्चापन वाला मामला बहुत सीरियस है, इस पर बात होनी चाहिए। एक बात का दावा करता हूं कि अगर आप नहीं हो ऐसे तो भी बॉस लोग एक्सपर्ट कर देंगे। उनको तो डर होगा कि जिस लेडिस को इसके साथ लगाए हैं कहीं लेडिस इसी से लसक न जाए इसलिए उसके सामने बार-बार कहेंगे कि बच्चा है, बहुत इनोसेंट है। भइया खुश मत होना, वो तुम्हारा पत्ता साफ करने में लगे हैं, सीधा कहकर तुम्हारे स्मार्टनेस पर कालिख पोत रहे हैं। लेकिन सीखने-समझने का मौका यहीं से मिलेगा।
जरा सीखिए कुछ हमारे अनुभव से।
2007 का बजट। हमारे बॉस ने भेजा एक बॉस के साथ फिक्की ऑडिटोरियम। रास्ते में मैंने पूछा, सर वहां जाकर हमें काम क्या करना होगा, वैसे भीतर से खुश भी था कि पहली बार बिजनेस और इकॉनामी से जुड़े बड़ी हस्तियों से मिलने का मौका मिलेगा।....वहां जाकर हमें करना बस इतना था कि लिस्ट के हिसाब से गेस्ट को लाकर अपने चैनल सेट पर बिठाना था।.....अभी दो-चार बार ही ऐसा किया था कि एक इंग्लिश चैनल की लेडिस बॉस के पास आई, सुंदर थी, थी क्या अभी भी टीवी पर दिखती है और सच बोले तो हिन्दी चैनल में काम करने वाले को इंग्लिश चैनल की कोई भी लडिस बेकार नहीं लगती और कुछ-कुछ बोली। मैं सिर्फ इतना समझ पाया कि मेरे जैसा कोई इन्टर्न उनके साथ नहीं है, उनके पास नहीं है सो वो परेशान है। बॉस ने कहा....यार जो गेस्ट अपने यहां से जाए उसे सीधा मैडम के पास ले आओ और सुनो मैडम के आसपास ही रहना। मैडम ने मुस्कराते हुए पूछा और तुम्हारा काम। बॉस ने कहा अरे, सब हो जाएगा, लेडिस हो साथ चला जाएगा।...
कथा संख्या- दो
अब मैं इन्टर्न नहीं रह गया था, किसी दूसरे चैनल में रिपोर्टिंग पर जाने लगा था। एक सुसाइड केस में उत्तमनगर जाना हुआ। जोश था कि जिस स्टोरी के लिए जाता, लगता अबकी ब्रेंकिंग तो मैं ही करूंगा। सो सबसे पहले पहुंच गया, खूब ध्यान से सब कुछ कवर किया। धीरे-धीरे बाकी चैनल आ गए। हकीकत जैसी खबर वैसी के साथ एक लेडिस थी, पहले तो लगा स्टोरी कवर करने आयी है लेकिन उसके हाव-भाव से लगा कि बॉस के साथ आयी है, इन्टर्न है, समझने आयी है कि कैसे स्टोरी कवर की जाती है, लेट हो गयी थी। जिस बात को वर्तमान काल की क्रिया लगाकर पूछ रही थी अब वो भूतकाल क्रिया में होना चाहिए था। बॉस ने कहा था कि सबगकुछ नोट कर लो। मुझे काम करते हुए देखा तो लगा कि फास्ट है और इनोसेंट भी। इनोसेंट का मतलब तो आप समझ ही रहे होंगे। सो मेरे पास उस लेडिस को भेज दिया कि जाओ सबकुछ नोट कर लो। उसका बॉस जानता था कि लेडिस है ,दे ही देगा.......
अब लेडिस से कटाने की लत ऐसी पड़ी है कि वापस रिसर्च में आकर कोई जी लगाकर बोलती है तो लगता है बुढ़ा गया हूं।
edit post
4 Response to 'लेडिस देखकर दे ही देगा'
  1. Sanjeet Tripathi
    http://test749348.blogspot.com/2007/10/blog-post_17.html?showComment=1192692000000#c6335924350166770402'> 18 October 2007 at 00:20

    सही चल रहे हो गुरु!!!

    "जी" सुन कर अपना भी जी कैसा कैसा होने लगता है बंधु!!

     

  2. neelima sukhija arora
    http://test749348.blogspot.com/2007/10/blog-post_17.html?showComment=1192695960000#c364365367545919842'> 18 October 2007 at 01:26

    क्या विनीत जी,
    आप तो हाथ क्या पैर मुंह सब कुछ धोकर लेडिस लोग के पीछे पड़ गए। अरे भाई आप जिस मीडिया के दर्शन करके सरकारी दामाद बन कर लौटे हैं, वो मीडिया मीडियोकर लोगों के लिए हैं। हम आप जैसे लोगों के लिए बिलकुल नहीं जो कि हर हाल में खुश रहने वाले हैं।

    मैं लगातार आपके बलॉग को पढ़ रही हैं अरे लेडिस लोग से कौनो गलती हुई गवा है क्या, काहे उनको मीडिया से बाहर कराने के पीछे पड़े हैं। जानते हैं ना मीडिया में इ सब जेन्टलमेन ही हैं जिन्होंने लड़कियों को यह बतायाहै कि हमारे साथ रहोगी तो ऐश करोगी। कम मेहनत मं बहुत आगे तक जाओगी। तब हमारे जैसे लोगों को कहां भेजिएगा जो इन बातों पर अपनी नौकरी को लात मार आते हैं। फिर भी मीडिया में जमें हैं , बस इतना ही तो है कि थोड़ा पैसा कम मिलता है, काम भी करना पड़ता है, तो भैया इसीलिए तो मीडिया में आए हैं ना। मीडिया से इतनी खुश्की अच्छी नहीं , सब जगह सब लोग एक से नहीं होते।

     

  3. अरविन्द चतुर्वेदी Arvind Chaturvedi
    http://test749348.blogspot.com/2007/10/blog-post_17.html?showComment=1192714860000#c4255798851487373964'> 18 October 2007 at 06:41

    इतना ही कहूंगा कि भैया ज्यादा चिढो मत लेडीस के नाम पे.
    पंचों उंगलियां बराबर नही ना होती .

     

  4. राकेश
    http://test749348.blogspot.com/2007/10/blog-post_17.html?showComment=1192772220000#c9071082689155979596'> 18 October 2007 at 22:37

    काहे एतना धांसू लिख देते हो! अच्छा एक बात बताएं विनीतजी इ लेडीस का परिभाषा का हुआ? नंबर दू, इहो बताएं मीडिया के अलावा और किस-किस फ़ील्ड में ये पाएं जाते हैं.
    हमको भी थोड़ा-थोड़ा लगता है कि आपकी बात में दम है. काहे कि ऐसन एक-दू आउर लोग से सुने में आया है ऑफ़ द रिकॉर्ड बातचीत में.

    बहुत अच्छा चल रहा है.

     

Post a Comment