पहले हिन्दू तब पत्रकार

Posted On 12:50 by विनीत कुमार |

हममें से कई पत्रकार साथी ऐसे हैं जिन्होंने लाख-दो लाख मोटी फीस देकर, प्रशिक्षु पत्रकार का बिल्ला लटकाकर, दिनभर ब्लैक कॉफी पीकर और डिसकशन के नाम लड़कियों के साथ लिव इन रिलेशनशिप और मदरहुड फीलिंग वीफोर मैरेज जैसे स्टार्टर मुद्दों पर बात करके मीडिया कोर्स नहीं किया है। हम तो दुविधा की जिंदगी जीनेवाले जीव रहे। शुरु से दिमाग में लाल बत्ती रही या फिर जेआरएफ निकालकर सरकारी दामाद बनने की ललक । लेकिन दिमाग में ये भी डर बना रहा कि भइया इन दोनों में से कुछ भी नसीब नहीं हुआ तो क्या करोगे। लेडिस और ब्लैक कॉफी तो दिमाग में आते ही नहीं थे।...इस लिहाज से मीडिया लाइन हमारे लिए मुगलसराय जंक्शन की तरह रहा है जहां से सभी जगह के लिए ट्रेनें और रास्ते खुलते हैं।....सो सेफ्टी के लिहाज से, फ्रसटेशन से बचने के लिए और कुछ दिन और बाबूजी को टालने के नाते हम जैसे कई लोगों ने मीडिया में हाथ आजमाया होगा और आज कई सफल पत्रकार भी बन गए होंगे या हैं।.....चूंकि अब मीडिया में भी पहलेवाली बात तो रह नहीं गई है कि तिवारीजी, मिश्राजी या झाजी को फोन लगाया और देखते-देखते हो गए पत्रकार। अब तो मीडिया भी मैंनेजमेंट की तरह है, जहां कुछ भी बेचने के पहले बेचने का कोर्स करना पड़ता है और कोई आपके कहने पर क्यों खरीदे इसे ढ़ग से समझना पड़ता है भले ही कोर्स करने के बाद आप एक कंघी भी बेचने लायक न बन पाएं।... तिवारीजी और झाजी का सोर्स तो कोर्स के बाद ही चलेगी।....तो यही सब सोचकर हम दुविधाजीवी, सुविधा के लिए बेचैन मीडिया में आजमाने चल दिए।.....तो भाई जिसमें कुछ कर गुजरने की ललक हो और आगे बढ़ने की तमन्ना उसके उपर मुसीबतों का पहाड़ आ जाए कुछ खास फर्क नहीं पड़ता है फिर नौकरी के लिए और पत्रकार होने के लिए कोर्स औरनॉलेज क्या चीज है...सो हम भी लग गए कोर्स करने की फिराक में ।पता चला दिल्ली में विद्या भवन नाम का कोई इंस्टीच्यूट है जो कि खास हम जैसे दुविधाजीवी लोगों को ध्यान में रखकर डिजाइन किया गया है। इस इंस्टीच्यूट की खास बात है कि आप अगर थोड़ा भी समझदार किस्म के इंसान हैं तो आपका यहां एडमीशन होना तय है। मैं तो कहना चाहता था कि यहां खर-पतवार किसी का भी हो सकता है। लेकिन इस मामले में विद्या भवन समझदार है। यहां इंट्रेंस अंग्रेजी में है।इसलिए समझदारी का मतलब अंग्रेजी के 26सों वर्णों की जानकारी और पहचान से है। हम जैसे हिन्दीवालों के लिए तो ये इंस्टीच्यूट गंगा का काम करता है। हिन्दीवालों के बीच शेखी बघारने में बनता है कि अंग्रेजी में मीडिया का इंट्रेंस पास किया हैं। जिंदगी भर का दाग कि अंग्रेजी में लद्धड होगा तभी हिन्दी पढ़ रहा छुड़ा देता है। अपने तरफ भी मान बढ़ेगा कि झारखंड, बिहार के देहाती भुच्च इलाके से मैट्रिक पास करने के बावजूद भी दिल्ली में इंग्लिश मीडियम में परीक्षा पास किया है। अगर मेरी मां की तरह ही आपकी मां भी है तो एक बड़ा धार्मिक विधान करा देगी। बाबूजी को अपने नक्कारे बेटे पर एक बार फिर गर्व होगा( फिर इसलिए कि मैट्रिक में भी एक बार हुआ था, और नक्कारा इसलिए कि टॉप करने के बावजूद इंजीनियरिंग, मेडिकल में न जाकर आर्टस पढ़कर पैसे बर्बाद किए) और वो भी इंटरमीडिएट पढानेवाले प्रोफेसर को बताएंगे कि मेरा लड़का टीवी पर आएगा।....इतने पर तो कोर्स करने के लिए 15-16 हजार रुपये मिल ही जाएंगे।....थोड़ा टाल-विटाल हो तो अपनी अकड़ बढ़ा लो, बस एक साल दम मारिए, साल होते-होते सीएनएन, एनडी24*7 का चेक दूंगा..बाबूजी जबतक किसका चेक देगा,नोट करने में लगे होंगे तब तक अपनी भावुक मां को भिड़ा दो...