नहीं रहे गिरदा..

Posted On 03:16 by विनीत कुमार |

इस अल्सायी और मेरे लिए लंबे समय से ह्रासमेंट में धकेलती आयी  दुपहरी में अविनाश ने जैसे ही बताया कि गिरदा नहीं रहे तो सोने-सोने को होने आयी आंखों में बरबस आंसू आ गए। अविनाश ने उनकी उन तस्वीरों की ताकीद की जिसे कि हमने दून रीडिंग्स के दौरान देहरादून में लिए थे। हमें एकबारगी अपनी गलती का एहसास हुआ कि हम क्यों एक ऐसे फोटो पत्रकार साथी के भरोसे रह गए जिन्होंने हमें इस बिना पर ज्यादा तस्वीरें नहीं लेने दी कि वो सब दे देंगे और दूसरा कि जो भी तस्वीरें ली उसे आज दिन तक भेजी नहीं। हम गिरदा की तस्वीरें खोजने की पूरी कोशिश में जुटे हैं।
गिरदा के बारे में न तो हमें बहुत अधिक जानकारी है और न ही वो जो अब तक गाते आए हैं,उसकी कोई गहरी समझ। कविता और गीत के प्रति एक नकारात्मक रवैया शुरु से रहा है इसलिए इसकी जानकारी मं शुरु से बाधा आती रही है। सुबह के विमर्श और तीन घंटे के लिए मसूरी से लौटने के बाद पेट में हायली रिच खाना गया तो न तो कुछ और सुनने की इच्छा हो रही थी और न ही कुछ कहने की। हम कुर्सी में धंसकर सोना चाहते थे,बैठना नहीं। तभी गिरदा दूसरे सत्र में मंच पर होते हैं। ये वो सत्र रहा जिसमें कि गिरदा सहित बाकी लोगों ने उत्तराखंड के लोगों के दर्द को गाकर या कविता की शक्ल में हमसे साझा किया। गिरदा ने जब गाना शुरु किया तो लगातार भीतर से आत्मग्लानि का बोध होता रहा। दो तरह की पनीर,करीब 80-90 रुपये किलो के चावल,रायता और तमाम रईसजादों का खाना खाकर जब हम जंगली साग रांधने(पकाने) की बात गिरदा के स्वरों में सुनने लगे तो ऐसा होना स्वाभाविक ही था। गिरदा के गीत सुनकर हमें उबकाई आने लगी। हमारा जिगरा इतना बड़ा तो नहीं कि लोगों के दर्द को सुनकर अपना सुख और प्लेजर को लात मार दें लेकिन उस समय जो खाया था,उसकी उबकाई हो जाती और फिर गिरदा को सुनता,तब उन गीतों के साथ न्याय हो पाता। गिरदा के गाने की जो आवाज थी,वो इतनी बारीक लेकिन दूर तक जानेवाली,इतनी दूर जानेवाली कि देहरादून,मसूरी की पहाडियों में जो वीकएंड,हनीमून मनाने आते हैं, गरीबी और भूखमरी पर विमर्श करने आते हैं,कॉर्पोरेट की टेंशन लेकर यहां चिल्ल होने आते हैं,उन सबके कलेजे में नश्तर की तरह चुभती चली जाए। वो अपने गीतों में हद तक लोगों के बेशर्म होने का एहसास भरते। गिरदा को सुनने से तिल-तिलकर मरते हुए गीतकार के सामने से गुजरने का एहसास होता जिसका हर अंतरा,हर मुखड़ा सुनने के बाद कब्र और नजदीक होती जाती। मफल्ड ड्रम की हर बीट जैसे मुर्दे को कब्र के नजदीक ले जाती है। उनको सुनने से ऐसा लगता था कु दूर कोई पहाड़ की तलहटी में ऐसा शख्स गा रहा है जिसके पेट तीर से छलनी हो और गले में खून जमा हुआ है।


डेढ़  से दो घंटे की सेशन में गिरदा को सुनकर हम सचमुच पागल हो गए थे। छूटते ही हमने तय किया कि उनके कुछ गीतों की हम अलग से रिकार्डिंग करेंगे। लोग उनकी सीडी,कैसेट निकालने की बात कर रहे थे लेकिन उसमें उलझनें जानकर हमने तय किया था कि कुछ नहीं तो रिकार्ड करके यूट्यूब पर डाल देंगे। मैं तब अकेले गिरदा के पास गया और कहा कि ऐसा कुछ करना चाहते हैं। वो बच्चे की तरह खुश हो गए। साथ में अविनाश भी ऐसा करने में बहुत उत्साह दिखाया। लेकिन हम दिल्ली आते-आते तक ऐसा नही कर सके। उस रात डिनर में गिरदा अपनी मौज में थे।  शेखर पाठक,पुष्पेश पंत और दिल्ली से गए तमाम साहित्यकारों के बीच वो उफान पर थे..सब तरह से। लेकिन हम उनका कोई भी गीत रिकार्ड न कर पाए।

