मेरी ये पोस्ट पढ़ने के पहले आप वादा करें कि हिन्दीवालों के लिए आगे से आप दो शब्दों का प्रयोग कभी नहीं करेंगे। एक तो ये कि फलां आदमी फलां कॉलेज में हिन्दी पढ़ाता है, इससे उनका सहित पूरे हिन्दी समाज का अपमान होता है और दूसरा ये कि उसे हिन्दी पढ़ाने के इतने पैसे मिलते हैं। काम और रुपया- पैसे का हिन्दी समाज शुरु से विरोधी रहा है। और अगर आप इसका प्रयोग उनके लिए करते हैं तो इससे उनका अपमान होता है।....काम में सभी तरह का काम आता है...पढ़ाने से लेकर भोग-विलास वगैरह...वगैरह। और रुपया -पैसा में...ये तो बताना नहीं पड़ेगा।....तो आप सोचेंगे कि भई जब हिन्दीवालों के खाते में महीने-महीने और विषयों के मास्टरों की तरह रुपया आता है तो उसे रुपया न कहें तो और क्या कहें। अच्छा सारे हिन्दीवालें औरों की तरह तैयार होकर टिफिन लेकर घर से रोज निकल जाते हैं तो उसे काम पर जाना न कहें तो और क्या कहें। तो सुनिए हिन्दी में रुपया को माया कहते हैं, ठगनी कहते हैं और काम को सेवा। हिन्दीवाले हिन्दी पढ़ाते नहीं उसकी सेवा करते हैं। और चूंकि सेवा और संवेदना का भाव इतना अधिक होता है कि वे अपने सहकर्मियों और तेजतर्रार छात्रों को इस माया में पड़ने नहीं देते। सारी माया अपने उपर ले लेते हैं और ये माया चाहे जितनी भी लीला करें इनके दोस्त-यार और छात्र तो बर्बाद होने से बच जाएंगे।......चलिए अब आगे बढ़ें।
मैंने चैनल को अलविदा कहने का मन बनाया तो मेरे दिमाग में बार-बार एक ही सवाल आया कि कहां तो चला था खूब-रुपया पैसा कमाने...गाड़ी-फ्लैट खरीदने जो कि मेरे बाकी दोस्त भी सोचा करते हैं। लेडिस मित्र भी कहा करती कि तुम नहीं समझते हो यार दिल्ली में अपना फ्लैट होगा तो कम से पति का धौंस तो नहीं चलेगा। खैर जाने दीजिए इन सब बातों को।...मुद्दे पर आते हैं।...जब दुबारा हिन्दी की दुनिया में लौटने का मन बनाया तो सोचा इसके पहले ये पता कर लेना जरुरी है कि घर, फ्लैट और एसी कमरा हिन्दी में आकर नसीब हो चाहे नहीं...कम से कम होनेवाली पत्नी की डिलिवरी एसी हॉस्पीटल में करवा पाउंगा कि नहीं। मरने के पहले दादी ने वचन दिया था कि काशीजी में क्रियाकर्म करना और पत्नी बनने से पहले एक लेडिस ने वचन मांगा है कि वादा करो कि हमारे बच्चे और टीवी रिपोर्टरों की तरह एसी में पलेंगें-बढ़ेंगे। मैं सोचता हूं कि पले-बढ़े भले ही न कम से कम पैदा तो एसी में हो ले। जिस आवोहवा में पहली बार सांस लेगा उसका एहसास जिंदगी भर रहेगा। मैं भी सीना तानकर कह सकूंगा कि एसी का बच्चा है मामूली नहीं है जी और पत्नी, अगर सबकुछ ठीक-ठाक रहा तो हो जाएगी, वो भी लोहराकोचा जाए तो अपने पीहर में महौल बना सके कि एसी में पैदा हुआ है न गर्मी एकदम से बर्दास्त नहीं होती।....यही सब सोचकर पता लगाने लगा कि आखिर हिन्दी समाज में रहकर देश और समाज सहित अपने बाल-बच्चों को कितना कुछ दे पाउंगा। मीडिया में काम करते हुए थोड़ा प्रोफेशनल और कांन्फीडेंट तो हो ही गया था....