ये कहने के लिए कि कितना पुन परताप से तो लड़का इंग्लिश की परीक्षा में पास किया है और फिर ठीक ही होगा न रिपोर्टर बनेगा तो इ गैसवाला बहुत फजहत करता है...डरेगा..सुनकर कि। फिर भी परेशानी हो तो ब्याही दीदी से मांग लो। इतना होने पर घरेलू लोन तो मिल ही जाएगा यार।.....मुझे पता है आप कर लोगे।चलो भाई एडमीशन तो हो गया। डीयू से विद्या भवन तक मेट्रो से साथ जाने के लिए एक लेडिस भी मिल गई। है तो लड़की लेकिन बहुत मैच्योर है इसलिए लेडिस कहना ज्यादा सही रहेगा।....अब बात पढ़ाई-लिखाई और कोर्स की। आपको यहां मीडिया पढ़कर मीडिया हाउस में काम करने के लिए तैयार नहीं किया जाएगा...बल्कि मीडिया एथिक्स पर लेक्चर पेलने और आज की मीडिया को गरियाने के लिए तैयार किया जाएगा। और सबसे मजेदार बात तो ये कि आप यहां कोर्स चाहे जो भी करो, एक पेपर सबके लिए कॉमन है- कल्चरर हेरिटेज ऑफ इंडिया। भवन का मानना है कि हमारी कोशिश है कि यहां के बच्चे जब यहां से निकले तो न सिर्फ एक पत्रकार बनकर बल्कि देश का एक बेहतर नागरिक बनकर भी। और इसके लिए जरुरी है कि उसे अपने देश की संस्कृति और पहचान को लेकर अच्छी समझ हो। बात भी सही है। लेकिन भवन के लिए पत्रकार होना और अच्छी समझ का होना दो अलग-अलग चीजें हैं। अपने देश के बारे में इतिहास, भूगोल, आर्थिक नीतियों, रानीतिक फैसलों, संविधान और समीतियों-संगठनों के बारे में जो कुछ भी हम जानते हैं,,,हो सकता है इससे हमारी जानकारी बढ़ती हो लेकिन इससे हमारे भीतर भारतीय होने का गर्व भी पैदा होता है इसकी गारंटी नहीं है।.....इसलिए भवन भारत की संस्कृति का पुनर्पाठ कराता है जिसमें वेदों, पुराणों की संख्या और उसके महत्व से लेकर राष्ट्र यानि कि हिन्दू राष्ट्र को आगे ले जाने में किस-किस वीर-वांकुरों का योगदान रहा इसे विस्तार से बताता है। विद्या भवन की ये कोशिश होती है कि इस पेपर के माध्यम से मीडिया पढ़ रहे लोगों को इतनी शिक्षा जरुर दे दी जाए जिससे कि जब वे पत्रकार के रुप में आगे काम करें तो एटमी करार पर, गुजरात पर, राष्ट्रवाद पर और विदर्भ के किसानों पर उसी तरीके से सोच सकें, लिख सकें और फैसले ले सकें जिस तरह से नागपुर कार्यालय या फिर भोपाल की बैठक में शामिल लोग लेते हैं।मुझे अपनी मां का हो-हल्ला याद आता है जब मेरे इसाई संस्था( संत जेवियर कॉलेज,रांची) में नाम लिखाने पर मचाया था कि अब लोग इसे पकड़कर इसाई बना देंगे और पता नहीं क्या-क्या खिलाएंगे और मेरा बेटा लंगोट का थोड़ा भी कच्चा निकला तो लेडिस लोग इसको फांस लेगी। तब पढ़ाई की गुणवत्ता के अलावे मां की मान्यताओं को ध्वस्त करने के लिए घर से भागा था।....ये सब सोचकर पूरे साल तक मन कसैला होता रहा खासकर उस पेपर के पीरियड में कि मां टाइप की जिद से पीछा छूटेगा भी कि नहीं। क्योंकि देखिए न आपके बाकी के पेपरों में क्या होगा इसका तो कोई माई-बाप नहीं है लेकिन इस पेपर के लिए बाक़ायदा भवन की ओर से एक किताब दी जाती है जो कि परीक्षा के लिहाज से बहुत ही उपयोगी है। अब इस पेपर और किताब को पढ़कर वहां कोर्स कर रहा बंदा विद्या भवन की पैटर्न पर तैयार हो पाता है कि नहीं इसे जानना बहुत ही जरुरी और रोचक होगा। ये अलग से एक पोस्ट की मांग करता है। इसलिए ये सफर आगे भी जारी रहेगा।.....कल फिर बात होगी और कैसे बोल पड़े वहां के एक मास्टर साहब इस अंदाज में कि ....ये तो झागवाला है //////
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5 Response to 'पहले हिन्दू तब पत्रकार'
  1. Srijan Shilpi
    http://test749348.blogspot.com/2007/10/blog-post_10.html?showComment=1192009140000#c126529199053777748'> 10 October 2007 at 02:39