देहरादून की होटल में देर रात हमने उनके लिए सिर्फ इतना लिखा- गिरदा ने हमें पागल कर दिया


तीन घंटे की थकान लेकर जब हम वापस होटल अकेता के सेमिनार हॉल में दाखिल हुए, तब गिरदा ने अपना जादू-जाल फैलाना शुरू ही किया था। गिरदा अपने गानों में उत्तराखंड के भूले-बिसरे चेहरों और यादों को फिर से अपनी आवाज के जरिये सामने लाते हैं। वो जब भी गाते हैं, उनकी आवाज पहाड़ी जीवन के संघर्षों को दर्शाती है। इन्होंने फैज की कई कविताओं का अनुवाद भी किया है। गिरदा ने जब हमें सुनाया कि चूल्हा गर्म हुआ है, साग के पकने की गंध चारों ओर फैल रही है और आसमान में चांद कांसे की थाली की तरह टंगा है, तो बाबा नागार्जुन आंखों के आगे नाचने लग गये। यकीन मानिए आप गिरदा को सुनेंगे तो पागल हो जाएंगे। मैं दिल्ली आते ही उनके गाये गीतों का ऑडियो लोड करता हूं।
लेकिन,हम उस दिन से लेकर आज दिन तक कोई ऑडियो अपलोड नहीं कर पाए। जब अब तक नहीं किया तो क्या कर पाएंगे? सोचता हूं तो लगता है कि हम गिरदा के कुछ गाने अगर रिकार्ड करते तो क्या खर्चा जाता। गिरदा तो हमसे लगातार बस बीड़ी मिलती रहने की शर्त पर गाने को तैयार थे..
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7 Response to 'नहीं रहे गिरदा..'
  1. प्रभात रंजन
    http://test749348.blogspot.com/2010/08/blog-post_22.html?showComment=1282478554341#c2960963512730751991'> 22 August 2010 at 05:02

    गिरदा कवि को जैसे आपके शब्दों के माध्यम से देख रहा हूँ. आपने उनको बहुत आत्मीयता से लिखा है.

     

  2. अनूप शुक्ल
    http://test749348.blogspot.com/2010/08/blog-post_22.html?showComment=1282480339714#c2068994640811240760'> 22 August 2010 at 05:32

    एक शोकगीत सी है यह पोस्ट! गिरदा जी को नमन!

     

  3. सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी
    http://test749348.blogspot.com/2010/08/blog-post_22.html?showComment=1282485806745#c5718994784021670982'> 22 August 2010 at 07:03

    गिरदा को आपके सहारे ही जान सके। उन्हें मेरी श्रद्धांजलि।

     

  4. miracle5169@gmail.com
    http://test749348.blogspot.com/2010/08/blog-post_22.html?showComment=1282491184643#c8542478338855555127'> 22 August 2010 at 08:33

    1 comments:
    miracle5169@gmail.com said...
    vineet kya likhte ho?girda se aise milna hoga,afsos sad afsos.kisi bhi mulk ya samaj ka yehi sabse bada apradh hai ki vo apni oratibha ko munch muhaiya na karaye.aur is mahaan mulk maiN roj hi kitne girda anaam chale jaate hain?aapka ehsaas lafjoN maiN mehsus ho raha hai ki aapne ek mauka khoya hai,yeh baat jitni aap ko saalti rahegi utna hi mujhe bhi.
    August 22, 2010 8:31 AM

     

  5. सुनील गज्जाणी
    http://test749348.blogspot.com/2010/08/blog-post_22.html?showComment=1282547809861#c4451829030527199864'> 23 August 2010 at 00:16

    विनीत जी
    प्रणाम !
    दिवंगत पुण्य आत्मा को नमन . हमारी और से एवं '' आखर कलश '' कि और से भी हार्दिक नमन .
    आप द्वारा ही हम'' कवि गिर्दा '' को जान पाए ,
    शत शत नमन !

     

  6. काजल कुमार Kajal Kumar
    http://test749348.blogspot.com/2010/08/blog-post_22.html?showComment=1282657495372#c5259353344348556613'> 24 August 2010 at 06:44

    गिरदा मेरा लिए नया परिचय रहा. कांसे की थाली सा चांद पहले भी हज़ार बार सुना होगा पर इस वीडियो को देखकर पता चलता है कि हमारे समाज में कितने ही हीरे हैं जिनकी हम कोई थाह नहीं लेते. दिवंगत पुण्यात्मा को नमन.

     

  7. अगिया बेताल
    http://test749348.blogspot.com/2010/08/blog-post_22.html?showComment=1282840026370#c7372948360203330563'> 26 August 2010 at 09:27

    यहां आ रहे कमेंट पढ़कर सवाल मन में आया कि गिरदा के बारे में उनके जीते जी क्यों नहीं लिखा गया। ज्यादा लोग उन्हें सुन नहीं पाए ये गिरदा की नहीं बल्कि लोगों की बदकिस्मती है। ये ट्रेंड बदलना चाहिए.

     

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