उधर से एक लेडिस का फोन आया- हैलो...मैं न्यूज चैनल से बोल रही हूं। आप विनीत हैं न, ये नंबर मुझे आपके एक दोस्त से मिला । दरअसल हमलोग एक टॉक शो करवाने जा रहे हैं....आप ऑडिएंस के तौर पर आ सकते हैं। मैं भी मुलायम होते हुए पूछा, कब आना है। लेडिस को लगा मामला बन गया है, मेरे सवाल का जबाब दिए बगैर दूसरी बात छेड़ दी। आप हॉस्टल में रहते हैं तो मैंने अपने बॉस को बता दिया है कि आप कम से कम दस और लोगों को लाएंगे। मैं भी थोड़ा खेलने का मन बना लिया जो कि मैं मीडिया के मामले में कभी नहीं करता...कुछ भी है तो अपना ही मोहल्ला, क्या पता फिर से लौटने की मजबूरी बन आए।...लेकिन मैंने पूछा, मैडम आने पर क्या-क्या मिलेगा। बोली डिनर पैकेट मिलेगा और आने- जाने के लिए अगर आप दस के साथ आएंगे तो तवेरा गाड़ी। मेरे मन में अपने रिसर्चर दोस्तों के लिए गाली याद आयी कि ले बेटा, देख अपनी औकात। कहते हो अपन क्रीमीलेयर से वीलांग करते हैं और ये मैडम अपनी औकात बंगाली मार्केट के सडियल डिनर पैकेट से ज्यादा नहीं लगा रही है। और तवेरा से लाने ले जाने की बात कर रही है। और लड़ो बस पास के लिए और जाओ 621 में लटककर आरकेपुरम। मैंने पहले ही कहा था कि सालों सरकार अपन को रिसर्च करने के लिए ठीकठाक पैसे दे रही है, मैडम से भी ज्यादा, उतने पैसे के लिए मैडम को पता नहीं कितने लेबल के बॉसों से मीटिंग करनी पड़ जाए, हुलिया सुधार लो लेकिन, तुमलोग नहीं माने। अब भुगतो, अपनी औकात बस इतनी है कि चैनल की पीली नंबर प्लेटवाली गाडी में जाएं, उनके स्टूडियो की शोभा बढाएं, हमारे जाने से स्टूडियो भरा-भरा लगे, एकाध सवाल करें जिसे लेकर एंकर खेल जाए और दमभर फ्लैश चलाए कि देश के रिसर्चर ऐसा सोचते हैं, ये है डीयू, जेएनयू के लोगों की राय। इतना होने पर मैं तुरंत फ्लैशबैक में चला गया। अपने इन्टर्नशिप के दौरान जब भी भीड़ की जरुरत होती थी अपने दोस्तों को बुला लेता, तब मेरे दोस्त इस वीहाफ पर आ जाते कि विनीत अगर ज्यादा से ज्यादा भीड़ जुटाएगा तो हो सकता है, चैनल वाले उसे वहीं रख लें, अक्सर आ जाया करते थे बुलाने पर। लेकिन बाद में मैंने महसूस किया कि चैनल के भीतर मेरी पहचान एक ऐसे इन्टर्न के रुप मे हो रही है जो कि भीड़ जुटाने का काम करता है और वो भी ऐसी-वैसी भीड़ नहीं, सब अपने सबजेक्ट के टॉपर और परसुइंग पीएचडी। मेरे और किसी काम की चर्चा नहीं होती। इधर दोस्त भी मुझसे कटने लगे, शुरु-शुरु में तो उन्हें वो सब अच्छा लगता लेकिन उन्हें खुन्नस दो बातों पर आयी थी। एक तो सवाल वे जो पूछना चाहते थे, उसकी बजाए पर्ची पर पहले से लिखा सवाल उन्हें पकड़ा दिया गया था, उन्हें धक्का लगा कि सवाल पूछने के लिए ही तो हम रिसर्चर पैदा किए गए हैं, सवाल चाहे गाइड से हो, प्रशासन से या फिर सरकार से और यहां हमारे इस अधिकार को ही हमसे छीन लिया जा रहा है।..औऱ दूसरी बात कि ले गए थे बोलकर नेशनल चैनल के लिए लेकिन जब मौका आया तो नेशनल पर एयर होस्टेस का कोर्स कर रही लेडिसों को बिठा दिया और अपन दोस्तों को एनसीआर के लिए रोक लिया। यहां भी स्टेटस को लेकर तमाचा। खैर, छ: बजे का पैक किया डिनर खराब हो चुका था और मेरे सारे साथी बहुत ही भूखे थे। मुझे बहुत ही तकलीफ हुई और सबको माल रोड में लाकर पराठे खिलाए।......
ये सब होने पर मुझे लालूजी का प्रसंग याद आ गया। रेल बजट के लिए सारे चैनल अपना सेट लगाए थे और रेल बजट या फिर लालू की रेल लाइव के लिए भीड़ जुटायी गयी थी। खाने की भी व्यवस्था थी, ऑडिएंस के लिए। लालू सभी चैनलों को बारी-बारी से टाइम दे रहे थे।...अब बारी देश के सबसे तेज चैनल पर आने की थी। लालूजी आकर बैठे और बैठे हुए बंदों की तरफ इशारा करते हुए पूछा...