    आपकी शैली बहुत रोचक है। लिखते रहिए, इसी मस्त, बिंदास अंदाज में।

     

  2. राजीव जैन Rajeev Jain
    http://test749348.blogspot.com/2007/10/blog-post_10.html?showComment=1192014540000#c2332860259548795057'> 10 October 2007 at 04:09

    बहुत अच्‍छा लिखते हो
    खुल कर लिख रहे हो ये और भी अच्‍छा

    शुभकामनाएं

     

  3. Udan Tashtari
    http://test749348.blogspot.com/2007/10/blog-post_10.html?showComment=1192023720000#c6262546910931952495'> 10 October 2007 at 06:42

    बहुत धार है भाई लेखनी में. अनेकों शुभकामनायें. लिखते रहें.

     

  4. अनूप शुक्ल
    http://test749348.blogspot.com/2007/10/blog-post_10.html?showComment=1192038240000#c720035758967294937'> 10 October 2007 at 10:44

    सुन्दर। पैरा भी बना दिया करें भाई ताकि पढ़ने में आसानी रहे और लेखक भी लगे कि मैट्रिक का टापर है।

     

  5. Sanjeet Tripathi
    http://test749348.blogspot.com/2007/10/blog-post_10.html?showComment=1192039680000#c530395897609749323'> 10 October 2007 at 11:08

    गज़ब मियां, लिखे जाओ मस्त आप तो!!
    एक बात तो दिख रही है वो यह कि आप जब भी मुंह खोलोगे कई लोगों को धो डालोगे।

    अनूल शुक्ल जी की सलाह पर ध्यान दें!

     

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