सो सोचा कि ऐसे दो-तीन प्रोफेसरों और हिन्दी के मास्टरों से मिल लिया जाए जो सबसे ज्यादा अभी हिन्दी की सेवा कर रहे हैं और जाहिर सबसे ज्यादा माया अपने उपर ले रहे हैं। मैंने सीधे-सीधे पूछा...सर हमें भी हिन्दी की खूब सेवा करनी है और ज्यादा से ज्यादा माया अपने उपर लेनी है ताकि बाकी का हिन्दी समाज इत्मीनान रहे। पहले तो उन्होंने मुझे समझाया जैसे चैनल वाले समझाते रहे कि क्या यहां अपने को बर्बाद कर रहे हो जाओ...अच्छा भला रिसर्च करो....वैसे ही इनलोगों ने समझाया कि क्या जिन्दगी हलाल करने पर तुले हो ...ये सेवा-वेवा हमारे लिए छोडो, जाओ मीडिया मे माल कमाओ, तुम जैसे होनहार बच्चों की वहां बहुत जरुरत है। मैं भी अड गया ...गुरुजी माल-वाल तो ठीक है लेकिन इज्जत और संस्कार भी तो एक चीज है और फिर आप ही तो कहा करते थे कि तुम ऑर्डर पर बने जीव हो..खासतौर पर हिन्दी के लिए।....अंत में उन्होंने हामी भर दी और सेवा और माया के अंतर्संबंधों (Interrelationship) को समझाया।
हिन्दी की सेवा के लिए मासिक माया- 20000-22000 माया,
शुरुआती दौर में सेवा का मौका- 16 से 18 दिन पांच घंटे
राजनीतिक सक्रियता मिलाकर
सुझाव - मीडिया से हो अखबार से जुड़ जाओ महीने में कम से कम 4 लेख- 2000 माया
महीने में 2 साहित्यिक लेख- 1000 माया
सुझाव- चैनल में जुगाड़ लगाओ महीने में 2-3 टॉक शो में गेस्ट- 5000 माया
सुझाव- एक्सट्रा क्लास पर जोर दो महीने में 3-4 क्लास- 1000 माया
दिल की बात- लेडिस कॉलेज मिल जाए तो एक्सट्रा क्लासेज ज्यादा मिलेंगे
सुझाव- गेस्ट फैक्ल्टी बनो
दिल की बात- मीडिया से हूं,कुकुरमुत्ते की तरह पत्रकार बनाने के कारखाने खुल रहे हैं
सप्ताह में चार दिन सेवा- 2000 माया
सुझाव- इन्टल बनो व्याख्यान दो
महीने में दो व्याख्यान- 1500- 2000 माया
राह खर्च अलग से
सुझाव- दो- चार किताब लिख डालो
दिल की बात- अगले साल ब्लॉग ही छपवा दूंगा
सुझाव- बदला-बदली स्कीम, माने दोस्तों को अपने कॉलेजों में बुलाओ और उन्हें कहो कि वे तुम्हें बुलाएं। आपसे में पीठ ठोको, लॉबी मजबूत होगी, मार्केट बढेगा
सुझाव- कभी-कभी यूपी, बिहार भी हो आओ
दिल की बात- एक सेमेस्टर 2-3 बार, प्रतिमाह के हिसाब से 4000 माया
सुझाव-आयोजकों से एसी 3 की टिकट लो स्लीपर में जाओ, जवान हो यार।
जरा टोटल कर लो भइया बाकी कुछ खुद भी जेनरेट कर लेना
टोटल - 22000+2000+1000+5000+1000+2000+2000+2000+4000+1000( रॉयल्टी का ) = 41000 माया
फुट नोट- ये तो शुरुआती दौर है जैसे-जैसे बाजार बनेगा वैसे-वैसे सेवा और माया में उत्तरोतर वृद्धि होगी-
-आजकल एनआरआई लोग हिन्दी पढ़ने लगे हैं तो विदेश गमन का भी योग बनेगा।
- धनी घर की सुकन्या जो कि शादी के लिए पढ़ना चाहती है उससे भी इम्पोर्टेड उपहार
- हिन्दी श्रद्धा और सेवा स्थली है, हरियाणा के छात्र घी देते रहेंगे