इ ठंड़ा में बच्चा लोग को काहे बैठाए हुए हो...जाओ सब अपन-अपन घर। तुमलोग को इ चैनलवाला पैसा दिया है का।...फिर पूछा -कुछ खाने-पीने का मिला की नहीं। तभी उनकी नजर एक ऐसे बंदे पर पड़ी जो इससे पहले जिस चैनल पर लालू बोल रहे थे वहां भी बैठा था। लालू एकदम से बोले- तू तो हूंआ भी बैठे थे। मैंने अंदाजा लगाया कि खाना वहां का अच्छा था इसलिए वहां बैठ गया था और दोस्ती निभानी यहां थी सो यहां भी बैठ गया। यानि मीडिया के साथ-साथ दर्शक भी अपना चरित्र बदल रहा है। लालू ने कैम्पस के सबसे टॉप कॉलेजों की औकात बता दी थी और इधर मैडम ने हमारी जो मेरे कहने पर कि खाना-वाना तो बाद की बात है मैडम फिर भी लगातार बोले जा रही थी कि-- टीवी पर फोटो भी तो आएगा सर।.....
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http://test749348.blogspot.com/2007/10/blog-post_15.html?showComment=1192515780000#c3084261389864464916'> 15 October 2007 at 23:23
ACHHA LAGAA AAPAKE BLOG KO PADHANA.
APANE BLOG PAR AAPAKEE TIPPANEE PADHI. MAI IS MAIDAAN ME JARA NAYAA HU. ISLIY THORI KAMEE HAI. JISE JALD HEE DUR KARANE KAA PRAYAAS KARUGA.
VAISE THORI-BAHUT KAMEE TO YAHAA HAR KISEE ME HAI.
http://test749348.blogspot.com/2007/10/blog-post_15.html?showComment=1192517700000#c7406789050895869915'> 15 October 2007 at 23:55
भइया विनीत,
आदत डलवा दिए हो आपकी हर पोस्ट पढ़ने की...
बहुत मस्त...ज़बर्दस्त
http://test749348.blogspot.com/2007/10/blog-post_15.html?showComment=1192519440000#c7805853157523340745'> 16 October 2007 at 00:24
बहुत बढ़िया बंधु!!
यह अच्छी बात है कि जितना देखते हो उससे ज्यादा समझते हो और उससे भी ज्यादा लिखते हो और वह भी बेबाक।
जारी रखों बिना किसी बदलाव के!!
परमानेंट ग्राहक बना लिए हो हमे तो अपनी इस ब्लॉगरुपी दुकान के!!
शुभकामनाएं
http://test749348.blogspot.com/2007/10/blog-post_15.html?showComment=1192520820000#c4057882303759379861'> 16 October 2007 at 00:47
विनीत जी
सत्य को तथ्य कि तरह प्रस्तुत करने कि कला स्वयं में विलक्षण है
माँ शारदे ने आपको ये उपहार दिया है
इसको संभाल कर रखें
बहुत-बहुत बधाई
-चिराग जैन
http://test749348.blogspot.com/2007/10/blog-post_15.html?showComment=1192522020000#c3260218384134481807'> 16 October 2007 at 01:07
हकीकत जैसी,खबर वैसी……।लगे रहो…………शायद कोई जाग जाये!!!!!!!!!!!!!!!
http://test749348.blogspot.com/2007/10/blog-post_15.html?showComment=1192524000000#c5930776464690245306'> 16 October 2007 at 01:40
हमेशा की तरह धांसू. मज़ा आया.
लगे रहे भाई!
http://test749348.blogspot.com/2007/10/blog-post_15.html?showComment=1192535820000#c7666667729898161851'> 16 October 2007 at 04:57
बहुत बेहतरीन-बात तो सही है टीवी पर फोटो भी तो आयेगा-काफी है. :)
http://test749348.blogspot.com/2007/10/blog-post_15.html?showComment=1192539780000#c5730400535800770799'> 16 October 2007 at 06:03
बधाई
बहुत अच्छा
http://test749348.blogspot.com/2007/10/blog-post_15.html?showComment=1192560900000#c8635475649232711748'> 16 October 2007 at 11:55
हर जगह का एक ही उसूल है.पैसा फेक,तमाशा देख. आप नही गये तो मत जाओ, चैनल वालों के लिये आडिएंस तो फिर भी मिलेगी. हो सकता है डिनर के साथ कुछ और नकद देना पडेगा.
मांग और आपूर्ति का नियम लागू है. जहां खरीदने वाले है वही बिकने वाले भी.
http://test749348.blogspot.com/2007/10/blog-post_15.html?showComment=1192647480000#c9068719414435457957'> 17 October 2007 at 11:58
वाह खूब खबर लिए हो भइया सब की। मजा आ गया पढ़ने में, आपकी भाषा में एक रस है, एक फ्लो है।
http://test749348.blogspot.com/2007/10/blog-post_15.html?showComment=1192672920000#c3212822116917697825'> 17 October 2007 at 19:02
सुंदर,धांसू!
http://test749348.blogspot.com/2007/10/blog-post_15.html?showComment=1193230020000#c7347155811004569616'> 24 October 2007 at 05:47
ज़बर्दस्त