कुल मिलाकर यहां भी मामला घाटे का नहीं है....और जो थोड़ा बहुत कॉम्प्लेक्स हिन्दी में होने का रहेगा उसे तुम्हारे बाल-बच्चे रिवॉक और नाइकी पहनकर, अंग्रेजी बोलकर पूरी कर देंगे।समझे बच्चा, इसलिए ठान लो कि हमें जिंदगी भर हिन्दी की सेवा करनी है।
ड्राफ़्ट
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http://test749348.blogspot.com/2007/10/blog-post_04.html?showComment=1191481260000#c5860290124250314766'> 4 October 2007 at 00:01
खाली जोडिये के रह गए कि मिली भी माया?
http://test749348.blogspot.com/2007/10/blog-post_04.html?showComment=1191481860000#c4993900782043854073'> 4 October 2007 at 00:11
भैय्या जिस दिन यह माया आपके हाथ लग ही जाए, हमे भी बता दियो, अपन भी लग लेंगे आपके ही रास्ते पे!!
http://test749348.blogspot.com/2007/10/blog-post_04.html?showComment=1191482520000#c4440438107073512983'> 4 October 2007 at 00:22
बहुत आनंद आया. विनीत बाबू. माया की तिरिया चरित्तर बताकर बड़ा उपकार किया आपने. इससे हिन्दी के चलते-फिरते शोधार्थियों का भला होगा, जो कहीं भी मुंह मारने को तैयार रहते हैं. खाली आपकी युनिवर्सिटी की ही बात नहीं है ये.
ब्लॉग छपवाने वाला आइडिया पसंद आया.
http://test749348.blogspot.com/2007/10/blog-post_04.html?showComment=1191482880000#c7970342963178800734'> 4 October 2007 at 00:28
दिलचस्प लगा आपका अंदाज।
http://test749348.blogspot.com/2007/10/blog-post_04.html?showComment=1191497340000#c1539158166007121056'> 4 October 2007 at 04:29
हा हा!!
हिसाब काफी अच्छा लगा लेते हैं. :)
http://test749348.blogspot.com/2007/10/blog-post_04.html?showComment=1191513480000#c5329516849752540709'> 4 October 2007 at 08:58
अंदाजे-बयां के कायल हुए गुरु.......
माया तो माया हीं होती है......
खैर, अच्छा लगा..
अनुभव बांचते रहिए...
http://test749348.blogspot.com/2007/10/blog-post_04.html?showComment=1191515520000#c6477598742717818254'> 4 October 2007 at 09:32
bahut achha likha hai sir,susrusey me maya sey bhagta aya hun lekin aapki calculation dekhney k baad maya se pyaar hogaya hai. ab dil karta hai ki kuch hindi ki sewa main bhi karu,,,, vijay mehra
http://test749348.blogspot.com/2007/10/blog-post_04.html?showComment=1235305620000#c1648408657784420505'> 22 February 2009 at 04:27
टोटल तो 42000 हो रहा है
बैठाया 41000 है
हिन्दी के साथ गणित की
सेवा भी जरूरी है भाई।
हिन्दी सेवा में मेवा देखकर
मन ललचा रहा है
लालच तो और भी आ रहा है
पर पहले यह बतलाओ
जुगाड़ कौन और कहां कहां
भिड़वा रहा है(बंद करने के लिए नहीं भिड़वाना)
माया पाने के लिए भिड़वाना
मगर प्यार से।